माय साइलेंट लव

माय साइलेंट लव : प्रेम बजाज की अद्वितीय रचना

प्रस्तुत उपन्यास ‘माय साइलेंट लव’ (जस्ट फाॅर यू) लेखिका प्रेम बजाज का पहला उपन्यास है किन्तु पढ़ने के बाद किसी भी पहलू से पहला नहीं लगता। अपने सालों के अनुभवों का निचोड़ सुंदर शब्दों में पिरोकर कहानी का गुंफन किया है।

इस उपन्यास के मुख्य किरदार को वास्तविक जीवन में उपेक्षित व्यक्ति को मद्देनजर रखकर लिखा गया है। एक महिला के जीवन की विडम्बना बहुत करीने से उकेरकर पाठकों के सामने परोसी गई है।

अपने प्यार को भीतर ही भीतर जीते आख़री साॅंस तक चाहते रहना और आख़िर में उसके ही सीने पर सर रखकर अनंत की डगर पर सफ़र करते सुकून की मौत मरना।

कहानी के मुख्य किरदार के उम्र की यात्रा में भावनाओं के रंग भरकर लेखिका ने एक सुंदर सी प्रेम कहानी को गढ़ा है। एक वास्तविक कहानी को हल्का सा कल्पनाओं का पैरहन पहनाते उपन्यास को अलंकृत किया है।

इस क़िताब में एक नारी की भरी-पूरी ज़िंदगी के हर रंग के ऐसे-ऐसे दिलचस्प क़िस्से हैं कि अधिकतर हम कभी सकते में आ जाते हैं तो कभी हतप्रभ रह जाते हैं।

या फिर पढ़ते-पढ़ते कई बार उदासी के साये में रुँधे गले के साथ अवाक हो जाते हैं। हर किरदार अपने आप में लाजवाब, हर किरदार के संवाद जानदार। पढ़कर मुॅंह से कभी आह तो कभी वाह निकल जाती है।

उपन्यास के किरदार के जीवन की कथा ऐसी ही होनी चाहिए : ड्रामेटिक और ट्रेजेडी से भरपूर तब जाकर एक बेस्ट सेलर किताब सफ़लता की बुलंदियों को छूती है। उपन्यास के केंद्र में एक ऐसा किरदार है जिसके प्रारब्ध के साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ दर्द जुड़ा है।

शादी जैसे पवित्र रिश्ते से उम्मीद लगाएं बैठी आशा को न पति का प्यार मिलता है न ससुराल वालों की सहानुभूति। अपने हौसले और हुनर के दम पर एक मुकाम हासिल करती है और वो भी उम्र के उस आख़री पड़ाव पर जीवन की खुशी यानि कि अपने पहले प्यार को पाती है।

नाम के अनुरूप ही यह क़िताब पन्ना-दर-पन्ना आशा बजाज की शख्सियत से रू-ब-रू करवाती है। किसी दार्शनिक अवधारणाओं का उल्लेख किए बिना, लेखन से भटके बिना किरदार की अस्तित्वगत शक्ति को इंगित करती ये कथा इतनी मोहक और मार्मिक है कि एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो बस खो जाते हैं।

अनुभवी साहित्यकारां का यह उपन्यास बेनमून शब्दों के मोतियों को भावनात्मक तरीके से शानदार शैली के धागे में पिरोई लाजवाब कृति है। एक बार पढ़ने बैठते हैं तो बीस, पच्चीस पेज से मन ही नहीं भरेगा।

पेज दर पेज भावों का आवागमन ललचाता है, दो पेज और पढ़ लूॅं? साथ ही उपन्यास का नाम के अनुरूप उत्तरोत्तर बढ़ती कहानी रसप्रद बनती जा रही है। उपन्यास का हर पहलू बेमिसाल है।

क्या शैली, क्या शब्दों का चयन और हर पात्रों के संवाद पर तो मुॅंह से बस वाह, वाह और वाह ही निकलती है। साहित्य जगत को इतना सुंदर उपहार देने हेतु लेखिक को बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं।

हर संवाद का अर्थपूर्ण वाक्य विन्यास इतना सहज है कि पढ़कर भावानुवाद की जरूरत ही महसूस नहीं होती आप बस बहते जाते है। शब्दों व भावों का उतार-चढ़ाव और विराम-अर्धविराम आपको ऐसा महसूस करवाता है मानों आप कोई फ़िल्म देख रहे हो।

वाक्यों के बीच में अनावश्यक कॉमा व अन्य चिन्हों का कम-से-कम प्रयोग लेखिका की कुशलता का प्रमाण है। ‘माय साइलेंट लव’ के हर उम्दा पहलू को मद्देनज़र रखते हुए लेखिका को वर्तमान युग की श्रेष्ठ लेखिक का सम्मान देना बिलकुल अतिशयोक्ति नहीं होगी।


समीक्षक: भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

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