Diwali Katha
Diwali Katha

कोमल के पिता आज बहुत परेशान थे क्योंकि आज ही उन्हें पता चला था कि कुछ ही दिनों बाद दीवाली का त्यौहार आने वाला है और अब उन्हें भी ये चिंता सताने लगी थी कि हाथ में पैसे तो हैं नहीं दीवाली मनाने के लिए खर्चों का इंतजाम कैसे करेंगे। जब उनकी लाडली बच्ची दूसरे बच्चों को नए कपड़े पहनते और पटाखे फोड़ते देखेगी तो उसका भी तो मन करेगा, जब दूसरों को मिठाई खाते देखेगी तो उसका भी जी ललचाएगा और मन ही मन वो अपने पिता और उनकी गरीबी पर रोएगी।

आज उन्हें अपनी मिल मजदूर की नौकरी जिससे अब तक उनका घर चलता आया था वो काम छोटा लग रहा था।
इसी तरह सोचते सोचते अपनी साइकिल को हाथ में थामे आज वो पैदल ही घर आ गए थे और उन्हें ऐसे पैदल चलकर आते देखकर कोमल की मां को चिंता हुई, उन्होंने पूछा…. क्यों जी आज पैदल ही आए साइकिल खराब हो गई क्या।

कोमल के पिता….नहीं आज ऐसे ही पैदल चलने को मन हुआ तो आ गया। कोमल की मां को बड़ा अजीब सा लगा कि दिन भर की काफी मेहनत के बाद भी कोई इंसान भला पैदल चलना क्यों चाहेगा।

दूसरे दिन काम पर जाते वक्त कोमल के पिता अपनी पत्नी को बोल गए कि आज से वो दोनों शिफ्ट पर काम करेंगे, इस पर जब उसने कहा कि ऐसे में आराम कब करोगे तो उन्होंने मिल में काम ज्यादा होने का बहाना बना दिया, लेकिन कोमल की मां समझ गई की ये सब सामने आ रही दीवाली के इंतजाम के लिए है, सबकुछ जानकर भी वो कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि अपने परिवार की तंगहाली से वो भी वाकिफ थी।

अब दीवाली त्योहार आने तक कोमल के पिता ने जी तोड़ मेहनत की और दीवाली के इंतजाम के लिए रात दिन एक कर दिया, कुछ दिन बाद आखिर त्यौहार का दिन आ गया और आज काफी दिनों के बाद कोमल के पिता घर में थे।

दीवाली मना रहे बच्चों को देखकर दोनों पति पत्नी बहुत खुश हो रहे थे, कोमल की मां बोली… सुनो जी अब तो दीवाली मन गई अब आप एक ही शिफ्ट में काम करना हम जैसे तैसे गुजारा कर लेंगे लेकिन ऐसे रात दिन काम करने से आपकी तबियत खराब हो गई तो हमारा क्या होगा जरा सोचिए।

अपनी पत्नी के इस सवाल पर मुस्कुरा कर जवाब देते हुए कोमल के पिता अपनी पत्नी से….जरा देखो कोमल कितनी खुश है अपने दोस्तों के साथ कैसे खुश होकर फुलझड़ी और अनार जला रही है, नए कपड़ों में कितनी सुंदर लग रही है मेरी बच्ची उसकी खुशी देखकर ही मेरी दीवाली पूरी हो गई, मैं अपनी गरीबी के कारण उसकी खुशियां छीनना नहीं चाहता था।

अपने पति के मुंह से ये शब्द सुनकर उसकी पत्नी भी मुस्कुराकर कभी अपने पति को तो कभी दीवाली मना रही अपनी बेटी कोमल को देखती और मन ही मन प्रार्थना करती कि हे लक्ष्मी माता हम गरीबों पर भी कृपा करना, ज्यादा नहीं तो बस इतनी कृपा करना की हमारा जीवन सुखमय बीते और किसी चीज के लिए हमें दूसरों का मुंह ताकना या मन मारना न पड़े।

काश समृद्ध एवं सम्पन्न वर्ग के लोग इनके जैसे गरीबों और निर्धनों को कुछ सहायता करें तो इन बेचारों को जान हथेली में रखकर रात दिन काम करने पर मजबूर नहीं होना पड़ता और ये भी खुशियों भरी दीवाली मना पाते।

 

रचनाकार  –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

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