नफ़रत के ही देखें मंजर बहुत है!
नफ़रत के ही देखें मंजर बहुत है!

नफ़रत के ही देखें मंजर बहुत है!

 

 

नफ़रत के ही देखें मंजर बहुत है!

मुहब्बत से ही दिल बंजर बहुत है

 

मुहब्बत का दिया था फूल जिसको

मारे नफ़रत के ही पत्थर बहुत है

 

किनारे टूटे है पानी के  ऐसे

हुऐ सब खेत वो बंजर बहुत है

 

किताबे होनी थी जिन हाथों में ही

उन हाथों में देखें  ख़ंजर बहुत है

 

सड़को पे आ गयी है जिंदगी अब

बहे सब बाढ़ में ही घर बहुत है

 

ऐसा घेरा मुझे है   मुफ़लिसी ने

निगाहें अश्कों में ही तर बहुत है

 

मिटा दूंगा अदूँ अपनें आज़म सब

बदले की  आग वो अंदर बहुत है

 

 

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शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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निगाहें अश्कों में ही तर रही है!

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