मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां
मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां
मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां।।
सामना होश से ग़र करेगा यहां।।
चैन पाते नहीं जिंदगी में कभी।
वैर जिनके दिलों में पलेगा यहां।।
मौज बेशक मना लो भले लूट से।
ज़र न ज्यादा दिनों वो टिकेगा यहां।।
दिल कभी भी किसी का दुखाता है जो।
क्या सुकूं से कभी वो रहेगा यहां।।
छल-कपट जो करेगा किसी से कभी।
फिर उसे भी कोई तो छलेगा यहां।।
चीर रँग जाता डूबे किसी रंग में।
रंग ऐसे ही सँग का चढ़ेगा यहां।।
काम से जो बचा भूल कैसे करे।
भूल होगी जभी कुछ करेगा यहां।।
कोई अफसोस होता नहीं फिर “कुमार”।
वक्त के साथ जो भी चलेगा यहां।।
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Bahot acha hai. Keep it up Munish ji. Aap ki kavita prayah dil ko chunewali hoti hai.
सर जी , बहुत ही अच्छी कविता है।