मोक्ष की ओर बढ़ें | Moksh
मोक्ष की ओर बढ़ें!
( Moksh ki ore badhen )
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
आकर के जग में, प्रभु की शरण में,
मोक्ष की ओर बढ़ें।
हे! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
साँसों के तारों से, जीवन की धारों से,
मिलके जहां से चलें ।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
आकर के जग में, प्रभु की शरण में,
मोक्ष की ओर बढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
चाँद -सितारे, सबके दुलारे,
होते ही सुबह ढले।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
आकर के जग में, प्रभु की शरण में,
मोक्ष की ओर बढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
गम को मिटा के, जश्न मना के,
प्यार की ओर बढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
आकर के जग में, प्रभु की शरण में,
मोक्ष की ओर बढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
दुनिया दीवानी, है उसका पानी,
उसमें ही जाके मिले।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
आकर के जग में, प्रभु की शरण में,
मोक्ष की ओर बढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
मुक्ति है पाना, एक दिन है जाना,
सत्कर्मों की ओर मुढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
आकर के जग में, प्रभु की शरण में,
मोक्ष की ओर बढ़ें।
हे ! उसकी कृपा बरसे,
दुनिया सदा हरषे।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई
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