दर्द के दौर में | Dard Ke Daur Mein
दर्द के दौर में
( Dard Ke Daur Mein )
मौत थीं सामने ज़िन्दगी चुप रही
दर्द के दौर मैं हर खुशी चुप रही
जिसकी आँखों ने लूटा मेरे चैन को
बंद आँखें वही मुखबिरी चुप रही
दीन ईमान वो बेच खाते रहे
जिनके आगे मेरी बोलती चुप रही
बोलियां जो बहुत बोलते थे यहाँ
उन पे कोयल की जादूगरी चुप रही
वो जो मरकर जियें या वो जीकर मरें
देखकर यह बुरी त्रासदी चुप रही ।।
बाढ़ में ढ़ह गये गाँव घर और पुल ।
और टेबल पे फ़ाइल पड़ी चुप रही ।।
देखकर ख़ार को हम भी खामोश थे ।
जो मिली थी प्रखर वो खुशी चुप रही ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
यह भी पढ़ें:-
महेन्द्र सिंह प्रखर के मुक्तक | Mahendra Singh Prakhar ke Muktak