प्रकृति से खिलवाड़ मत करो | Poem on prakriti
प्रकृति से खिलवाड़ मत करो
( Prakriti se khilwar mat karo )
१) प्रकृति से खिलवाड़ मत करो, कुछ सोचो अत्याचार न करो
प्रकृति है तो हमारा जीवन है, वरना कुछ भी नहीं I
२) साँस ले तो प्रकृति देती है , साँस दे तो प्रकृति लेती है
न होती प्रकृति तो सांसों की गिरफ्त में ही दम तोड देते I
३) प्रकृति का ही हम खाते हैं,प्रकृति का ही जल पीते हैं हम,
प्रकृति की गोद न होती तो सोने को ही तरस जाते हम I
४) प्रकृति की गोद में बने हैं, आलीशान महल अटारी
प्रकृति को उजाड़ कर अपने पैर कुल्हाड़ी मार रहे हो I
५) प्रकृति का साथ दो पेड़ लगाओ जंगल बचाओ
एक दिन जब बर्षा न होगी तो पीने को पानी कहाँ से लाओगे I
६) प्रकृति से खेल रहे हो जब प्रकृति हमसे खेलेगी तो सोचो
त्राहि-त्राहि मचेगी चारो ओर तो क्या जीवन बचा पाओगे I
७) प्रकृति से प्यार करो,रक्षा करो उसका सम्मान करो
वरना प्रकृति के साथ हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा I
II प्रकृति से खिलवाड़ मत करो कुछ सोचो अत्याचार मत करो II
लेखक : सुदीश कुमार सोनी
Nice badebhai
बहुत ही शानदार और प्रेरणादाई कविता लेखक के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं
bahut bahut dhanyawad ji.
Nice kavita…..
Nice kavita
Bahut badiya
Nice lines???
Very nice mamu