2550 वां महावीर स्वामी मोक्ष कल्याणक दिवस

 

नवयौवन ही में महावीर ने राज पाट सब त्याग दिया,
मात पिता के विवाह प्रस्ताव को विनम्रता से मना किया,
मोक्षमार्गी बन कर्मों की निर्जरा ही एक उद्देश्य रहा,
अशोक वृक्ष तले केश लुंचन कर मुनि दीक्षा अंगीकार किया।

बारह वर्ष का कठोर तप कर घातिया कर्मों का नाश किया,
अनंत कैवल्य ज्ञान लक्ष्मी को प्रगटा स्व पर प्रकाश किया,
सौधर्म इंद्र की आज्ञा से समवशरण की रचना कुबेर ने की,
बारह सभा में बैठ जीवों ने वीर वाणी को आत्मसात किया।

मंगल द्रव्य हों अष्ट प्रातिहार्य औ धर्म चक्र संग चलते है,
“अतिशय” दस हों केवलज्ञान के, चौदह देवकृत फलते हैं,
दो सौ पच्चीस स्वर्ण कमल चरणों के नीचे शोभित हैं,
तीस वर्ष तक धर्म तीर्थ के प्रवर्तन करते निकलते हैं!

पर इन सबसे निस्पृह हो प्रभु अनंत चतुष्टय रत रहते,
समवसरण की अनंत लक्ष्मी पर भी चौ अंगुल स्थित रहते,
आयु के शेष दो दिन पर तीर्थंकर पुण्य भी त्याग दिया,
सारा वैभव पीछे छूटा प्रभु एकल विहार रत रहते !!

धन्य हुई कार्तिक त्रयोदशी आपने योग निरोध किया,
मन वच काय साध आपने आत्म तत्व को शोध लिया ,
योग रोध की महा प्रक्रिया अद्भुत विस्मयकारी है,
धन संबंधी मिथ का गुरू से धर्मीजन ने बोध लिया !

शुक्ल ध्यान आरूढ़ प्रभु हों शेष अघातिया कर्म घातें,
कार्तिक अमावस प्रत्युष बेला में लोक शिखर पर बस जाते,
संध्या में गौतम गणधर ने केवलज्ञान विकास किया,
ज्ञान ज्योति के पर्व रूप में साधर्मी जन दीपावली मनाते!!

 

वीरेन्द्र जैन

( नागपुर )

यह भी पढ़ें :-

विरासत | Virasat

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here