मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं
मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं

मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं

 

 

मोड़कर मुंह यूं चलना नहीं

रूठना तेरा अच्छा नहीं

 

 

शहर से उसके आया जब से

दिल कहीं और लगता नहीं

 

देखता हूं जिसके प्यार का

 वो ही करता इशारा नहीं

 

छेड़ देता उसका जिक्र जो

जख़्म दिल का भरता नहीं

 

खो गया जो मिलकर भीड़ में

वो कहीं मिलता चेहरा नहीं

 

भेज दें कोई रब हम सफ़र

व़क्त तन्हा अब कटता नहीं

 

तोड़ दिया है आज़म प्यार का

उसने ही  रक्खा रिश्ता नहीं

 

 

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शायर: आज़म नैय्यर

( सहारनपुर )

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