Meri Prarthana
Meri Prarthana

प्रार्थना

( Prarthana ) 

 

पर्वत  घाटी  ऋतु  वसंत  में

नभ थल जल में दिग्दिगंत में

भक्ति  भाव  और अंतर्मन में

सदा  निरंतर  आदि  अंत  में

 

          युगों युगों तक तुम्हीं अजेय हो,

          कण-कण में ही  तुम्हीं बसे हो।

 

सृष्टि  दृष्टि  हर  दिव्य  गुणों में

स्वर  अक्षर  हर  शब्द धुनों में

हम  सबमें  हर पतित दुखी में

दीन  –  हीन  हर  विद्वजनों में

 

          जन जन में भी तुम्हीं बसे हो

          कण कण में ही तुम्हीं बसे हो।

 

कीर्ति  तुम्हारी  फैली  जग में

हर  सांसों  में  तू  रग – रग में

धूप  छांव  में  अग्नि  वायु  में

जड़  चेतन  में  नर  विहंग  में

 

          दृष्टि  जहां  भी  वहीं  खड़े हो,

          कण- कण में ही तुम्हीं बसे हो।

 

 

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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