ऐ दीप दिवाली के
( Aye deep diwali ke )
ऐ दीप दिवाली के तुम एक बार फिर आओ,
जग में फैले अज्ञानता के अंधकार को मिटाओ,
प्रेम-एकता-बंधुत्व से सबको रहना सिखाओ,
अभिमान-द्वेष-अहं सबके दिलों से मिटाओ ।
ऐ दीप दिवाली के तुम एक बार फिर आओ ।
भक्ति-श्रद्धा का चाँद गुम हो गया है कहीं,
आशाओं के तारे भी कहीं,नज़र आते नहीं,
बिन तेरे निर्जन लगता निर्धन का आवास,
शीघ्र आओ, करने इस अंधकार का नाश,
अपनी ज्योति से,हमारे मन का अंधकार मिटाओ
सुख-समृद्धि का दीपक सबके घरों में जलाओ ।
ऐ दीप दिवाली के तुम एक बार फिर आओ ।
ख़ुशियों से चमके सबके घर-आँगन-चौबारें,
इतने दीप प्रज्वलित करो जितने नभ में तारे,
प्रकृति के आंचल से भरलें जीवन के विभिन्न रंग,
सब जीवों के हृदयों में मचल उठे एक प्रेम तरंग,
मानवों को पशुत्व छोड़,प्रेम-शांति से रहना सिखाओ
प्रकृति-प्राणियों के प्रति मन में आदर भाव जगाओ।
ऐ दीप दिवाली के तुम एक बार फिर आओ ।
सबने तुम पर ही टिका रखी है अपनी दृष्टि,
अभिनव ज्ञान से जगमग करों ये संपूर्ण सृष्टि,
सभी पाए तुमसे अद्भुत श्रम-संघर्ष की शक्ति,
दृढ़ निश्चयी हों सभी ,राष्ट्र हित में बढ़ें आसक्ति,
मानव मन में प्रेम-धैर्य-आत्मविश्वास बढ़ाओ ,
सबको कर्तव्य पथ की नवीन राह दिखाओ ।
ऐ दीप दिवाली के तुम एक बार फिर आओ ।
धरती मैया पर भी निरंतर बढ़ रहा है अत्याचार,
लोग अश्लीलता-असभ्यता का कर रहे प्रचार,
अपनी गर्वित अस्मिता को भूला बैठे-भारत के लोग,
क्षणिक सुख हेतु,व्यर्थ करते स्वास-संपदा अनमोल,
युवाओं को राम-सीता से सभ्य-संस्कारी बनाओ,
माता-पिता में दशरथ-कौशल्या बन समा जाओ ।
ऐ दीप दिवाली के तुम एक बार फिर आओ ।
संदीप कटारिया ‘ दीप ‘
(करनाल ,हरियाणा)