मत करो इसरार जी | Ishrar par kavita
मत करो इसरार जी
( Mat karo ishrar ji )
हर किसी को चाहिए, अधिकार ही अधिकार जी।
कोई भी करता नहीं , कर्तव्यहित व्यवहार जी।।
बिन दिए मिलता नहीं है, बात इतनी जान लो,
प्यार गर पाना है तो, देना पड़ेगा प्यार जी।।
दूसरो को दोगे इज्जत, होगी तब हासिल तुम्हें,
कब भला मिलता है मांगे से यहां सत्कार जी।।
आदमी हो आदमी ही, क्यों नहीं बनते हो तुम,
जानवर सा आचरण, करते हो क्युं हर बार जी।।
जो सभी को माफ़ कर दे, उससे बढ़कर कौन है,
सोचिएगा क्या मिला, रखकर सदा प्रतिकार जी।।
हर किसी की ख्वाइशें, “चंचल” कहां पूरी हुईं,
जो मिला उसमें रहो खुश, मत करो इसरार जी।।
कवि : भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई, छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )
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