नशा
नशा

“नशा” 

( Nasha )

–>हर काम का अपना “नशा”है |
1.हर पल नशे में है दुनियां, कोई तो मिले जो होश मे हो |
नशे में डूबे हैं सून्य दिल, कोई तो मिले जो जोश में हो |
कोई दौलत के नशे में चूर, डूबा फिरता है राहों मे |
कोई इश्क के नशे मे चूर, उलझा फंसा है बाँहों मे |
–>हर काम का अपना “नशा”है |
2.किसी को मेहनत का नशा, आगोश में समेटे है |
तो कोई आलस का नशा, सारे बदन मे लपेटे है |
कोई ईमानदारी की नशीली, चादर ओढ़ सोता है |
बेईमानी का नशा तो, सरेआम रगों मे दौडता है |
–>हर काम का अपना “नशा”है |
3.कोई चुगली के नशे मे लिप्त, चुगल-खोर बन जाता है |
नशा गुरूर का भी देखो, घमंण्डी नाम से जाना जाता है |
कोई उडता है आसमान मे, यश के पंख लगा कर |
कोई अपयश का नशेडी है, लोग कहते हैं बता कर |
–>हर काम का अपना “नशा”है |
4.कोई अच्छाई के रास्ते, नशे मे झूमता चला |
बुराई का नशा चढा, सिर चढ़ कर बोलता चला |
नशा है बडा सबसे, अपने प्यार भरे रिस्तों का |
इस नशे मे डूबो नशा ही, अलग है नशा प्यार का |
–>हर काम का अपना “नशा”है |

कवि :  सुदीश भारतवासी

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