नयनों से बरसे अंगारे
( Naino se barse angare )
नयनों से बरसे अंगारे फिर नेह कहां बरसाएंगे।
जो शीश काटने वाले हैं आशीष कहां दे पाएंगे।
खड्डे खोदे मुंह के आगे रस्ता कैसे बतलाएंगे।
नोच नोचकर खाने वाले वो दर्द कहां मिटाएंगे।
जिनकी नियत में खोट भरा प्यार कहां से लाएंगे।
वाणी के तीर चलाते जो हृदय छलनी कर जाएंगे।
सुविधाओं के भोगी है संकट कैसे सह पाएंगे।
जो पीर पराई न जाने वो दानव ही कहलाएंगे।
जो अड़चन का भंडार भरे वो साथ कहां दे पाएंगे।
तूफानों का बाजार बने वो बहार कहां से लाएंगे।
बाधाएं जिनकी कुदरत है खुशियां चट कर जाएंगे।
आस्तीन के सर्प विषैले जहरीले फन ही फैलाएंगे।
दुष्चक्रों के जाल बुनते वो पुष्प कहां बरसाएंगे।
टांग खींचने वाले हमको तरक्की क्या दे पाएंगे।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )