मुहब्बत से कभी देखा नहीं है
मुहब्बत से कभी देखा नहीं है
मुहब्बत से कभी देखा नहीं है!
जाने क्यूं वो होता अपना नहीं है
पराया कर गया वो उम्रभर को
मुहब्बत का रिश्ता रक्खा नहीं है
बढ़ेगी प्यार की बातें कैसे फ़िर
इशारा भी कोई उसका नहीं है
मुहब्बत का उसे कैसे दूं में गुल
कभी वो गुफ़्तगू करता नहीं है
गया वो छोड़कर आज़म नगर को
यहां दिल मेरा अब लगता नहीं है