मोची | Mochi

मोची

( Mochi ) 

 

पैरों से चलने में मजबूर,

फिर भी प्रकृति में,

मुस्कान भरी छाता बिखेरता ,

वह तल्लीन था अपने कार्य में,

लगता था ऐसे कि वह ,

प्रभु के गांठ रहा हो जूते,

उसका कार्य करने का ढंग,

बड़ा ही प्रीत पूर्ण था,

वह नहीं देखता कि ,

कौन छोटा कौन बड़ा,

बस मात्र समर्पण भाव से ,

वह किये जा रहा था ।

इस अपंगता में भी उसे ,

नही थी परमात्मा से कोई शिकवा

बस एक ही प्रार्थना वह करता,

प्रभु तेरी बनाई बगिया को,

थोड़ी और सुंदर बना सकूं,

इसीलिए आपको की समझ कर,

यह कार्य किये जा रहा हूं।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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