Natural Colour
Natural Colour

हमारे मोहल्ले के श्रीमान चंपकलाल जी एक नेचर लवर है । इस बार होली के त्यौहार से पहले उन्होंने सभी बच्चों को समझाया कि,”बच्चों बाज़ार में मिलने वाले गुलाल व कलर केमिकल युक्त होते हैं, जिससे हमारी त्वचा एवं शरीर को नुक़सान होता है इसलिए हम सभी को प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलनी चाहिए ।

उन्होंने बच्चों को वह तरीका भी सिखाया कि हम किस तरह से प्राकृतिक रंग घर अपने घर पर ही तैयार कर सकते हैं;उदाहरण के लिए पालक व नीम की पत्तियों से हरा रंग, हल्दी से पीला रंग, कपड़े धोने वाले नील से नीला रंग,चुकंदर-गाज़र से लाल रंग इत्यादि ।

मोहल्ले के अधिकतर बच्चों ने यही फॉर्मूला अपनाया और अपने घर की साग-सब्ज़ी व दूसरी कलरफुल चीज़ों को काटकर, पीसकर अथवा विभिन्न क्रियाओं द्वारा आख़िरकार रंगो में परिवर्तित कर ही दिया । अधिकतर बच्चों के माता-पिता ने उनकी इस क्रिएटिविटी को देखकर ख़ुश होने की बजाय उन्हें ख़ूब डांट लगाई ।

आज होली का दिन है । गाँव के सभी बच्चे चंपकलाल जी द्वारा बताए फार्मूले से बनाए गए रंगों का पहला प्रयोग उन्हीं पर करने के उद्देश्य से सुबह-सुबह चंपकलाल जी के घर आ धमके ।

जैसे ही बच्चे चंपकलाल के यहाँ पहुँचे, उन्होंने मिसेज़ चंपकलाल को कहते हुए सुना,”हे भगवान ! मुझे ये कैसा पति मिला है जिसने होली के रंग बनाने के चक्कर में घर में रखी सब्ज़ियाँ भी ख़राब कर दी पालक का भाव जानते हो कम से कम ₹80 किलो है,अब मैं पकोड़े किस चीज़ से बनाऊँगी ? और हल्दी कितनी महंगी आती है-पता भी है कुछ ? इससे तो अच्छा तुम ₹10-₹10 के गुलाल के पैकेट ही ले आते…”

अपनी पत्नी की बकबक से बचने के लिए उन्होंने गेट के बाहर क़दम रखना की चाहा,तभी सभी बच्चों ने उन पर अटैक कर दिया और सबने मिलकर उनपर अपने द्वारा बनाया गया रंग लगाना शुरू कर दिया ।

यह दृश्य देख चंपकलाल व उनकी पत्नी बहुत ख़ुश हुए,उन्हें लगा कि आज बरसों बाद होली के दिन उनके ब्लैक एंड वाइट जीवन में किसी ने नेचुरल कलर भर दिए हों । क्योंकि उनके घर पर कोई भी संतान नहीं थी ।

संदीप कटारिया ‘ दीप ‘

(करनाल ,हरियाणा)

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