Na Kahiye Baat
Na Kahiye Baat

ना कहिए बात

( Na kahiye baat )

 

न कहिए किसी से दिल की बात
बात बातमें ही बातों का रंग बदल जाता है
समझते हैं जिसे आप अपने बेहद करीब
कल वह किसी और के महफिल में नजर आता है

आईना भी कभी अपना खास नहीं होता
दिलों की दूरी में कोई भी अपने पास नहीं होता
परछाई भी छोड़ देती है साथ जब अंधेरे में
तब उजाले पर भी कभी विश्वास नहीं होता

यकीन, दिल से कहो खुद पर भी कहां होता है
छुपाई न गई बात जब खुद ही आपसे अपनी
तब छुपा लगा कोई आपकी बात को भला कैसे
आपसे बेहतर होगा कोई और भला कैसे

आज की बात भी कल एक जैसी नहीं रहती
सुबह भी शाम को एक जैसी नहीं रहती
आंगन के फूल भी मुरझा ही जाते हैं शाम तक
हर रात की चांदनी भी एक जैसी नहीं होती

वक्त भी तौलता है आपको आपके साथ
आपकी हर बात पर वक्त की नजर रहती है
हर बात को रखिए संभाल कर भीतर अपने
कहिए हर बात को केवल वक्त की बात पर

कहिए किसी से दिल की बात बातों का रंग बदल जाता है

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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