मुझे मुहब्बत की वह ज़माना याद है

मुझे मुहब्बत की वह ज़माना याद है

मुझे मुहब्बत की वह ज़माना याद है

 

 

मुझे मुहब्बत की वह ज़माना याद है

तुम्हारा हम से रूठ जाना याद है

 

तुम्हे याद हो के ना उसका याद हो

हमें दिन रात का फ़साना याद है

 

उफ़्फ़ यह मुहब्बत का सजा भी

अब तक हमको तेरा बहाना याद है

 

बीमारी-ए-दिल का तड़पना क्या खूब है

पहले-पेहल का दिल लगाना याद है

 

ज़िक्र-ए-फ़िराक़ में रोना रात भर

आशकी में अश्क बहाना याद है

 

नियत-ए-शौक़ में इज़्तिराब होना

‘अनंत’ का वह ठिकाना याद है

 

शायर: स्वामी ध्यान अनंता

( चितवन, नेपाल )

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