
कण कण पाए हरि
( Kan kan paye hari )
हरिहरण घनाक्षरी
घट घट वासी हरि, रग रग बसे हरि।
रोम रोम रहे हरि, सांस सांस मिले हरि।
कण कण पाए हरि, जन मन भाए हरि।
घर घर आए हरि,भजो राम हरि हरि।
पीर हर लेते हरि, भव पार करे हरि।
यश कीर्ति देते हरि,आय झोली भरे हरि।
नर नारायण हरि, भक्त पारायण हरि।
भव तारायण हरि, नाम रसायन हरि।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )