मुझको गुरुदेव का सहारा है | Mujhko Gurudev ka Sahara Hai
( 2 )
मुझको गुरुदेव का सहारा है
राह में मेरी यूँ उजाला है
राह टेढ़ी लगी मुझे जब भी
पार गुरुदेव ने उतारा है
अब नहीं डर किसी भी दरिया का
हमने गुरुदेव को पुकारा है
नाम गुरुदेव का लिया जैसे
मुझको फिर मिल गया किनारा है
नाम उनका लिए बिना अब तो
मेरा होता नही गुज़ारा है
जाके मंदिर भी क्या करूँ अब मैं
जब शरण उनके ही शिवाला है
उनकी तारीफ़ में कहूँ क्या मैं
जिनकी ग़ज़लों का बोलबाला है
नाम उनका बड़े अदब से लो
उनका ज़लवा जहाँ में आला है
नाम उनका प्रखर विनय साग़र
दिल ये जपता उन्हीं की माला है
( 1 )
वही उस्ताद हैं मेरे ग़ज़ल लेखक विनय साग़र जी
जिन्हें है जानती दुनिया ग़ज़ल सम्राट साग़र जी
हमारी भी ग़ज़ल की तो करे इस्लाह साग़र जी
उसी पथ पर सदा चलता करें जो चाह साग़र जी
बड़ा अनभिज्ञ हूँ मैं है नहीं कुछ ज्ञान भी मुझको
मगर हर पथ की बतलाते मुझे हैं थाह साग़र जी
शरण मेन आपकी रहकर सदा उस्ताद है माना
यहाँ मुझको पहुँचने में लगे हैं माह साग़र जी
सभी ग़ज़लें नहीं हैं मेरी आज भी सुंदर
बढ़ाते हौसला मेरा लिखे जो वाह साग़र जी
नही भटके कभी भी शिष्य उनके राह से अपनी
बताते शिष्य सब उनके करें परवाह साग़र जी
बहुत ही दूर था मैं तो ग़ज़ल की दोस्त दुनिया से
यहाँ आया हूँ जब पकड़े हैं मेरी बाँह साग़र जी
विधा कोई न बाकी है न जिसका ज्ञान हो उनको
सभी छन्दों की दिखलाते हैं हमको गाह साग़र जी
सँभल कर चल प्रखर थोड़ा इधर की है डगर टेढ़ी
दिखाते हैं सदा मुझको सुगम वह राह साग़र जी
( बाराबंकी )