Dastan-e-Dil
Dastan-e-Dil

दास्तान ए दिल

( Dastan-e-Dil )

 

चले जाओगे इक रोज दूर मुझसे
चले जायेंगे दूर हम भि तुझसे
फ़क्र है तब भी मुझे तुझ पर
यादों में हम जरूर आयेंगे

निभा लो आज जैसा भि चाहो
करें क्या शिकवा गिला तुमसे
भले सिवा दिल के हमारे न हुए
इक रोज हम भी रूह में उतर जायेंगे

दुनियावी रिश्ते हैं दिखावे के
निभायेंगे कायनाती हक हम
होगी मुलाकात हश्र के रोज
खुदा से हि तुझे हम मांग लेंगे

दिल ए नसाज़ को होगा सुकून तभी
होंगे हम साथ के सहारे
होंगीं न दीवारें जहाँ कि तब
फ़कत तुम हमारे हम तुम्हारे

यही तो हैं मायने भी चाहत के
न हों जिश्म दो न हों जान दो
न हो कोई अलग पहचान अपनी
खुदा से दुआ में हम यही कहेंगे

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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