ना ही इंकार ना ही इजहार | Na hi inkar na hi izhar
ना ही इंकार ना ही इजहार
( Na hi inkar na hi izhar )
ना ही इन्कार किया और ना ही इजहार किया।
तुझको आँखों में बसा कर सिर्फ इन्तजार किया।
मै भटकता ही रहा शाख, से टूटे पत्तो की तरह,
तुझमे भी प्यार जगे, वक्त का एतबार किया।
उम्मीदों से भरे कलश
उम्मीदों से भरे कलश में, पानी थोड़ा कम है।
भरते भरते जीवन बीता,फिर भी थोड़ा कम है।
पानी की चाहत में तुझको, बीता ये यौवन है।
फिर भी तृष्णा कम न हुई,लगता है थोडा कम है।
चेतन मन
चेतन मन में प्रेम प्रसून का अंकुर होना तय है।
जो मन तुझको देख ना पिघले, समझो वो निष्ठुर है।
कोमल भाव नयन से जागृति अन्तर्मन झिझोंर रहे,
शेर हृदय तुमसे मिलने को हर पल ही आतुर है।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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