मुझको पहचाने 

मुझको पहचाने | Mujhko Pahchane

मुझको पहचाने 

( Mujhko Pahchane )

हवा में ऐसे उड़ाऊँगा अपने अफ़साने
ज़माने भर का हरिक शख़्स मुझको पहचाने

मिज़ाजे-दिल भी कहाँ तक मेरा कहा माने
छलक रहे हैं निगाहों से उसकी पैमाने

मुझे सलाम यूँ करते हैं रोज़ रिंदाने
बुला बुला के पिलाते हैं मुझको मैख़ाने

मैं महवे जाम न होता तो और क्या होता
पिला रहा था निगाहों के कोई पैमाने

वफ़ा की राह में ऐसे निशान छोड़े हैं
करेंगे नाज़ हमेशा मुझी पे याराने

मेरे ख़याल की दुनिया सँवारने वाले
बुला रहे हैं तुझे कब से मेरे वीराने

तेरी जुदाई ने क्या हाल देख कर डाला
तड़प रहे हैं तेरे ग़म में दिल के काशाने

ग़रीब दिल तो अमीरों का इक खिलौना है
ग़रीब पर जो गुज़रती है कोई क्या जाने

लुटाया प्यार है उन पर तो इस तरह साग़र
चराग़े-लौ पे लुटाते हैं जैसे परवाने

Vinay

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

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