मिट्टी के बर्तन | Mitti ke bartan par kavita
मिट्टी के बर्तन
( Mitti ke bartan )
अपनें परिवार का एक हौंसला हूँ में,
कैसे कह दूँ दोस्त थकने लग गया में।
मेरी पूरी उम्र निकल गई इस मिट्टी में,
नई आकृति देने और बर्तन बनाने में।।
हम भी पुतले है इस धरा पर मिट्टी के,
आखिर में मिलना ही है इसी मिट्टी में।
जब तक रहेंगी हमारे शरीर में जान,
बनाते ही रहेंगे इसी तरह मिट्टी बर्तन।।
आज फुर्सत की कमी सब लोगों को,
आँखों से पानी झलकता है हम को।
पहले प्यार के पत्र लिखते थें हाथ से,
आज बीमा के फाॅर्म भरते ईमान से।।
मेरे जीवन को घेरा है आधुनिकता ने,
केवल नाम ही रह गया मिट्टी बर्तन में।
बीते वक़्त में था इसका बहुत महत्व,
महिला खाना पकाती मिट्टी के बर्तन।।
इस कारण बिमारी भी होती थी कम,
आज कर लिया जो साइंस ने कब्जा।
रसोई घरों में मिट्टी बर्तन हो गऐ कम,
खान पान व स्वाद में भी ना रहा दम।।