Mata pita ke samman par kavita
Mata pita ke samman par kavita

मात पिता का जीवन में सम्मान होना चाहिए

 ( Mata pita ka jeevan mein samman hona chahiye )

 

मात पिता का जीवन में सम्मान होना चाहिए
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए

पालते हैं पोसते वे कइयों बेटा बेटियां
सोंचते रहते सदा कैसे खिलाएं रोटियां

न देखते कोई मुसीबत या कोई मजबूरियां
खुद चाहते बस देखना प्रसन्न बेटा बेटियां

इनके सेवा त्याग से न अंजान होना चाहिए,
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए।

चाहते हमको उठाना आसमां के छोर तक
साथ चलना चाहते हैं सफ़र के हर मोड़ तक

हर बलाओं से सदा लडते रहते जी तोड़ तक
सुबह से हर शाम तक के,रात गहन घनघोर तक

पद, कद, औचित्य में आसमान होना चाहिए,
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए।

चार लोगों को खिलाता है कहीं घर छोड़ कर
दो वक्त की रोटी कही लाता हृदय निचोड़ कर

दर्द अपना नहीं बताता है किसी परिवार से
है तड़पता अंदर अंदर दर्द के उस वार से

उनके इस तपस्या का परिणाम होना चाहिए,
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए।

अफसोस होता है कभी समाज में यह देख कर
चार बेटे हैं सही पर जीते आंसू पोंछ कर

बांट कर रखते उन्हें घर में पड़े सामान सा
मोल होता है नही न उनके उन एहसान का

उनके हर समस्या का समाधान होना चाहिए
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए।

जाना है तो हम सभी को छोड़ इस संसार को
ले लो अपने जन्मदाता मात पिता के प्यार को

जाने वाले न फिर आते वापस इस परिवार में
चाह कर मिल पाते हैं ना सपनों के दिदार में

हृदय के मन मंदिर का भगवान होना चाहिए
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए।

मात पिता ही जीवन के सच्चे पथ प्रदर्शक हैं
पकड़ हाथ हमें थामने वालें वे संरक्षक हैं

कब मिलेंगे एक साथ मात पिता गुरु सच्चे हैं
जग के सारे तीर्थ धाम न इनसे कोई अच्छे हैं

दिल में इनका ईश्वर सा स्थान होना चाहिए,
अनजाने में भी न कभी अपमान होना चाहिए।

 

( अम्बेडकरनगर )

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