यारों ढ़लतें इस मौसम ए बेरुख़ी के बाद भी | Ghazal
यारों ढ़लतें इस मौसम ए बेरुख़ी के बाद भी
( Yaron dhalte is mausam -e -berukhi ke baad bhi )
यारों ढ़लतें इस मौसम ए बेरुख़ी के बाद भी
फूल महके है इस देखो शबनमी के बाद भी
दुश्मनी दिल से निभायी दोस्ती को तोड़कर
वो मिला आकर मुझे है दुश्मनी के बाद भी
वो घर आया ही नहीं मेरे बुलाने पर भी तो
रक्खी है नाराज़गी भी दोस्ती के बाद भी
बदलूँगा तेरी तरह मैं अपनी आदत से नहीं
मैं तो ऐसा ही रहूँगा आशिक़ी के बाद भी
ऐसी उसनें ही निभायी है मुहब्बत ए वफ़ा
हिज्र की आती रही ख़ुशबू उसी के बाद भी
कर लिया वादा उधार था जो आटा कल देने का
कर रहा है वो परेशां बेकसी के बाद भी
हाथ उससे ही मिलाया मैंनें फ़िर भी प्यार से
दोस्ती उसकी मगर वो खोखली के बाद भी
इम्तिहां था वो मुहब्बत की रोज़ आज़म की इतनी
चाह रखना उससे रिश्ता बेदिली के बाद भी