Arth ka Bhi
Arth ka Bhi

अर्थ का भी

( Arth ka Bhi ) 

 

अर्थ को भी शब्द से कुछ अलग हटना चाहिये ।
मंजिलों से भी कभी थोड़ा भटकना चाहिये ।।

अर्थ का दिल में ठिकाना शब्द यायावर हुये।
अर्थ का भी घर अलग शब्दों से बनना चाहिये।।

साथ रहते है कभी, तो वे कभी लड़ने लगें ।
शब्द के भी कई अलग मतलब निकलना चाहिये ।।

अर्थ धोखेबाज हैं निकले तो अपने न रहे।
शब्द दोधारी संभल कर उन पे चलना चाहिये ।।

शब्द गाली है प्रशंसा शब्द है और व्यंग्य भी ।
ब्रहा भी है उन का आदर हमें करना चाहिये ।।

ग्रंथि है शब्दार्थ चित जड़ की तरह शाश्वत हैं।
वे शब्द ईश्वर, अर्थ हम, शब्दार्थ मिलना चाहिये ।।

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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