मुहब्बत के झूठे रिवाजों से पूछो
मुहब्बत के झूठे रिवाजों से पूछो
मुहब्बत के झूठे रिवाजों से पूछो
वफ़ा चाहतों के फ़सानों से पूछो
यहाँ बंद सारे मकानों से पूछो
गिरी गाज जिन उन किसानों से पूछो
छुपा कौन दिल के खयालों में मेरे
उन्हीं के सुनों तुम इशारों से पूछो
रुलाया यहाँ कौन है चालकों को
यहां पे खड़े मेज़बानों से पूछो
वफ़ा का तुम्हें मोल हम क्या बताएं
कभी गिरते आँखों के धारों से पूछो
कभी बात आए जफ़ा की हमारी
महल से निकल कर बगानों से पूछो
तुम्हें क्या बताए जफ़ाएं क्या उनकी
झुकी तुम उसी की निगाहों से पूछो
गुजारे तुम्हारे बिना दिन महीने
बसे मेरे दिल में विरानों से पूछो
मिला किस तरह से प्रखर धुंध में था
सिमटती हुई उनकी बाहों से पूछो
तबीयत प्रखर ये मचल ही जायेगी
पता जो कभी उन बहारों से पूछो
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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