मुंशी प्रेमचंद!
( Munshi Premchand )
!! शत -शत नमन !!
( 1)
मुंशी प्रेमचंद को कभी न भुलाया जाएगा
उन्हें पाठ्यक्रम में हमेशा पढ़ाया जाएगा।
सन अट्ठारह सौ अस्सी,लमहीं में जन्में थे
सज़दा उस भूमि का हमेशा किया जाएगा।
त्याग,तेज और लेखनी के थे वो बहुत धनी
उनके संकल्पों को सदा दोहराया जाएगा।
आजादी के उस यज्ञ में बहुत कुछ होम किए
उन वसूलों का लिबास सदा पहना जाएगा।
गोदान गबन निर्मला सेवासदन प्रेमा प्रतिज्ञा
इन उपन्यासों से बहुत कुछ सीखा जाएगा।
ईदगाह पूस की रात कफन पंचपरमेश्वर
घीसू माधव बुधिया को कौन भुला पाएगा।
बूढ़ी काकी नमक का दरोगा मंत्र गुल्ली डंडा
जब जब कोई पढ़ेगा तरोताजा हो जाएगा।
वसुधैव कुटुंबकम में थी उनकी गहरी आस्था
ऐसा साहित्य-सम्राट सर आँखों रखा जाएगा।
यथार्थ के धरातल पर सदा चलाये वो लेखनी
उनकी लेखनी को सदा सल्यूट किया जाएगा।
खाने और सोने का नाम नहीं है जिंदगी
सोजे वतन को देश कभी ना भुला जाएगा।
( 2 )
करें नमन साहित्य-सम्राट को,
कितनी अच्छी कफन कहानी।
पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा,
कौन भूलेगा, दिल की रानी।
गबन,गोदान,ठाकुर का कुँआ,
कितनी सबको भाती है।
बुधिया, घीसू, माधव की रात,
आज भी हमको रुलाती है।
बूढ़ी काकी, वो गुल्ली-डंडा,
कैसे भूलें हम पूस की रात।
दो बैलों की कथा, तगादा,
नशा, शांति, मंत्र, वज्रपात।
एक से बढ़कर एक कहानी,
वो भरी हुई हैं भावों से।
आजादी की अलख जगाकर,
तब हुंकार उठी उन गाँवों से।
धन्य कोख है, धन्य वो माता,
और धन्य वो लमहीं गाँव।
बादशाह बेताज कलम का,
चली रही साहित्य की नाव।
पंच परमेश्वर अब रहे नहीं,
नित्य बढ़ रहे गाँव में केस।
सुलझे झगड़े भी उलझाकर,
हिला रहे हैं अपना देश।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई
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