Meri Ghazal

मेरी ग़ज़ल | Meri Ghazal

मेरी ग़ज़ल

( Meri Ghazal ) 

 

इक ग़ज़ल बा-कमाल सी हो तुम
कोई आला ख़याल सी हो तुम

रूह की जेब में रखा है जो
उस महकते रुमाल सी हो तुम

उलझे रहते हैं हम भी पहरों तक
ख़ूबसूरत सवाल सी हो तुम

तितलियाँ जिस पे देर तक बैठे
सुर्ख़ फ़ूलों की डाल सी हो तुम

गर्मियों में सुफैद कुरते सी
ठंड में गर्म शाल सी हो तुम

जिससे होता है फागुनी मौसम
वो अबीरो- गुलाल सी हो तुम

कुछ रूमानी भी कुछ रूहानी भी
उस ख़ुदा के जमाल सी हो तुम

है उछल कूद ज़हन में हरदम
बन में फिरती ग़ज़ाल सी हो तुम

 

Ashok Azm

शायर: अशोक “अज़्म”
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