सोचे! मनुष्य नशा क्यों करता है? जब उसके जीवन में राग प्रबल होता है वह तनाव से भर जाता है। तनाव से, चिंता से मुक्ति का उपाय वह नशे में खोजता है। नशे के धुए में वह स्वयं को भुला देते हैं । ऐसे लोग जो ज्यादा तनाव चिंता में होते हैं नशा ज्यादा करते हैं । आज पूरा विश्व नशे की समस्या से ग्रस्त है।

भारत सरकार भी खुलेआम अब गांव-गांव शराब के अड्डे चलवा रहीं हैं । पहले जहर पिलाकर फिर निशुल्क कैंप लगाकर धर्मात्मा बनने का पाखंड पूरे देश में चल रहा है ।

जितनी भी धर्मशालाएं, मंदिर, भंडारे आज बने या चलते हैं ऐसे ही जहर बेचने वालों के द्वारा संचालित हैं । जिस समाज में नशा बढ़ता है वहां कर्तव्य बोध , दायित्व बोध समाप्त हो जाता है । वहां ऐसे निकम्मी पीढ़ी का जन्म होता है जो किसी काम का नहीं होती ।

परंतु क्या करें आज मानव जीवन में इतने तनाव, चिंता भर गई है कि वह कैसे जिए ? आखिर आदमी को नींद ना आए ,थकान ना मिटे तो कैसे जिएगा ? एक नशे की गोली खाई नींद आ गई ना कोई चिंता ना भय ?  परंतु आखिर अपने को कितनी देर भुलाया जा सकता हैं ?

आज कल छोटे-छोटे बच्चे भी परीक्षा, करियर की चिंता से ग्रस्त होकर नशे की भट्टी में जीवन को स्वाहा करने को तैयार हैं ।हमारे जीवन से जब तक तनाव ,चिंता नहीं मिटेगी घृणा, द्वेष, ईर्ष्या से मुक्त नहीं होंगे हम नशे से नहीं बच सकते ।

मात्र कानूनी प्रतिबंध से कुछ नहीं होने वाला । नशे का विकल्प है -ध्यान ।नशे से भी सुख मिलता है और ध्यान से भी सुख मिलता है । ध्यान संजीवनी है जितना मात्रा में ध्यान की गहराई उतरते जाते हैं ।

हमारे अंदर आनंद के स्त्रोत फूटने लगते हैं । उस अमृत की अनुभूति के सामने सारे नशे फीके पड़ जाते हैं। हम सोच भी नहीं सकते कि हमारे भीतर कितना सुख के स्रोत भरे हैं ।

नशा अपने आप छूट जाता है । नशे का मन ही नहीं करता। योग ध्यान कोई शारीरिक व्यायाम नहीं है बल्कि मानव जीवन की सभी समस्याओं का समाधान इसमें छिपे हैं। आवश्यकता है इसके अधिक से प्रचार की तभी नशा मुक्त समाज बन सकेगा।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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