Mubarak ho Naya Saal

मुबारक हो नया साल | Mubarak ho Naya Saal

मुबारक हो नया साल

( Mubarak ho Naya Saal )

 

मुस्कानों का मौसम छानेवाला है,
नया साल अब आनेवाला है।
उगेंगे पेड़ों में नये बसंत के पत्ते,
पर्यावरण का कद भी बढ़नेवाला है।

कोहरा औ सर्दी से काँप रहा सूरज,
बर्फबारी से पर्वत ढंकनेवाला है।
अम्न का पैगाम कोई आकर तो बोए,
आँखों से जाम वो छलकनेवाला है।

बहे रोजगार की गंगा,मिले नौकरी सबको,
ऐसे जख्मों पे मरहम लगनेवाला है।
मुस्कुरा रही हैं दुल्हन -सी वो फसलें,
सोने -चांदी से घर भरनेवाला है।

लाल, गुलाबी, नीले -पीले, रंगों से,
नफरत का ‘ पर ` कटनेवाला है।
मिलन-जुदाई का पल सदा सजा रहे,
रफ्ता -रफ्ता वो पल आनेवाला है।

नहीं नोंचेगा ख्वाब तुम्हारी आँखों का,
शबाब गुलों पे खिलनेवाला है।
जाँतों का वो गीत खो गया,खोजो कोई,
पनघट पर वो गीत पलटनेवाला है।

सच सुनने को कोई अब तैयार नहीं,
छोड़ के अमृत, शराब पीनेवाला है।
बिगड़ रहा है रूप संस्कार का यहाँ,
देह पे कपड़ा खराब लगनेवाला है।

भूलो मत अपने जीवन की परिपाटी,
गाँव, शहर अब बननेवाला है।
चूसेंगे सब सीजन में आम जहांवाले,
लो हाथ में सुतुही टिकोरा लगनेवाला है।

जीवन का बस चाक चलाओ भाई,
हर चेहरे पे नूर चमकनेवाला है।
नहीं पड़ी हैं समय के गाल पे झुर्रियाँ,
तरक्की की वो पूँछ ऐंठनेवाला है।

लिट्टी -चोखा, सतुआ, कुछ भी खाओ,
वो मकर संक्रांति का शुभदिन आनेवाला है।
मत खींचो तुम टंगरी किसी का भाई,
लगता कोई चुनाव तो आनेवाला है।

नदियों खून बहा तब हमें मिली आजादी,
फिर से कोई पान चबानेवाला है।
खोने न पाए भाईचारा गंगा-जमुनी तहजीब से,
नेह -स्नेह का लेप लगानेवाला है।

जमीं से फलक तक देखो छाया नूतन वर्ष,
घी-शक़्कर वो आके खिलानेवाला है।
भृकुटी न ताने कहीं मिसाइलें फिर जग में,
मोहब्बत का वो बर्फ पिघलनेवाला है।

गुल से आकर लिपटेंगी नई तितलियाँ,
खजाना प्यार का भरनेवाला है।
चूँमेंगे वो भौरें कलियों को लेकिन,
चुटकीभर सिंदूर तो भरनेवाला है।

Ramakesh

रामकेश एम यादव (कवि, साहित्यकार)
( मुंबई )

 

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