Namo Narayan

नमो नारायण – गुरु जी | Namo Narayan

सौम्य से दिखते चेहरों के बीच एक अनकहा दर्द हृदय में छुपाए रिसेप्शन पर आने जाने वालों को मधुर मुस्कानों से सबका स्वागत करती है । पहली बार जब उन्होंने मुझे देखा तो पहचान नहीं होने के कारण अपनी उसी स्टाइल में पूछा – ” आपको किसी से मिलना है क्या? इंक्वारी के लिए आए हैं क्या? अच्छा बैठिए?”

और उन्होंने कर्मचारियों को पानी लाने का आदेश दिया। धीरे-धीरे जब उन्हें मालूम हुआ कि मैं योग शिक्षक हूं तो बोली – “माफ करना गुरुजी! पहचान नहीं होने के कारण ऐसा हो गया! अच्छा गुरुजी आपने कोई अपना अलग से प्रणाम करने के लिए शब्द नहीं ढूंढा!

हमारे गांव के गुरु जी हैं जब हमारे यहां आते हैं तो ‘नमो नारायण’ बोलते हैं । अब से हम भी यदि आपको एतराज ना हो ‘ नमोनारायण गुरुजी’ बोले तो कैसा रहेगा। कहते हुए अपने मोतियों जैसे चमकीले दांतों की छटा चारों ओर बिखेरने लगी।

अब एक सिंबल बन गया है ‘नमो नारायण गुरूजी’ । वैसे तो स्टाफ के डायरेक्टर मैनेजर के अलावा सभी गुरु जी कहते हैं। परंतु उनकी वाणी की मृदुता जैसे हृदय को छू गई हो। मेरे अंदर एक जिज्ञासा सी जगी कि इतनी कम उम्र में वह क्यों नौकरी करना चाहती है ?

क्या घर परिवार में कोई परेशानी है? तो बोली -” गुरु जी मैं पढ़ना चाहती हूं परंतु हमारे घर वाले हमारी शादी करना चाहते हैं। हमारे परिवार में कम उम्र में ही शादियां हो जाती हैं । मैं यहां 8 घंटे ड्यूटी भी करती हूं। घर का सारा काम भी करती हूं और जो समय मिलता है पढ़कर ग्रेजुएशन की परीक्षा भी देना है।

मैं आईएएस ऑफिसर बनकर देश की सेवा करना चाहती हूं। कभी-कभी यह इच्छा होती है कि जहर खाकर जीवन समाप्त कर दूं मैं स्वयं दूसरों को मोटिवेशन देती हूं परंतु हमारे जीवन में यह अवसाद क्यों है ?कुछ समझ में नहीं आता ?
क्या स्त्री होने के नाते हमें स्वतंत्र जीने का अधिकार नहीं है ?

क्या मेरी वर्दी पहनने की इच्छा यूं ही खत्म हो जाएंगी ?जब मैं किसी महिला पुलिस को देखती हूं तो अपने आप में से घुटन महसूस करती हूं । कास मुझे भी वर्दी पहनने का एक बार मौका मिलता।”

मुझे चुप देखकर बोली -” गुरुजी आप तो पुरुष हो! आपको क्या मालूम स्त्री का जीवन कितना दर्द से भरा होता है! वह जन्मते ही माता-पिता की आश्रित होती है । शादी के बाद पति की एवं बुढ़ापे में बच्चों के कौरे पर पलती है। जो स्त्री आत्मनिर्भर है भी तो पुरुष उस पर अपना अधिकार जमाए रहते हैं।”

कुछ देर तक नीरव सी शांति चारों ओर व्याप्त हो गई । मैं कुछ क्षण तक सोचने लगा क्या उत्तर दू इस बच्ची को ! कैसे समझाऊं कि इस दुनिया में जीना फूलों का गुलदस्ता नहीं बल्कि कांटों भरा पथरीला रास्ता है ।

जहां एक क्षण माता-पिता भी हमारे दुश्मन हो जाते हैं। वह भी हमारे कल्याण की अपेक्षा अपना स्वार्थ ज्यादा सिद्ध करना चाहते हैं‌ । कैसे समझाऊं बच्ची को कि यह जिंदगी भी एक किताब है जिसमें हमें अच्छाई को ग्रहण कर बुराई से भूल जाना चाहिए । जिंदगी हमारे साथ किया गया एक मजाक है ।”
इसीलिए तो रामधारी सिंह दिनकर कह गए की–
चूमकर मृत को जिलाती जिंदगी,
फूल मरघट पर खिलाती जिंदगी।

शांति को भंग करते हुए बोला-” देखो बेटा! तुम्हें एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं जो सत्य घटना पर आधारित है।
एक बच्चा बीमार था । उसकी मां को जब लगा कि बच्चा अब नहीं बचाने वाला तो मां ने पूछा बेटा तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? जिसे मैं मरते दम तक पूरा करना चाहती हूं ? तो बच्चा बोलता मां अब तो लगता है जीवन खत्म होने वाला अब क्या करूंगा ख्वाब देखकर ?

परंतु मां जब तू पूछती हो तो मैं बता देना चाहता हूं कि मैं फायर ब्रिगेड का अधिकारी बनना चाहता हूं ।
मां ने धैर्यपूर्वक कुछ सोचा फिर बोली -” मैं एक मां हूं तुझे 9 माह गर्भ में धारण कर अपने रक्त मांस से तुझे सिंचा है ।मैं तुम्हारी इच्छा जरुर पूरी करूंगा।”

मां तो मां होती है ।उसने फायर ब्रिगेड का लिबास अपने बेटे को पहना कर अपने गोद में उसके सर को सहलाने लगी । तभी प्राण पखेरू उड़ गए ।
मां अपलक निहारे जा रही थी कि आखिर उसने अपने बेटे की अंतिम इच्छा पूर्ण कर दी।

बेटा जिंदगी कुछ ऐसी ही है। जहां फूल है तो कांटे भी हैं।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

यह भी पढ़ें :-

जिंदगी का सफरनामा ( एक शिक्षक की आत्मकथा )

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *