Gunagunati Dhoop
Gunagunati Dhoop

गुनगुनाती धूप

( Gunagunati dhoop ) 

 

गुनगुनी धूप में बैठो तुम जरा,
जिंदगी सुहानी है मजा लीजिए।
सर्दी सताए जब भी कभी,
खुद को धूप से सजा लीजिए।

धूप लगती प्यारी ठंडक में हमें,
सर्दी सारी अब भाग दीजिए।
राहत देती हमें ताजगी से भरी,
थोड़ा धुप में भी सुस्ता लीजिए।

रोगों से रक्षा धूप कर देती,
नव स्वप्न सुहाने सजा लीजिए।
फुर्सत मिल जाए काम से कभी,
गुनगुनाती धूप जरा लीजिए।

तन बदन निरोगी उमंगों भरा,
धूप में बैठ मेवे भी खा लीजिए।
कहो कैसे कटी सर्द वो रातें,
धूप में आकर हमको बता दीजिए।

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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