आँखों से पर्दा को हटा
मेरी साँसों के धारा से उभरता हुआ, फनकारी देख
आँखों से पर्दा को हटा और अपना तरफदारी देख
ऐ सख्स, तू इल्म-ए-उरूज़ देख, मेरी मुहब्बत न देख
तुझे है गुरूर खुद पर ज़रा सा तो मेरी कलमकारी देख
मुहब्बत में भी क्या मुनाफा का हिसाब करता है कोई
तू अन्दर से भिकारी है सख्स, अपनी दुनियादारी देख
वो एक है जो इश्क़ को रूमी की इबादत सा करता है
में पत्थर दिल उसके क़रीब हूँ, उसकी दिलदारी देख
जिन भीड़ में तुझे सांस लेना भी मुहाल हो जाए
सो भीड़ में ठहर और नयी पनपती जादूगरी देख
आप ही में ‘अनंत’ आना का तीर दिल के कमान से चला
आप ही हो सन्यासी, आप ही संसारी, एहि अदाकारी देख
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )
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