उंगलियां उठा देंगे | ग़ज़ल दो क़ाफ़ियों में
उंगलियां उठा देंगे
( Ungliyan Utha Denge )
ज़मीने-दिल पे तो हम कहकशां भी ला देंगे
तमाम लोग यहाँ उंगलियां उठा देंगै
कहीं नमक तो कहीं मिर्चियां मिला देंगे
दिलों में लोग यूँ हीं दूरियां बढ़ा देंगे
ज़माना हमको भी मुजरिम क़रार दे देगा
किसी से ऐसी कोई दास्तां लिखा देंगे
किसी को सच की भी अब पैरवी नहीं भाती
ये सारे लोग तो बस हां में हां मिला देंगे
हमारी बात पे तुम ऐतबार जो कर लो
अकेले हम हैं मगर कारवां बना देंगे
ये वक़्त वक़्त की बातें हैं सोचते क्या हो
ये बेज़बान भी कल को ज़बां चला देंगे
क़सम तुम्हारी मुहब्बत की हमको है साग़र
वफ़ा के फूलों से हम आशियां सजा देंगे
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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