
वो प्यास मुहब्बत की बुझाने नहीं आया
( Wo pyas mohabbat ki bujhane nahin aaya )
वो प्यास मुहब्बत की बुझाने नहीं आया
आँखों से आँखों भी तो मिलाने नहीं आया
वो तीर नफ़रत के छोड़े है वो बहुत मुझपे
वो खीर मुहब्बत की खिलाने नहीं आया
आँखों में दिए आँसू सितम प्यार में करके
उल्फ़त से कभी भी वो हंसाने नहीं आया
रिश्ते की दुहाई देता कैसी यहां सबको
वो चाय पे अपनें घर बुलाने नहीं आया
की नाम मुहब्बत का देकर वो मुझे अपनी
वो प्यार कभी मुझपे लुटाने नहीं आया
कैसे कहूँ मैं अपना उसे ही ग़मो में ही
ए यारों गले अपनें लगाने नहीं आया
वो गैर बना आज़म से ऐसा कहा अपना
वो शक्ल कभी अपनी दिखाने नहीं आता