Mujhko meri zameen pe rehne do
Mujhko meri zameen pe rehne do

मुझको मेरी ज़मीं पे रहने दो

( Mujhko meri zameen pe rehne do )

 

 

‘हाँ मैं हूँ’ इस यकीं पे रहने दो।
मुझको मेरी ज़मीं पे रहने दो।

 

पोछ लो अपने आस्ताँ का लहू,
दाग़ मेरी जबीं पे रहने दो।

 

तेरी यादों से ही उजाला है,
चाँद को अब वहीं पे रहने दो।

 

यूँ भी हर राज़ फ़ाश होना है,
इक भरोसा अमीं पे रहने दो।

 

क्यों हक़ीक़त का डर दिखाते हो,
ख़्वाब कोई कहीं पे रहने दो।

 

इश्क़ तो आपको भी था हमसे,
फिर भी तोहमत हमीं पे रहने दो।

 

दो सदा इक चराग़ को ‘ख़ुरशीद’,
अब सफ़र को यहीं पे रहने दो।

❣️

शायर: ©’ख़ुरशीद’ खैराड़ी जोधपुर।
अमीं – अमानतदार

 

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