मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं | Ruthana shayari
मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं
मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं
रूठना तेरा अच्छा नहीं
शहर से उसके आया जब से
दिल कहीं और लगता नहीं
देखता हूं जिसके प्यार का
वो ही करता इशारा नहीं
छेड़ देता उसका जिक्र जो
जख़्म दिल का भरता नहीं
खो गया जो मिलकर भीड़ में
वो कहीं मिलता चेहरा नहीं
भेज दें कोई रब हम सफ़र
व़क्त तन्हा अब कटता नहीं
तोड़ दिया है आज़म प्यार का
उसने ही रक्खा रिश्ता नहीं
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