नन्हीं लाडली | Nanhi Ladli
नन्हीं लाडली
( Nanhi Ladli )
अम्मा की लाडली…अब्बा की प्यारी थी मैं,
थोड़ी नटखट सी…थोड़ी गुस्से वाली थी मैं,
मेरे अपनों के दिलों पे बस मेरा ही राज़ था,
उनके होंठों पर मुस्कान बनके खिली थी मैं,
न जाने कितनी ही हसरतें पलकों पे सजे थे,
जब अब्बा की दहलीज़ छोड़के चली थी मैं,
मैं घबराई थी बेग़ाने रिश्तों का हुजूम देखके,
खुदको मारके रफ़्ता-रफ़्ता उनमें ढली थी मैं,
मेरे एहसास कुचले गए जैसे…मैं इंसान नहीं,
वो नहीं सोचे उन सा ही नाज़ो से पली थी मैं,
फिर एक रोज़ मेरी रात की भी सुबह हो गई,
जब क़दमों में अपने जन्नत ले के चली थी मैं,
आज जबकि ज़िन्दगी की दोपहर हो चली है,
पीछे देखा अब भी मोहब्बत से खाली थी मैं!
आश हम्द
( पटना )