मुआवजा
कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में जितनी तबाही मचाई, उतनी तबाही शायद कहीं और नहीं देखी गई। ऑक्सीजन के लिए सड़कों पर तड़पते लोग, अस्पताल में बेड के इंतजार में बैठे मरीज, दवाओं के लिए दर-दर भटकते मरीजों के परिजन।
यह कैसी त्रासद स्थिति थी कि संक्रमण में घर के लोग न माथे पर पट्टी बदल सकते थे, न नब्ज़ पर हाथ रख सकते थे.. न दवा, न पानी का सहारा… एक स्पर्श, स्पंदन या गर्माहट तक नहीं. और भय में जीवन मांगती आंखें जब मौत में समा जाएं तो न मृतक को स्नान, न कंधा, न अर्थी, न मिट्टी, न विदा… कोरोना से ज़्यादा कितनी ही बीमारियां रोज़ लोगों को निगल रही थी. लेकिन मौत का इतना असहाय स्वरूप सच में इस सदी का अबतक का सबसे डरावना सच था।
कुछ ऐसी तस्वीरें दूसरी लहर ने दिखाईं जिसकी कल्पना शायद किसी ने भी की नहीं होगी।
कोरोना की जब पहली लहर आई थी, तब हम सबके लिए ये नई चुनौती थी, लेकिन इतनी बुरी तस्वीरें उस वक्त भी सामने नहीं आईं, जैसी तस्वीरें दूसरी लहर में देखने को मिलीं।
मौत कई बहानों से आती है. लेकिन जाते हुए लोगों को प्रायः अपनों के हाथ थामें रहते हैं। परिवार, परिजनों का पूरा मनोविज्ञान ही यही है कि वो कष्ट में आसपास हों, दर्द बांटें, देखभाल करें।
कोरोना ने लोगों के इस हज़ारों साल पुराने सिस्टम को ध्वस्त कर दिया था। एक ऐसी विवशता थी जिसमें सामने बंद होती आंखों में आखिरी बार अपनों का अक्स तक नहीं नसीब हो पाता था। ऐसे कम ही लोग हैं जिन्हें परिजनों के हाथों मुखाग्नि नसीब हो सकी थी। कितने ही शव ऐसे थे जिन्हें कोई लेने नहीं आया।
शमशान घाट का ये आलम था कि अंतिम संस्कार के बाद मृतकों की अस्थियों के ढेर लग गए थे और उन्हें विसर्जित करने वाला कोई नहीं था।
इस भयंकर महामारी में अपने पति भास्कर को खोने वालों में एक संध्या भी थी। उसकी तो पूरी दुनिया ही उजड़ गई थी। भास्कर अपने पीछे एक तीन वर्षीय बेटी और एक 3 माह के दुधमुंहे बेटे को छोड़ गए थे। दोनों बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी संध्या पर आ गई थी।
शादी को मात्र पांच वर्ष भी पूरे ना हुए थे कि भास्कर की कोरोना संक्रमण की वजह से मृत्यु हो गई । भास्कर अमरोहा जनपद के एक उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 2021 में ग्राम पंचायत इलेक्शन ट्रेनिंग के दौरान भास्कर इस महामारी की चपेट में आ गए थे।
उनके फेफड़ों में भयंकर रूप से संक्रमण फैल गया था। सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी। यह भी कोरोना संक्रमण का एक नया लक्षण था। परिजनों ने ही भास्कर को एक अस्पताल में एडमिट करवाया था। वहां से भी उनकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो दूसरे बड़े प्राइवेट अस्पताल लेकर भागे।
हर जगह मौत का तांडव था। लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। लोग एक दूसरे के करीब जाने से बच रहे थे। सांस लेने के लिए अस्पतालों में ऑक्सीजन के सिलेंडर कम पड़ गए थे।
लोग मौत का कारोबार कर रहे थे। मुंहमांगे दामों पर ऑक्सीजन के सिलेंडर मरीजों को उपलब्ध करवाये जाते थे। भास्कर के साथ भी यही हुआ। वे लगातार कई दिन तक ऑक्सीजन के सहारे ही इलाज पाते रहे।
उनकी मृत्यु वाले दिन… दोपहर में ही संध्या उनसे मिलकर आई थी। उनकी तबियत ठीक लग रही थी। लग रहा था कि अब सब ठीक हो जायेगा। कल सुबह तक वे ठीक होकर घर आ जाएंगे। लेकिन अचानक रात में ऐसा क्या हुआ जो उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई? ये ईश्वर ही जानता है।
अगले दिन जब भास्कर का क्रियाकर्म, अंतिम संस्कार वगैरह सब हो गया तब संध्या को भास्कर की मृत्यु के बारे में बताया गया। वह अपने पति के अंतिम दर्शन भी ना कर पाई थी।
उसको यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि भास्कर नहीं रहे। उसको यकीन था कि भास्कर एक-दो दिन में ठीक होकर घर आ जाएंगे। लेकिन इस तरह उनके जाने की खबर आएगी, वह उनको देख भी ना पायेगी।
इसका उसे जरा भी अंदाजा न था। यह सुनकर वह बिल्कुल जड़ हो गई। उसकी दुनिया उजड़ गयी थी। उस दिन उसकी आँखों से एक आंसू न निकला। कहते हैं कि जो आंसू आंखों से नहीं निकलते, वे कलेजा चीर के रख देते हैं। वह बदहवास सी हालत में उनको हर जगह ढूंढती रही।
वह हर उस जगह गयी, जहां भास्कर हो सकते थे या जाते थे। जब उसको यह पता चला कि अमुक जगह पर उनका अंतिम संस्कार किया गया है तो वह वहां भी गयी। लेकिन भास्कर नहीं मिले। जब संध्या को यकीन हो गया कि वे नहीं रहे.. तो संध्या ने खुद को भी खत्म करने की बार-बार कोशिश की… लेकिन परिजनों ने दोनों बच्चों को संध्या के आगे करके.. उन बच्चों की दुहाई देकर उसको मरने से रोक लिया।
इलेक्शन के बाद, कोरोना महामारी के कारण खत्म हुए सरकारी कर्मचारियों/आम लोगों के परिजनों को मुआवजा/राशन देने के लिए सरकार द्वारा जगह जगह पर सहायता केंद्र खोले गए थे।
इस महामारी के कारण जो व्यक्ति काल की भेंट चढ़ गए, उसकी पुष्टि करने हेतु.. उनको मुआवजा देने के लिए कुछ मानक तय किये गए। परिजनों को मृतक के ‘कोरोना होने के साक्ष्य प्रस्तुत’ करने को कहा गया। सरकार ने इसके लिए हेल्पलाइन टोल फ्री नंबर भी जारी किए, जिस पर कॉल करके पीड़ित परिवार मुआवजे के बारे में तथा आवेदन करने के दौरान लगाए जाने वाले कागजों/प्रमाण पत्रों की जानकारी ले सकता था।
संध्या की उस दौरान आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई थी। पति के इलाज में काफी खर्च हो गया था। भास्कर ने एक बैंक से एक बड़ी धनराशि लेकर शहर में एक घर बनाया था। जिस वजह से एक बड़ी धनराशि उनकी तनख्वाह से हर माह कट रही थी। अब भास्कर तो नहीं रहे।
उनका ऋण कौन व कैसे चुकाएगा? यह भी एक समस्या थी। संध्या के आगे आर्थिक संकट खड़ा हो गया कि किस तरह वह लोन की किस्त अदा करेंगी और किस तरह से बच्चों का लालन पालन करेंगी। कहते हैं कि हर चीज की क्षतिपूर्ति हो सकती है लेकिन मानवीय जीवन की नहीं।
लेकिन मुआवजे के तौर पर मिलने वाली धनराशि से उसका, उसके परिवार और बच्चों का थोड़ा भला जरूर हो सकता था। संध्या के लिए भास्कर का न होना एक अपूरणीय क्षति थी।
संध्या अपने पति की मृत्यु पर मिलने वाली सहायता राशि को लेने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी लेकिन परिवारवालों, शुभचिंतकों व दोस्तों के समझाने पर.. उनके द्वारा बार-बार, उसके छोटे दोनों बच्चों की दुहाई देने पर… संध्या बड़ी मुश्किल से टोल फ्री नंबर पर बात करने को तैयार हुई। उसने कंट्रोल रूम हेल्पलाइन नंबर डायल किया।
उधर से आवाज आई-
“हेलो, मैं मनोज.. आपकी क्या सहायता कर सकता हूं।”
“सर मैं अमरोहा से संध्या बोल रही हूँ। सर कोरोना के कारण मेरे हस्बैंड की मृत्यु हो गई है। मुझे आपसे यह जानकारी लेनी है कि मुआवजे की धनराशि प्राप्त करने को लेकर मृतक की जो फाइल हम BRC (ब्लॉक मुख्यालय) पर जमा करेंगे, उसमें कौन-कौन से कागज/प्रमाण पत्र लगेंगे?”
मनोज ने उन्हें विस्तार से सारी जानकारी दी और कहा कि आप जल्द से जल्द भास्कर जी की फ़ाइल जमा करवा दें ताकि वो फ़ाइल हम तक पहुंच सके और आपको जल्द ही मुआवजे की धनराशि प्राप्त हो सके।
जो कागजात मनोज सर ने बताए थे वे सभी कागजात संध्या के पास थे लेकिन ‘भास्कर के कोरोना होने की पुष्टि हेतु सिर्फ एक रिपोर्ट’ संध्या के पास थी। जिस अस्पताल में भास्कर की मृत्यु हुई थी, उस अस्पताल ने कोरोना को लेकर कोई भी प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया था।
अस्पताल में भर्ती कराने से पहले की वे सभी रिपोर्टस जो संध्या के पास थी.. वह उसने संभालकर रख रखीं थी.. जिनसे भास्कर को कोरोना महामारी से संक्रमित होने की पुष्टि होती थी।
मनोज सर ने संध्या को आश्वासन दिया और कहा-
“मैडम जी, आप परेशान मत होइये। आपके सभी साक्ष्य वैध हैं। आपको जानकारी के लिए बता दूं कि हमारे पास जितनी भी फाइल कोरोना से संबंधित जमा हो रही है.. अगर उसमें से एक भी साक्ष्य मृतक को कोरोना से संक्रमित होना दर्शाता है तो हर उस परिवार को मुआवजे की धनराशि भेजी जा रही है। हम किसी भी फाइल को रिजेक्ट नहीं कर रहे हैं। आप नि:संकोच होकर अपनी फाइल BRC पर जमा कर दीजिए।
BRC से फ़ाइल वेरीफाई होकर हम तक आएगी और यहां से हम उस फ़ाइल को वेरीफाई कर देंगे। ततपश्चात आपके खाते में मुआवजे की धनराशि क्रेडिट हो जाएगी। ” जानकारी लेकर संध्या ने उनका धन्यवाद अदा किया।
एक सप्ताह के अंदर ही…संध्या ने भास्कर की ‘कोरोना मुआवजे से सम्बंधित फाइल’ बीआरसी पर जमा कर दी।
कुछ दिनों बाद संध्या के पास फिर से मनोज सर की कॉल आयी।
उन्होंने संध्या से पूछा, “मैडम जी, आपने भास्कर की फाइल बीआरसी पर जमा कर दी या नहीं? आपने कॉल करके बताया नहीं?”
“जी सर, आपसे बात करने के एक सप्ताह के अंदर ही मैंने आपके द्वारा बताएं गए, सभी डॉक्यूमेंट के आधार पर फाइल बनाकर बीआरसी पर जमा कर दी थी। अब BRC से फाइल आगे बढ़ी या नहीं?? इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। न ही मैंने इसके बारे में जानकारी लेना उचित समझा। अगर मुआवजे की धनराशि मिलती है तो ठीक.. वरना कोई बात नहीं।” यह बोलकर संध्या शांत हो गई।
“आप परेशान मत होइए मैडम जी। आपको मुआवजे की धनराशि जरूर मिलेगी। आप मुझसे खुलकर बात कर सकती हो। घबराती क्यों हो? मुझे अपना दोस्त, शुभचिंतक ही समझो।
जो आपके साथ घटित हुआ है, ईश्वर न करे कि किसी के साथ ऐसा हो। जो आपका पर्सनल लॉस हुआ है, वह तो मैं आपको नहीं लौटा सकता.. न ही इसकी क्षतिपूर्ति कर सकता हूँ.. परन्तु जो भी मैं आपके लिए कर सकता हूं.. वह जरूर करूंगा। आपके आगे पूरी जिंदगी पड़ी है। यू मायूस मत होइये। अगर आप बेझिझक मुझसे बात करोगे तो मुझे अच्छा लगेगा। आपका मन भी हल्का हो जायेगा।”
संध्या ने उनकी इस बात का जवाब देना सही न समझा। बस यह कहकर फोन रख दिया-
“सर मैं इस स्थिति में नहीं हूं कि किसी से खुलकर बेझिझक होकर बात कर सकूं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपको मेरे काम का ध्यान रहा।”
अमरोहा जनपद में कोरोना में मृतक लोगों को सांत्वना धनराशि या मुआवजे की धनराशि देने के लिए एक बड़ा कार्यक्रम जिलाधिकारी महोदय के द्वारा आयोजित किया गया। उसमें मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी भी आमंत्रित हुए।
उन्होंने संध्या को भी मुआवजे की धनराशि का चेक प्रदान किया। जब संध्या को मुआवजे की धनराशि मिल गयी तो उसके लगभग 15 दिन बाद फिर से सुबह के 7 बजे के लगभग…मनोज का संध्या के पास फोन आया। संध्या ने कॉल रिसीव की। उधर से आवाज आई-
“मैडम जी, क्या आपको मुआवजे की रकम मिल गई?”
“जी सर, मिल गई। मार्गदर्शन करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”
“सिर्फ धन्यवाद से काम नहीं चलेगा संध्या जी।”
“मतलब?”
“मैडम, मैं आज जरूरी काम से अमरोहा होकर गुजर रहा हूं। मैं आपसे मिलना चाहता हूं।”
“बिल्कुल सर, आपका स्वागत है। हमें भी आपसे मिलकर अच्छा लगेगा। यह कितनी बड़ी बात है कि आप जैसा नेक इंसान हमसे मिलना चाहता है। हम लोगों के बारे में इतना सोचता है और जमीन से जुड़ा हुआ है। बिल्कुल सर, आप आ जाइये।”
” संध्या जी, आप मुझे कहां मिलेंगी? मैं सुबह 10:00 बजे तक अमरोहा पहुंचूंगा।”
“सर, मैं एक टीचर हूं। मैं अपने स्कूल में ही मिलूंगी। आप मेरे स्कूल आइये। मैं आपको स्कूल के सभी अध्यापकों और बच्चों से मिलवाऊंगी। सभी को आपसे मिलकर अच्छा लगेगा।”
स्कूल में आने की बात सुनकर मनोज चौक पड़े। वे बोले-
संध्या जी, स्कूल में नहीं। कहीं और मिलते हैं।”
“ये तो सम्भव नहीं है सर। मेरा स्कूल हाइवे के पास ही है। आपको आने में कोई दिक्कत नहीं होगी। रास्ता मैं बता देती हूँ।”
“आप समझ नहीं रही हो संध्या जी.. जो बात हम अकेले में कर सकते हैं। वह सबके सामने कहाँ हो पाएगी??”
अकेले मिलने वाली बात सुनकर संध्या का माथा ठनका। वह बोली-
” सर आप कहना क्या चाहते हैं?”
“आप बड़ी भोली हो। मैं यही कहना चाहता हूँ कि… क्या स्कूल में हम लोगों को प्राइवेसी मिल पाएगी? क्या हम एक दूसरे से अच्छे से मिल सकेंगे?? बात कर पायेंगे या समय दे पाएंगे?”
संध्या उसका इशारा समझ गई थी। वह उससे अकेले में मिलकर.. उसका शारीरिक शोषण करना चाहता था। उसको लगता था कि वह रुपए जो संध्या के खाते में मुआवजे के आए थे… उसकी मेहरबानी से ही आए थे। वह अब उसकी कीमत संध्या का शारीरिक शोषण करके वसूलना चाहता था.. जबकि इस मामले में उसका कोई रोल नहीं था।
उसका रोल सिर्फ इतना था कि सरकार ने संध्या जैसे दुखियारे और आर्थिक रूप से टूट चुके.. लोगों की मदद के लिए.. उनको मार्गदर्शन देने के लिए… मनोज को कोरोना हेल्पलाइन पैनल में रखा था। उसका काम सिर्फ इतना था कि ‘कोरोना संक्रमण से सम्बंधित पात्र लोगों’ की फ़ाइल चेक करके उसे कार्यवाही हेतु अग्रसारित करे।
मनोज का ऐसा घिनौना रूप भी हो सकता है। इसकी संध्या ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। उसको लगता था कि वह एक अच्छा इंसान है जो बार-बार उसकी कुशलक्षेम पता कर रहा है। लेकिन उसको यह नहीं पता था कि उसकी नज़र उसके शरीर पर है।
वह उसका यौन शौषण करने की वजह से बार बार उसको कॉल कर रहा है। मनोज को लगता था कि वह एक उच्च पद पर आसीन है। संध्या उसको मना नहीं कर पाएगी और आसानी से खुशी-खुशी उससे मिलने चली आएगी। संध्या ने उसकी किसी भी बात का जवाब देना सही नहीं समझा और फोन कट करके.. उसके नंबर को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया।
वह जान गई कि मनोज का इतनी हमदर्दी वाला रवैया उसके विधवा हो जाने के कारण था। लोग सच कहते हैं कि अगर परिवार में पिता, पति या बड़े भाई का साया नहीं रहता तो घर की बहू, बेटियों का शोषण करने वालों और उनकी इज़्ज़त लूटने वालों की कोई कमी नहीं है।
जिम्मेदारी वाले पदों पर आसीन लोग.. जो देखने में और व्यवहार में जेंटलमैन दिखते हो… जरूरी नहीं कि अच्छे इंसान ही हों। वे इंसान की खाल में खूंखार भेडिये, दरिंदे भी हो सकते हैं। इन लोगों का निशाना आर्थिक रूप से कमजोर, गरीब तबके की सुंदर खूबसूरत लड़कियां.. विधवा औरतें होती हैं।
इन लोगों को बस यह पता चल जाए कि इस लड़की या महिला का कोई सरपरस्त नहीं है.. तो वे उसको इम्प्रेस करने में जुट जाते हैं और मौका मिलने पर उनका शारीरिक व आर्थिक शोषण करते हैं। जरूरी नहीं है कि जो आपका भला कर रहा है, वह आपका शुभचिंतक ही हो।
वह एक खूंखार भेड़िया या दरिंदा भी हो सकता है.. जो अपना असली रंग मौका पड़ने पर दिखायेगा। ज्यादातर आपको ऐसे लोगों का तब पता चलता है.. जब वह आपका पूरी तरह से शोषण कर चुका होता है।
लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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