कागा की कविताएं

कागा की कविताएं | Kaga Hindi Poetry

विषय सूची

राखड़ी पूनम पर्व

भाई बहिन का पावन पर्व राखड़ी पूनम
बहिन भाई का गोर्व गर्व राखड़ी पूनम

सावन पूर्ण-मास का अंतिम पखवाड़ा पवित्र
बहिन बांधे राखड़ी भाई कलाई पावन पवित्र

चूनडी़ की चाहत छोड़ मांगना एक वचन
मात पिता की सेवा मांगना एक वचन

बहिना आप करना सास ससुर की सेवा
जीवन होगा सफल सुखी मिले आनंद मेवा

बहिन भाई का प्रेम अमर रहे आजीवन
रक्षा बंधन का पर्व अमर रहे आजीवन

मात पिता सास ससुर की सेवा चाकरी
सुंदर संस्कार सुखी परिवार की सेवा चाकरी

राखी का धागा बांधा कच्चा नहीं पक्का
‘कागा’ तोड़ नहीं सके कोई मज़बूत पक्का

बग़ावत

बग़ावत के बीज बोये जा रहे है
अ़दावत के बीज बोये जा रहे है

इंसान जानवर बचाव की बात करता पुरजो़र
इंसान का करता क़त्ल सरे आ़म पुरज़ोर

इंसानियत चली गई ह़ेवानियत ह़ावी हो गई
उलफ़त अलविदा कर नफ़रत हावी हो गई

सूरज चांद नहीं बदले इंसान बदलता रहा
रोशनी चांदनी नहीं बदले इंसान बदलता रहा

मिट्टी से बना इंसान सोने से नहीं
मिट्टी में मिल जाना सोने में नहीं

मुद्दतों बाद ग़ुलाम रहा ओछी सोच से
आज़ादी बाद उबरा नहीं ओछी सोच से

‘कागा’ जाति धर्म के झंझट को छोड़ा नहींं
ऊंच नीच भेद का बंधन तोड़ा नहीं

मेघवाल समाज

मेघवाल समाज ने करवट बदली प्रेरणा चाहिये
मेघवाल समाज ने अगड़ाई ली प्रेरणा चाहिये

बड़ा हुनर मंद मेह़नत कश ईमानदार वफ़ादार
मेघवाल समाज ने जम्हाई ली प्रेरणा चाहिये

मेघवाल समाज ने मेघ बरसाया जग ज़ाहिर
मेघवाल समाज ने वाणी गाई प्रेरणा चाहिये

कपास कात सूत बनाया सजाया तान बाना
मेघवाल समाज ने वस्त्र बनाये प्रेरणा चाहिये

पशुओं की चाम को कर सुंदर स़ाफ़
मेघवाल समाज ने जूते बनाये प्रेरणा चाहिये

धर्म ध्यान जप तप किया रिख बने
मेघवाल समाज ने भजन गाये प्रेरणा चाहिये

दग़ा बाज़ बन धोखा नहीं किया कभी
मेघवाल समाज ने आशियाने बनाये प्रेरणा चाहिये

षड़यंत्र में सहयोग नहीं किया कलह कलेश
मेघवाल समाज ने फूल बरसाये प्रेरणा चाहिये

मेघवाल समाज जाग चुका शिक्षित बन ‘कागा’
मेघवाल समाज ने राजनीति जमाई प्रेरणा चाहिये

समाज सेवा

मां बाप की सेवा नहीं कर सके
अड़ोस पड़ोस की सेवा नहीं कर सके

ग़रीब के ह़ाल चाल कभी पूछे नहीं
रोते हुए के आंसू कभी पौंछे नहीं

पैरों में चुभा कांटा कभी निकाला नहीं
प्यासे को पिलाया पानी एक प्याला नहीं

भूखे को नहीं कराया भर पेट भोजन
बात नहीं की किसी से बिना प्रयोजन

धन के घमंड में चकना चूर चले
ग़रीब की उन्नति देख ख़ूब बले जले

एशो अ़शरत में मशग़ूल गुल छर्रे उड़ाये
जाम दर जाम गिलास ग़म हरदम उड़ाये

शबाब कबाब शराब के नशे में धुत
जोश जल्वा जुनून जज़्बात जवानी में धुत

समाज को याद नहींं किया भूले भटके
देखते बनते थे बड़े खटके लटके झटके

अब याद आई याद समाज सेवा की
राजनीति के ज़रिये स्वाद चखने मेवा की

”कागा’ भेजा भरा पड़ा है अकड़ से
जनता को भांपना बाहर लगता पकड़ से

सपूत कपूत

सपूत के भरोसे सब कुछ होता
कपूत के भरोसे नहीं कुछ होता

परिवार का मुखिया सुपात्र एक मात्र
नाम करता रोशन सब कुछ होता

क़ौम का रहनुमा संजीदा सजग हो
सपूत को सम्मान सब कुछ होता

कपूत बन मुखोटा करता कलह कलेश
उम्र भर अपमान सब कुछ होता

बद्धि बुद्धि पर निर्भर ताना-बाना
सपूत सोच पर सब कुछ होता

सुख हर कोई चाहता दुख नहीं
सपूत संग चलें सब कुछ होता

कपूत की छाया बुरी चंद्र ग्रहण
अंधेरा ज़िंदगी में सब कुछ होता

सपूत सूरज ग्रहण जेसा रहती रोशनी
किरणें होती लुप्त सब कुछ होता

करें सपूत सज्जन का क़द्र ‘कागा’
देर सवेर होता सब कुछ होता

चलो अच्छा

चलो अच्छा हुआ पता तो चला
अस़ल नस्ल का पता तो चला

पीड़ होते भीड़ करते बिना मत़लब
अपने पराये का पता तो चला

रिशता नाता का वास्ता देकर ख़ुदग़र्ज़
सच्च झूठ का पता तो चला

जान पेहचान निकाल काम निकाल देते
अस़ल नक़ल का पता तो चला

फुर्र हो गये उड़ आसमान में
बाज़ चिड़िया का पता तो चला

आग लगी आशियाने में हम जले
बुझाया नहीं गया पता तो चला

हमदर्द होने का दावा करने वाले
बन गये बेदर्द पता तो चला

अपने बन पराये हुए ढोंगी पाखंडी
हो गये बेनक़ाब पता तो चला

अस़ल अपने बावफ़ा दिया साथ ‘कागा’
शुक्रिया अदा करते पता तो चला

मेरा मन

मन लगा राम नाम की धुन में
चित्त चंचल राम नाम की धुन में

काम क्रोद्ध लोभ मोह अहंकार पांच लुटेरे
करते बाधा राम नाम की धुन में

पीत रीत में लगा मन मेरा मस्त
अड़चन उत्पन्न राम नाम की धुन में

काम अर्थ धर्म मोक्ष करते चित्त चंचल
लगा वेराग राम नाम की धुन में

घट भीतर बजे मृदंग नाद नगारा सारंगी
साज़ सुर राम नाम की धुन में

मूल कमल में बासा नाभि में निरंजन
जागी नागिन राम नाम की धुन में

कंठ कमल मे करती कलोल सहस्रार ‘कागा’
प्रीत बाण राम नाम की धुन में

चली गई

जवानी चली गई बुढापा बाक़ी है
नूरानी चली गई बुढापा बाक़ी है

बच्चपन बीत गया खेल खिलोनों में
मस्तानी चली गई बुढापा बाक़ी है

जोश जुनून जज़्बात जल्वा ग़ायब रोशनी
दीवानी चली गई बुढापा बाक़ी है

ग़ुरूर था शऊर था शानो शोक्त
रूमानी चली गई बुढापा बाक़ी है

ख़ून खोलता था ठंडा हो गया
आसानी चली गई बुढापा बाक़ी है

जब आती याद पुरानी ठिठक जाते
रवानी चली गई बुढापा बाक़ी है

बुढापा बोझ लगता अपने पराये को
त़ूफ़ानी चली गई बुढापा बाक़ी है

दुनिया का दस्तूर निराला कमाल ‘कागा’
परवानी चली गई बुढापा बाक़ी है

रोशन कर

सूरज ख़ुद बन वत़न का नाम रोशन कर
दीपक ख़ुद बन घर का कोना रोशन कर

अंधेरी रात को आसमान पर तारे टिमटिमाते अनेक
चांद बिखेरे चांदनी आभा मंडल रोशन कर

जब उगता सूरज चांद सितारों का जल्वा ग़ायब
रोशनी का रोब रुतब्बा काइनात पर रोशन कर

दुनियां रंगीन नज़र नज़रिया नज़ारा अंदाज निराला नूरानी
लुत्फ़ उठाओ झोली भर अपना नाम रोशन कर

वक़्त ग़ज़र जाता नहीं आता लोट कर दोबारा
क़द्र कर क़द्रदान ख़ानदान का नाम रोशन कर

कूकर को कीचड़ पसंद लोट पोट होता अकस़र
पुरसुकून होता हर पल कुटुम्ब को रोशन कर

कबूतर को कुंआ नज़र आता सारा जहां
बाहर निकल कर दीदार पेग़ाम देकर रोशन कर

कीड़ी मकोड़ी रेंगते हर रोज़ अपने बिल्लों से
चलना मिलन जुलना सीख सर ज़मीन रोशन कर

बहता जल निर्मल पावन रुक कर होता गंदा
गतिमान बन रुकना नहीं ख़ुद को रोशन कर

हवाओं का रुख़ बदलता रहता ठहरा नहीं ‘कागा’
तेज़ तर्रार त़ूफ़ान बन बड़ा नाम रोशन कर

नारी

नारी नर की जननी भगनी संगनी
नारी अर्धांगिनी सजनी मंगनी नागिन अग्नि

नारी ने नर नारायण को जन्मा
अपनी कोख से रूप रंग रागनी

नारी के रंग अनेक इंद्रधनुषी अनंत
मन मोहनी चंडी माता चंचल शेरनी

नारी लक्ष्मी सरस्वती ऋद्धि सिद्धि दायनी
भूतनी डाकनी शाकनी छवि छाया मोरनी

नारी सीता सत्ती राधा रुकमणी रानी
वाली झलकारी बाई झांसी की रानी

नारी रोशनी सूरज की किरन कामनी
नारी चमकती बिजली चांद की चांदनी

नारी हवा का झौंका बनती आंधी
सुनामी महामारी भारी नारी डायन डरावनी

नर होता नत्मस्तक करता नमन ‘कागा’
नारी मुक्तिदाता विधाता भव सागर तारनी

जोशीला

जोश जल्वा जुनून जज़्बात बरक़रार है
जवां दिल बिना दिलरुबा बेक़रार है

मौसम बदला बाग़ों में बहार छाई
बुलबुल बहक रहा गुलस्तां गुलज़ार है

हर कली खिली पंखुड़ियां महकी मुस्काई
तितली भंवरा फूलों पर तकरार हैं

बाग़बां बुलंद इरादा झूम नाच उठा
ख़ुशनुमा ख़ुशबू की ख़ुशी दरकार है

कोयल की कूक त़ौत़ा की तान
चिड़ियां चहकती चमन में बेशुमार हैं

दिल बाग-बाग़ मन म्यूर नाचा
पंख फेलाये परवाज़ को तैयार है

बादल छाये आसमान पर बिजली चमकी
गाज गर्जना गूंजी मेघ मलहार हैं

बरसी बूंदें बारिश की झमाझम कर
धरती पर हरियाली सुंदर श्रृंगार हैं

हाळी का चेहरा चमका मुस्काया ‘कागा’
नया दौर नया जोश त़लबगार है

अंतर्राष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस

नशा नाश की जड़ नहीं करना नर नारी
मिटा देखा अपनी नूरानी नहीं करना नर नारी

चर्श गांजा जर्दा फूंकने वाले धूंआ करते धन
ह़ुका चिल्म चरूट स़ुल्फ़ा नहीं करना नर नारी

बीड़ी सिगरेट हीरोईन कोकीन की इलत लग गई
जोश जुनून जवानी ज़लील नहीं करना नर नारी

पोस्त डोडा कूट पीस छान पीते प्रेम से
कड़वा स्वाद जीवन बर्बाद नहीं करना नर नारी

नासका सौंघते नाक में भर चुटकी गटकते नसवार
बदब्बू बेकार आती सदेव नहीं करना नर नारी

भांग घोट भर प्याला पीते गोला गटक देते
करते बकवास बहक कर नहीं करना नर नारी

अफ़ीम करते मनोहार बेठ समाज की जाजम पर
कभी कोरा कभी घोल नहीं करना नर नारी

दारू पीकर दंगा पंगा करते उधम मचाते हुड़दंग
जब चढ़ता नशा भरपूर नहीं करना नर नारी

मानव जीवन में एक नशा प्रेम का ‘कागा’
आंखों में टपके आंसू नहीं करना नर नारी

मत़लबी मानव

रिश्ता रास्ता बदल देता मत़लबी मानव
आस्था वास्त़ा बदल देता मत़लबी मानव

मानवता नहीं मानव में मानव केसा
धीमे आहिस्ता बदल जाता मत़लबी मानव

जब होती ग़र्ज़ गिड़गिड़ा कर बोलता
दब्बू दास्ता बदल देता मत़लबी मानव

मर्यादा की सीमा लांघ देता मजबूर
मज़बूत वाबस्ता बदल देता मत़लबी मानव

दौर दुनिया का दस्तूर अजब ग़ज़ब
त़ाअम नशता बदल देता मत़लबी मानव

जानवर गुण चोर नहीं होता कभी ‘कागा’
जब खांसता बदल देता मत़लबी मानव

बढ़ते अपराध

केसी हवा चली प्रतिदिन बढ़ रहे अपराध
कुठिंत विचलित मन प्रतिदिन बढ़ रहे अपराध

सहन शक्ति छिन्न-भिन्न उदास मायूस चेहरा
मानवता पर लगा पेहरा बढ़ रहे अपराध

हत्या चोरी मार धाड़ बलात्कार आम जाम
पग पग पर पाप बढ़ रहे अपराध अपराध

बड़े नेक बुज़ुर्ग का मान सम्मान नहीं
हरदम अपमान ओछी सोच बढ़ रहे अपराध

ऊंच नीच भेद भाव का बोल बाला
सच्चाई पर लगा ताला बढ़ रहे अपराध

मर्द बेचारा जोरू का ग़ुलाम बेग़ैरत बंदा
जेसी भीगी बिल्ली समान बढ़ रहे अपराध

खान पान वेष भूषा रस्मो रिवाज बदला
लाज मर्यादा का सर्वनाश बढ़ रहे अपराध

आत्म हत्या चोली दामन का साथ बना
नशा प्रवृति का प्रचलन बढ़ रहे अपराध

मिलावट दिखावट सजावट बनावट का ज़माना आया
अस़ल नस्ल का अंत बढ़ रहे अपराध अपराध

कुटुम्ब कुल वंश में कलह बढ़ी ‘कागा’
एकता की डोर टूटी बढ़ रहे अपराध

मेरा ह़ाल

नाम आते मेरा जलन क्यों होती है
नाम सुनते मेरा बलन क्यों होती है

बिगाड़ा नहीं बिगड़ने नहीं दिया काम कोई
नियत नेक रखी जलन क्यों होती है

मुखौटा ओढ़ मुंह पर लोग करते करतूत
धोखा नहीं दिया जलन क्यों होती है

कथनी-करनी में फ़र्क़ नहीं रखा कभी
बेबाकी पैश की जलन क्यों होती है

दोगली बेतुकी बात कर गुमराह नहीं किया
दग़ा बाज़ नहीं जलन क्यों होती ह

देरी दूरी दरार दीवार दलाल का नारा
आग़ाज़ अंजाम तक जलन क्यों होती है

कुचल दिया अरमान जिसने क़दमों तले ‘कागा’
तव्वजो मिली उनको जलन क्यों होती है

नाम मेरा

नाम आते मेरा जलन क्यों होती है
नाम सुनते मेरा बलन क्यों होती है

बिगाड़ा नहीं बिगड़ने नहीं दिया काम कोई
नियत नेक रखी जलन क्यों होती है

मुखौटा ओढ़ मुंह पर लोग करते करतूत
धोखा नहीं दिया जलन क्यों होती है

कथनी-करनी में फ़र्क़ नहीं रखा कभी
बेबाकी पैश की जलन क्यों होती है

दोगली बेतुकी बात कर गुमराह नहीं किया
दग़ा बाज़ नहीं जलन क्यों होती है

देरी दूरी दरार दीवार दलाल का नारा
आग़ाज़ अंजाम तक जलन क्यों होती है

कुचल दिया अरमान जिसने क़दमों तले ‘कागा’
तव्वजो मिली उनको जलन क्यों होती है

दिल का दर्द

दिल का दर्द आंखों में उमड़ा
आंसू बन दर्द आंखों में उमड़ा

आंखें झुक गई पलक छलक पड़े
मोती बन दर्द आंखों में उमड़ा

आंखें मिली आंखों से ग़ज़ब ढाया
आब बन दर्द आंखों में उमड़ा

आंसू बड़े अनमोल बेश-क़ीमती रत्न
अश्क बन दर्द आंखों में उमड़ा

दो दो चार मिले नैन चोर
इशारा बन दर्द आंखें में उमड़ा

आंसू टपक पड़े गालों पर ‘कागा’
गीला बन दर्द आंखों में उमड़ा

बसता हूं

दोस्तों की दिल में बसता हूँ
दुश्मनों के दिमाग़ में बसता हूं

दोस्त दग़ा बाज़ नहीं हो सकता
दुश्मन हम राज़ नहीं हो सकता

दोस्त दिल की धड़कन धूम मचाता
दुश्मन दिमाग़ में शरारत शोर मचाता

दोस्त हरदम करता दिल से याद
दुश्मन करता कोशिश केसे हो बर्बाद

दोस्त के दिल में होती हमदर्दी
दुश्मन के दिमाग़ में होती बेदर्दी

दोस्त दुश्मन एक सिक्के के पेहलू
दिल दिमाग़ एक सिक्के के पेहलू

‘कागा दोनों एक जिस्म के अंग
रहते साथ दिन रात दोनों संग

नशेड़ी

धूम्रपान तम्बाकू जर्दा फूंकने वाले नशेड़ी
मदिरापान चरश गांजा चखने वाले नशेड़ी

भांग घोट भर पीते प्याला अमृत
बीड़ी सिग्रेट सुल्फी फूंकने वाले नशेड़ी

ह़ुक़ा लिया हाथ टोपी पर अंगार
खींच नली खांसते-खांसी वाले नशेड़ी

कोकीन हीरैईन नसवार एमडी का प्रचलन
ठर्रा पीते पियकड़ पेग वाले नशेड़ी

कोई पीता व्हिस्की देशी विदेशी शराब
खाते कबाब पीने पिलाने वाले नशेड़ी

‘कागा’ मिल कर चलाओ सघन अभियान
देश हो नशा मुक्त निराले नशेड़ी

मिमिक्री

मिमिक्री कर किसी की
क्रकिरी नहीं कर!

ईश्वर सबका एक है
क्रकिरी नहीं कर!

अपने गिरेबान में
झांक कर देख ज़रा !

क्या वजूद है अपना
क्रकिरी नहीं कर !

समय बड़ा बलवान
लोट नहीं आता दोबारा!

जुगुनु की रोशनी देख
क्रकिरी नहीं कर!

उतार चढ़ाव उथल पुथल
होती होते रहते!

ग़ुरूर में मग़रूर होकर
क्रकिरी नहीं कर!

पतझड़ बसंत दोंनों
आती जीवन में ‘कागा’ !

कल्लियां फूल फल्लियां देख
क्रकिरी नहीं कर!

बसता हूं

दोस्तों की दिल में बसता हूँ
दुश्मनों के दिमाग़ में बसता हूं

दोस्त दग़ा बाज़ नहीं हो सकता
दुश्मन हम राज़ नहीं हो सकता

दोस्त दिल की धड़कन धूम मचाता
दुश्मन दिमाग़ में शरारत शोर मचाता

दोस्त हरदम करता दिल से याद
दुश्मन करता कोशिश केसे हो बर्बाद

दोस्त के दिल में होती हमदर्दी
दुश्मन के दिमाग़ में होती बेदर्दी

दोस्त दुश्मन एक सिक्के के पेहलू
दिल दिमाग़ एक सिक्के के पेहलू

‘कागा दोनों एक जिस्म के अंग
रहते साथ दिन रात दोनों संग

पर्यावरण

आओ हम मिल पर्यावरण बचायें
पैड़ पौधे लगायें पर्यावरण बचायें
धरा का श्रृंगार हरियाली होती
आई बसंत बहार पर्यावरण बचायें
प्रदूषण फेल चुका चारों ओर
वातावर्ण बेह़द गंदा पर्यावरण बचायें
बिखरे पड़े मृत पशु कंकाल बदबू
आती बेशुमार पर्यावरण बचायें
कचरे के ढेर दुर्गंध आती
सूअरों का आतंक पर्यावरण बचायें
रुकावट खड़ी पानी बना कीचड़
आवा-गमन बाधित पर्यावरण बचायें
मिलों की चिमनी करती धूंआ
सांसों में घुटन पर्यावरण बचायें
जल जंगल नाले मेले कुचेले
नीर नहीं निर्मल पर्यावरण बचायें
कल कारख़ानों की खिच किच
ध्वनि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण बचायें
इंसान की इंसान से नफ़रत
ओछी मनोवृति आई पर्यावरण बचायें
धर्म जाति की आपसी दूरियां
भेद भाव मिटा पर्यावरण बचायें
क्लेश कलह बढ़ चुके ‘कागा’
मिल जुल कर पर्यावरण बचायें

रात बाक़ी

मत जाओ छोड़ कर अभी रात बाक़ी है
दिल ख़ाली भरा नहींं अभी रात बाक़ी है

मुद्दतों बाद आये हो उम्र गुज़री इंतज़ार में
दबा राज़ हम राज़ अभी बात बाक़ी है

जोश जल्वा जुनून जवानी का जशन मनायें
रूठ कर नहीं जाना अभी जज़्बात बाक़ी है

दिल के फफोले जल कर ज़ख्म बन गये
सावन-भादो बीत चुके अभी हयात बाक़ी हैं

मेरे हबीब तबीब बनकर आये हो दर्द देखो
रूह़ को राह़त मिली अभी सौग़ात बाक़ी है

तेरे क़दमों में झुक कर सजदा करें ‘कागा’
शरारत हो चुकी मुकमल अभी ह़रारत बाक़ी है

शोक़ ख़ोफ़

जो ऊंचा उड़ने का शोक़ रखते हैं
नीचे गिरने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

होते है जिसमें ह़ोस़ले मिलती उनको मंज़िल
बुलंद बिखरने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

रात अंधेरे ज़रूर सूरज की रोशनी होगी
बेख़ोफ़ डरने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

माना राह राह पथरीली कंटीली ऊबड़-खाबड़
रहबर मरने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

क़ातिल ने क़तल किया क़िस्तों में स़दबार
लड़ाकू लडने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

च्यूंटी गिरती बार-बार हिम्मत नहीं हारती
बहादुर गिरने का ख़ोफ़ नही रखते है

यदा-कदा रहबर भी हो जाते रहज़न
लुटेरे लूटने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

कोशिश कामयाबी की कुंजी होती है ‘कागा’
मुजाहिद मरने का ख़ोफ़ नहीं रखते है

परछाई

परछाई छोड़ देती साथ अंधेरे में
बेवफ़ा हो जाती परछाई अंधेरे में

दुनियां मत़लब की सुख में साथ
परछाई छोड़ देती हाथ अंधेरे में

उजाले में होती बावफ़ा हर लम्हा
रफ़ू-चक्कर हो जाती अंधेरे में

ज़माना ज़ालिम जान कोई नहीं अपना
परछाई हो जाती ग़ैर अंधेरे में

ग़ैर का भरोसा नहींं अपने पराये
परछाई हो जाती पराई अंधेरे में

य़कीन नहीं अब अपनों पर ‘कागा’
परछाई पासा बदल लेती अंधेरे में

सूर्य की तपिश

सूर्य की तपिश तेज़ तन जल रहा
तापमान बढ़ा पारा चढ़ा तन जल रहा

सूर्य बन गया लाल आग का गोला
तपती धूप में झुलस तन जल रहा

झुग्गी झौंपड़ी छपरा में ह़ाल बेह़ाल निढ़ाल
लू के थपेड़ों में तन जल रहा

ऊंचे मह़ल में रहने वाले अमीर परेशान
बिना बिजली जलती जान तन जल रहा

हाय तोबा मची है ग़रीब बड़े गमग़ीन
मज़दूरी बिना गुज़ारा नहीं तन जल रहा

कोई धणी धोरी नहीं कोई सम्बल सहारा
भूख से बिलखते बच्चे तन जल रहा

क़ुदरत का क़हर ढाया चारों ओर हाहाकार
मिस्कीन बेचारे क्या करें तन जल रहा

पशु पक्षी जीव जंतु हर प्राणी ह़ेरान
प्यासे तड़पे पानी वास्ते तन जल रहा

मास़ूम बुढ़े बुज़ुर्ग की सांसें अटकी ‘कागा’
कोई फ़िरश्ता नहीं आया तन जल रहा

साहित्य

साहित्य बिना इंसान केसा जेसे पशु बिना पूंछ
मर्द का चेहरा सुंदर नहीं दाढ़ी बिना मूंछ

नारी नागिन इच्छा धारी डस देती ऋषि मुनि
गुरूड़ वाहन विष्णु का शोभित नहीं बिना चौंच

बाग़ बग़ीचा हरियाली कली अली फूल तितली त़ौता
गुलाब चमेली मोगरा मुरझा जाते बना कोंपल गौंच

प्रकृति नियम पावन मन भावन सब समान ‘कागा’
ईश्वर ने इंसान बनाया नहीं कोई नीच ऊंच

कर्म की पूजा

कर्म की पूजा होती गीता का ज्ञान
निष्काम कर्म कर महान गीता का ज्ञान

दुर्लभ मानव जीवन मिला प्रकृति का उपकार
फल की इच्छा नहीं गीता का ज्ञान

कर्म पूजा हम पूजारी मन मंदिर महान
आत्मा का दीप जलायें गीता का ज्ञान

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार पांच शत्रु
कर्म की धार कटे गीता का ज्ञान

मूल कमल में औंकार का बासा अटल
धर भृकुटी में ध्यान गीता का ज्ञान

निष्काम भाव से कर्म कर नित्य ‘कागा’
अवनाशी का मिलन हो गीता का ज्ञान

बुढ़े बुज़ुर्ग

हम ठहरे बुढ़े बुज़ुर्ग फिर भी दिल जवान
जिस्म जर्जर हो चुका फिर भी दिल जवान

कायनात में क़ुदरत की पैदाईश एक अदना इंसान
उम्र का आ़ख़री पायदान फिर भी दिल जवान

बच्चपन अलविदा कर गया जवानी जोश जल्वा जुनून
कमर झुकी लाठी सहारा फिर भी दिल जवान

ख़़्वाहिशात ख़त्म नज़र नज़रिया नेक इरादे आरज़ू अनेक
बदन में बख़ूबी बेज़ारी फिर भी दिल जवान

रोब रुतबा रसूख बरकरार नहीं रहे ज़रा कोताही
ख़ूबस़रती बदस़ूरती में तबदील फिर भी दिल जवान

ह़ाफ़ज़ू बड़ा तेज़ था हो गये भुलक्कड़ ‘कागा’
उम्र का तकाज़ा है फिर भी दिल जवान

सब धरा का धरा रह जायेगा

सब धरा का धरा रह जायेगा
सब भरा का भरा रह जायेगा

घमंड नहीं कर प्रचंड पाखंड का
सब करा का करा रह जायेगा

ज़र ज़मीन ज़ख़ीरा मोह माया काया
सब खरा का खरा रह जायेगा

लोभ लालच मोह आचार विचार स्वभाव
सब ढर्रा का ढर्रा रह जायेगा

जीवन जंजाल मौत सरासर सच्च होता
सब मरा का मरा रह जायेगा

गौता मारा मिला मोती सागर में
सब डरा का डरा रह जायेगा

बेअ़क़ुल रहता बदमाशों की बग़ुल में
सब घिरा का घिरा रह जायेगा

बहार बदल देती बाग़ को ‘कागा’
सब हरा का हरा रह जायेगा

दो जून की रोटी

दो जून की रोटी ख़ून पसीने की कमाई
लो नून की रोटी ख़ून पसीने की कमाई

मुफ़्त का माल ख़ेरात की नहीं खाते ख़ोराक
हर दाना खाते मेहनत मश्कत कर ख़ालिस़ ख़ोराक

पराया ह़क़ हड़प खाया नहीं छल कपट कर
पराये धन की तड़प नहीं छीना झपट कर

नेक तमना रखी दिल में नियत स़ाफ़ पाक
आज ज़िंदा ज़रूर है कल होना ख़ाक

जब तक ज़िंदा बंदा तब तक होता दर्द
मरने बाद जलाते बेदर्द अपने नहीं होता दर्द

‘कागा’ लालच में लिप्ट करना नहीं काले कारनामें
ज़रा जीना दुनिया में करना नहीं काले कारनामें

बाक़ी है

रस्सी जल गई एंठन बाक़ी है
रस्सी बल गई बल्ल बाक़ी है

ग़ुरूर ग़ायब हुआ एक झटके में
बेकसी बदल गई हलचल बाक़ी है

फ़ितनती की फ़ित़रत फ़स़ाद करने की
बेबसी बोझल गई दंगल बाक़ी है

ग़ैरों का ग़म नहीं अपने अ़ज़ाब
रसाकसी छल गई उछल बाक़ी है

सरह़द लांघ गये छलांग लगाने से
जफ़ाकशी बदल गई उथल बाक़ी है

शराब कबाब शबाब दबाव काफ़ूर ‘कागा’
मयकशी मचल गई मेह़फ़ल बाक़ी है

आग बुझती नहीं

दोनों सीनों में लगी आग बुझती नहीं
नहीं चिंगारी नहीं शोला आग बुझती नहीं

आंखों में आंसू भीगे पलक छलक पड़े
दोनों दिलों में लगी आग बुझती नहीं

कौन सी लगी आग कोई अंदाज़ा नहीं
किसने सुलगाई धीमी-धीमी आग बुझती नहीं

दिल देकर दिल दिया हेरा फेरी नहीं
चोरी सीना ज़ोरी नहीं आग बुझती नहीं

आंखें चौंधिया गई दोनों के मिलने से
नैनों नीर बरसे बूंदें आग बुझती नहीं

कभी शोला कभी शबन्म कभी कोहरा ‘कागा’
आग का नहीं सुराग आग बुझती नहीं

बेगाना

स़नम तेरी बज़्म में बेगाना बना
बेह़द बेह़ाल बज़्म में बेगाना बना

दिल देना कोई गुनाह नहीं होता
बेकस बेआबरू बज़्म में बेगाना बना

कोने में दुबक कर सुबक रहा
बेइज़्ज़्त होकर बज़्म में बेगाना बना

पराई पेहलू में जाकर बेठ गये
ठुकराया तुमने बज़्म में बेगाना बना

पीने की ललक मुझे भी थी
बिना घूंट बज़्म में बेगाना बना

तेरी बेरुख़ी शोखी़ ने क़हर बर्पाया
बेक़द्र होकर बज़्म में बेगाना बना

मदऊ कर मज़ाक मेरा हुआ ‘कागा’
बेहूदा सलूक बज़्म में बेगाना बना

ज़िंदगी

ज़िंदगी मुख़्तस़र हैं जीना सीख लो
ज़िंदगी बेहत्तर है मुस्कराना सीख लो

ज़माने में आये चंद दिनों वास्ते
ज़िंदगी सफ़र है चलना सीख लो

चार दिनों का उजाला फिर अंधेरा
ज़िंदगी ज़हर है पीना सीख लो

ज़िंदगी बड़ी हसीन ह़ोस़ला हिम्मत रख
ज़िंदगी आबे ह़यात करीना सीख लो

ज़िंदगी का कोई भरोसा नहींं दोस्त
ज़िंदगी ज़ालिम है अफ़साना सीख लो

ज़िंदगी क़ातिल करती क़त्ल किस्तों में
ज़िंदगी ज़ख्म है सेहलाना सीख लो

ज़िंदगी एक झूठ का पुलंदा ‘कागा’
ज़िंदगी मौत मातम समझना सीख लो

अपना वजूद

अपना वजूद खोज रहा हूं ख़ाक में
अपना वजूद ढूंढ रहा हूं राख में

जिस मिट्टी में दफ़ना दिया अपनों ने
वजूद खो गया ख़ुर्द बुर्द ख़ाक में

जिस मिट्टी पर जला दिया अपनों ने
वजूद जल हुआ तह़स़ नह़स़ राख में

अमीर ग़रीब का वजूद बराबर मरने बाद
शिनाख़्त नहींं कोई निशान ख़ाक राख में

ग़ुरूर नहीं कर बंदा ऊंच नीच का
मिल जाना मिट्टी में पाक नापाक में

रस्म अदा करते इंसान जलाने की ‘कागा’
दफ़न होता जिस्म मिट्टी वत़न पाक में

जीवन जंजाल

मेरा जीवन समाज को समर्पित कभी याद करना
मेरा जीवन समाज को अर्पित कभी याद करना

ज़िंदा को कोई बिना मत़लब याद नहीं करता
मरने पर करते चर्चा तुम कभी याद करना

मेरा कोई उपकार नहीं तुम पर प्यार था
मानवता के नाते मरने बाद कभी याद करना

दुनिया फ़ानी आनी जानी होता पल भर बसेरा
सांसों का भरोसा नहींं तुम कभी याद करना

मेरे प्यार की दुहाई चंद दिन साथ गुज़रे
तेरे प्यार की क़सम तुमको कभी याद करना

मेरी मिट्टी से मोहब्बत दफ़न होना दिल चाहता
अस्थियां विसर्जन नहींं करना मेरी कभी याद करना

चलो अब अलविदा करते जाने का वक़्त आया
अपना ख़्याल रखना मेरी छोड़ो तुम याद करना

मेरी ख़ाक ज़मीन दोज़ रहे क़बर में ‘कागा’
निशान क़ायम दायम रहे तुम याद करना

संस्कारों की दहलीज़ पर

मर्द नहीं नामर्द है बीच राह में छोड़ चले गये
हमदर्द नहीं बेदर्द है अधर झूल में छोड़ चले गये

अगर ओक़ात नहीं थी साथ निभाने की विवाह नहीं करते
फेरे खाकर मुंह मोड़ छेड़ छाड़ कर छोड़ चले गये

मांग भर सिंदुर से घर की छोड़ी नहीं घाट की
गर्दन में मंगल सूत्र पेहना कर नाता तोड़ चले गये

मायके में मेरा नहीं कोई ससुराल में कोई सगा अपना
डोली में आई सज धज आंगन दूर दौड़ चले गये

मेरा क्या क़ुस़र था मैंने कौनसा किया गुनाह ग़ल्त़ी बताते
पति का धर्म नहीं निभाया अधमरी कर छोड़ चले गये

सावन बीते सुबक कर रोते-रोते जवानी की आग में जल
पिया लोट कर नहीं आये जिया झक-झोड़ चले गये

त़लाक़ देते तो तस्सली होती रोती बिलखती नहीं जुदाई में
घुट घुट कर घायल शेरनी मरना मुश्किल छोड़ चले गये

अगर एसा क़दम नारी उठाए उसे कहते बद-चलन आवारा
नर को मिल गई छूट शायद तब छोड़ चले गये

अपने कुल पर कालिख नहीं पोती काली चरित्र रखा पवित्र
निहारती हूं अब तक राह लोट आओ छोड़ चले गये

पतिवृत का फ़र्ज़ अदा कर रही कटता नहीं जीवन ‘कागा’
करती पल पल तेरी पूजा पाठ मुझे छोड़ चले गये

नकल में अकल

बा-अ़क़ुल हमेशा काम मुकमिल करेगा
बे -अकल हमेशा काम नक़ल करेगा

नक़ल में अकल की दरकार होती
वरना हर किसी की सरकार होती

सोच विचार कर काम करना चाहिए
बिना सोच नहीं काम करना चाहिए

आंखों देखी कानों सुनी सच्च नहींं
हाथ की स़फ़ाई होती सच्च नहींं

मदारी झमूरा अपने खेल में खिलाड़ी
जादूगर बन बरग़ला देते ख़ूब खिलाड़ी

बहुरूपिए भी ग़ज़ब करते अपनी नोटंकी
कला का करते प्रदर्शन अपनी नोटंकी

‘कागा’ चित्रकार बना देता चित्र हूब्हू
आंखें चौंधिया जाती देख चित्र हूब्हू

बदलाव

जब वक़्त बदल जाता तब अपने बदल जाते
जब बख़्त सदल जाता तब अपने बदल जाते

मौसम बदल जाते वक़्त आने पर रीति नीति
बारिश पतझड़ बसंत होती तब अपने बदल जाते

ग़रीब से अमीर बन जाता इंसान बख़्त से
शानो शोक्त निराला होता तब अपने बदल जाते

पासा पल्ट जाता अमीर बन जाता ग़रीब मोह़ताज
रस्मो रिवाज मुस्कान मिज़ाज तब अपने बदल जाते

इंसान को बदलते देखा अपनी आंखों से स़दबार
रोब रुतबा उस़ूल अख़लाक़ तब अपने बदल जाते

मौसम के मुत़ाब्क़ लिबास बदलते लोग गर्म सर्द
जब उथल पुथल होती तब अपने बदल जाते

दौर आता दबंगई का दब्बू दब जाते दुबक
ख़ोफ़ का माह़ोल होता तब अपने बदल जाते

लालच से लार टपक जाती देख हरियाली ‘कागा’
मेवा चख़ते चाह से तब अपने बदल जाते

मायड़ भूमि की माटी

याद आने लगी मायड़ भूमि की माटी
याद आने लगे ढाट भूमि के ढाटी

जिस आंगन पर किलकारी हुई मुस्काई मां
इच्छा सताने लगी मायड़ भूमि की माटी

जिस बालू पर लोट पोट हुए लिप्टे
हिचकियां होने लगी मायड़ भूमि की माटी

मुठ्ठी भर खाई शोक़ से बच्चपन में
मां बोलती हरदम मायड़ भूमि की माटी

भीगी रेत के बनाये घरौदे मन मस्त
बिखेर देते दोबारा मायड़ भूमि की माटी

लंगोटिया यार याद करते हर पल घड़ी
दादी नानी नहींं मायड़ भूमि की माटी

खंडहर देखने की तमका तड़प होती ‘कागा’
केसे भूल जायें मायड़ भूमि की माटी

चल मंज़िल की ओर

चल मंज़िल की ओर थक कर रुक गये
चल मंज़िल मिलेगी यारा थक कर रुक गये

मंज़िल इंतज़ार कर रही तेरा बेस़ब्री बेताबी से
चल बेदार बन बंदा थक कर रुक गये

सुस्त नहीं चुस्त दुरस्त बन बेधड़क बेझिझक बेहिचक
चल बड़ी तेज़ रफ़्तार से थक कर रुक गये

मर्द मुजाहिद जल्वा ज़ाहिर कर कायर कमज़ोर नहीं
चल छोड़ छल कपट थक कर रुक गये

ज़माना बड़ा ज़ालिम तेरी तरक़्क़ी पर जलता ज़रूर
चल छोड़ ग़म ग़ुरूर थक कर रुक गये

माना मंज़िल दूर राह भटक चुके हो ‘कागा’
चल दल-बदल दस्तूर थक कर रुक गये

जीवन के रंग

जीवन में नाम कमाया दाम नहीं
जीवन में प्रेम कमाया दाम नहीं

राज काज के साथ समाज सेवा
जीवन में नाम जमाया दाम नहीं

लोग करते काली कमाई धन बटोर
जीवन में नाम समाया दाम नहीं

काले कारनामे नहीं किये रत्ती भर
जीवन में नाम थमाया दाम नहीं

मत भेद मन भेद मन मुटाव
जीवन में नाम रमाया दाम नहीं

समाज सेवा की निष्काम भाव से
जीवन में नाम सजाया दाम नहीं

राजनीति में नेक नियत स़ाफ़ छवि
जीवन में नाम बजाया दाम नहीं

दामन पर दाग़ नहीं लगने दिया
जीवन में नाम संवारा दाम नहीं

चाल चेहरा चरित्र चित्र पवित्र रखा
जीवन में नाम गुंजाया दाम नहीं

बदनाम करने की कोशिश की ‘कागा’
जीवन में नाम चमकाया दाम नहीं

अपना

कोई नहीं अपना इस दुनिया में
कोरा है सपना इस दुनिया में

सोते देखो नींद में चाहे जागते
कोई नहीं सहारा इस दुनिया में

इंसान अकेला आता अकेला लोट जाता
चंद दिन डेरा इस दुनिया में

दर्द झेल पराये वास्ते करता मेह़नत
करता मेरा तेरा इस दुनिया में

पति पत्नी होते स्वार्थ के साथी
कोई नहीं प्यारा इस दुनिया में

किसी के बिछुडने पर पीड़ा होती
बहती अश्रु धारा इस दुनिया में

कोई नहीं साथ निभाता रोता ज़रूर
कोई नहीं चारा इस दुनिया में

ख़ून का रिश्ता नाता ख़त्म ‘कागा’
कौन जीता हारा इस दुनिया में

कर समाज सेवा

कंधे से कंधा मिल कर समाज सेवा
अंधे से अंधा कहे कर समाज सेवा

समाज सेवा कोई सरल काम नहीं होता
कर सेवा करके देख कर समाज सेवा

प्यासे को पानी नहीं पिलाया जीवन में
भूखे को भोजन खिलाया कर समाज सेवा

ढोंग पाखंड करता समाज सेवा के बहाने
ह़ाल चाल पूछे नहीं कर समाज सेवा

बद ह़ाल बीमारी में बिल-बिला रहे
आंसू नहीं पूंछे जाकर कर समाज सेवा

देखा देखी कर रहे हो देख कर
त़ौर त़रीक़ा नहीं आता कर समाज सेवा

मेवा चखने की होड़ मची कसक’कागा’
खून चूसा ग़रीबों का कर समाज सेवा

परिवर्तन जग का नियम

परिवर्तन जग का नियम बिना बदलाव जीवन बेकार
परिवर्तन प्रकृति का नियम बिना बदलाव जग बेकार

प्रकृति ने घास पैड़ पौधे उगाये हरे भरे
परिवर्तन ज़रूरी कांट छांट बिना बदलाव जग बेकार

नदी चलती समुंदर की ओर कल कल करती
रुक जाये आती बाढ़ बिना बदलाव जग बेकार

जल चलता निर्मल बहाव से शुद्ध भाव पवित्र
ठहर जाने पर कीचड़ बिना बदलाव जग बेकार

नहाना तन मल मल करना स़ाफ़ सुंदर सुहाना
वरना मेला कुचेला गंदा बिना बदलाव जग बेकार

पतझड़ में पीले पत्ते झड़ आते नये नवेले
कौंपल कल्लियां फूल फल्लियां बिना बदलाव जग बेकार

बदल देते आसान रास्ता होते रहते काम्याब ‘कागा’
वरना होते असफल निराश बिना बदलाव जग बेकार

जीना मरना

घुट घुट कर जीने से मरना बेहत्तर
घुटने टेक कर जीने से मरना बेहत्तर

अकेले आये हो आज़ाद बन कर जीना
ग़ुलाम बन कर जीने से मरना बेहत्तर

सिर ऊंचा कर जीओ अदब एह़तराम से
बेज़मीर बन कर जीने से मरना बेहत्तर

पराये मह़ल से अपनी झुग्गी झौंपड़ी अच्छी
बेआबरू बन कर जीने से मरना बेहत्तर

शराब शबाब कबाब से रूखी सूखी शान
चाटुकार बन कर जीने से मरना बेहत्तर

तलवे चाट कर बन जाते लोग त़ाक़्तवर
चापलूस बन कर जीने से मरना बेहत्तर

चुग़ल ख़ोर गिला ख़ोर बन जाते बग़लगीर
बिकाऊ बन कर जीने से मरना बेहत्तर

रोब रुतबा शानो शोक्त बरकरार रखने वास्ते
बेगै़रत बन कर जीने से मरना बेहत्तर

जीना जहान में ज्वाला बन जीओ ‘कागा’
धूंआ बन कर जीने से मरना बेहत्तर

गारंटी

जीवन का भरोसा नहीं केसे दें गारंटी
सांसों का भरोसा नहीं केसे दें गारंटी

झूठ बोल झांसा देना मिज़ाज में नही
ख़ुद पर भरोसा नहीं केसे दें गारंटी

बेवजह तोहमत मढ़ना फ़ित़रत में नहीं मेरे
वक़्त का भरोसा नहीं केसे दें गारंटी

अरमान ईमान का क़तल करना बड़ा गुनाह
कल का भरोसा नहीं केसे दें गारंटी

खोखले दावे दावे कर गुमराह नही करना
जीत का भरोसा नहींं केसे दें गारंटी

उतार चढ़ाव आते रहते जीवन में हमेशा
आज का भरोसा नहींं केसे दें गारंटी

ख़ुदार बन ग़द्दार नहींं जीवन में ‘कागा’
किरदार का भरोसा नहींं केसे दें गारंटी

उपलब्धि

अपनी उपलब्धि गिनाओ समाज सेवा के काम सुनाओ
होली दीवाली मनाओ समाज सेवा के काम गिनाओ

ज़मीन जंगल झाड़ी दरख़्त नदी करते सदेव परोपकार
ज़मीन करती अन्न उत्पति सेवा के काम सुनाओ

जंगल झाड़ी दरख़्त देते फल मेवा मन पसंद
नदी देती नीर निर्मल सेवा के काम सुनाओ

ह़ाल चाल नही पूछे दीन हीन के कभी
आंसू पूंछते रोते के सेवा के काम सुनाओ

अड़ोस पड़ोस आजू बाज़ू में बिलखते भूखे बच्चे
झांक कर नही देखा सेवा के काम सुनाओ

पशु पक्षी बेज़ुबान जानवर भी करते परस्पर सेवा
मानव बन मानवता दिखाते सेवा के काम सुनाओ

बिना सेवा चखते मेवा शर्म नहीं आती ‘कागा’
जशन ख़ूब ख़ुशी मनाओ सेवा के काम गिनाओ

प्रकृति

प्रकृति से कर प्रेम कर प्रकृति की पूजा
प्रकृति के बिना नहीं कोई जग में दूजा

प्रकृति करती पालन पोषण हर किसी प्राणी का
अन्न फल मेवा सेवा कर प्रकृति की पूजा

प्रकृति के रंग रूप निराले अनोखे अनंत अनुपम
रस गंध मन भावन कर प्रकृति की पूजा

जल थल नभ अग्न सब जीवन के स्रोत
बारिश बूंदें बन बरसती कर प्रकृति की पूजा

उमड़ घुमड़ कर आते बादल गर्जना करती गाज
मौसम होती सुंदर सुहानी कर प्रकृति की पूजा

प्रकृति जेसा नहीं कोई पावन जग में ‘कागा’
होता पवित्र तन मन कर प्रकृति की पूजा

महंगाई दबंगाई

महंगाई ने मार डाला आम जन परेशान है
दबंगाई ने मार डाला ग़रीब जन परेशान है

जिसकी लाठी उसकी भैंस नीति निर्ण्य न्यय नहीं
लूट खसोट चोट होती नीति निर्ण्य न्याय नहीं

अंधा गूंगा बेहरा हाकम सुनता नहीं कोई फ़रियाद
जनता पर ज़ुल्म सितम सुनता नहीं कोई फ़रियाद

आटा नमक मिर्च महंगा बच्चे बिलखे भूख से
बिना पानी प्यासे प्राणी बच्चे बिलखे भूख से

नंगे पैर जूते नहीं बदन पर फटे चीत्थड़े
सिर पर छाया नहीं बदन पर फटे चीत्थड़े

महंगाई दबंगाई की दोहरी मार सहन नहीं होती
‘कागा’ कोसते क़िस्मत को मार सहन नहीं होती

उजाला

जीवन में उजाला बन अंधेरा नहीं
जीवन में ज्वाला बन अंधेरा नहीं

काली घटा अंधेरी रात आंधी त़ूफ़ान
जुगुनू का उजाला बन अंधेरा नहीं

धूंआ बन जीना जीवन गवारा नहीं
एक क्षण उजाला बन अंधेरा नहीं

आकाश में टिम टिम करते तारे
चांद बन उजाला बन अंधेरा नहीं

अंधा बन भटकते हो भोले भाले
सूरज का उजाला बन अंधेरा नहीं

रतौंधी की नोटंकी नहीं कर ‘कागा’
आंखों का उजाला बन अंधेरा नहीं

अपराध

अपराध बढ़ रहे हर रोज़ होले होले
हत्या लूट खसोट मार पीट होले होले

मन तन वचन से पाप करता मानव
नियत में खोट देती चोट होले होले

प्रेम भाव भाई चारा भूल गये लोग
पराये घुसपेठ कर घुस गये होले होले

अपने अपने होते है पराये अपने नहीं
आंसू उमड़ आते आंखों में होले होले

रेत नहीं मिलाना रोज़ी में भूल कर
दांतों नीचे दब दर्द होगा होले होले

लोग बिक जाते लालच में सस्ते ‘कागा’
प्रवृति फेल जाती दीमक जेसे होले होले

रोटी

दो वक़्त की रोटी मेह़नत से मिलती हैं
भीख मुफ़्त की रोटी मेहनत से मिलती है

चौंच मिली चुग्गा देगा मालिक चिंता नहीं कर
दो वक़्त की रोटी क़िस्मत से मिलती है

कोशिश से खुलता बंद क़िस्मत का ताला बंदे
दो वक़्त की रोटी हिम्मत से मिलती है

सख़्त परिश्रम कर बेशर्म नहीं बन बख़्त बुलंद
दो वक़्त की रोटी क़ीमत से मिलती है

अजगर को भी हिलना डोलना पड़ता इधर उधर
दो वक़्त की रोटी ज़हमत से मिलती है

ख़ून पसीने की कमाई रोज़ी बेहतर ह़लाल ‘कागा’
दो वक़्त की रोटी रह़मत से मिलती हैं

नेकी

बदमाश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में
अ़य्याश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में

नेक बन नेकी कर दरिया में डाल दिलबर
गुंजाईश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में

ज़िंदगी ज़िल्लत नहीं बने ज़हर ज़लील होकर दोस्त
आज़माईश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में

नेकी देगी साथ बाक़ी सब छोड़ जाना यहां
फ़रमाईश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में

कोई नहीं दुनिया में तेरा मेरा अपना दिलरुबा
सताईश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में

इश्क़ मुश्क छुप नहीं सकते किसी ओट में
ख्वाहिश नहीं बन बंदा नेकी कर जहान में

आशिक़ माशूक का अफ़साना दास्तान बन दिलचस्प ‘कागा’
आराईश नही बन बंदा नेकी कर जहान में

पता नहीं चला

आंखों में बस गये पता नहीं चला
दिल में बस गये पता नहीं चला

केसा जादू हुनर फ़न चलाया चालाकी से
होले से बस गये पता नहीं चला

नैन हो गये बेचैन बिना मिले परेशान
बिना पूछे बस गये पता नहीं चला

चर्चा नहीं हुई कभी चुप चाप आये
डेरा देकर बस गये पता नहीं चला

चोरी सीना ज़ोरी हेरा फेरी ह़रकत तेरी
गच्चा देकर बस गये पता नहीं चला

भनक तक नहीं लगी रत्ती भर ज़रा
मौक़ा देख बस गये पता नहीं चला

चाल चेहरा चरित्र चित्र सुंदर नहीं था
फ़िदा होकर बस गये पता नहीं चला

दरवाज़ें पर आते लोग दस्तक देते ‘कागा’
बिना इजाज़त बस गये पता नहीं चला

इंस़ाफ़

ह़क़ मिले ह़क़दार को हड़प सके नहीं कोई
ह़िस़्सा मिले ह़क़दार को तड़प सके नहीं कोई

लोफ़र लुच्चे लफंगे लुटेरे लूटने को बेठे तैयार
दाव पेच लगाते मिल लुटेरे लूटने को तैयार

रोक टोक नहीं किसी की ख़ून चख चुके
लार टपक रही बार बार ख़ून चख चुके

प्यासा ख़ून का प्यास नही बुझती पानी से
नफ़रत की आग जलती नहीं बुझती पानी से

फ़ित़रत फ़ितनत फ़स़ाद की दंगा पंगा कराते दंगल
बात का बतंगड़ कर दंगा पंगा कराते दंगल

‘कागा’ अमनो अमान पसंद नहीं नियत में खोट
उठा पटक अफ़रा तफ़री करते नियत में खोट

समझ नहीं पाया

मुझे आज तक कोई समझ नही पाया
अब अंत तक कोई समझ नहीं पाया

अस्स़ी साल के आस पास उम्र हैं
बच्चपन बुज़ुर्ग तक कोई समझ नही पाया

बदलते रंग देखे ज़िंदगी के चमकीले चटकीले
आग़ाज़ अंजाम तक कोई समझ नहीं पाया

मौसम निहारे गर्मी सर्दी बारिश बसंत बहार
आंधी त़ूफ़ान तक कोई समझ नहीं पाया

घर उजाड़े अपने बनाये बिगाड़े हर बार
बेघर अब तक कोई समझ नहीं पाया

जेसी नज़र वेसा नज़रिया झांक कर देखा
शक अब तक कोई समझ नहीं पाया

नेक लोग नेक कहते बद बोलते बदनाम
अभी आज तक कोई समझ नही पाया

मुल्क से हिजरत दर दर खाई ठोकरें
देखा कल तक कोई समझ नहीं पाया

अब सूरज ढल कर डूबने वाला है
आज सांझ तक कोई समझ नहीं पाया

काश कोशिश करता कोई समझ पाता ‘कागा’
नाकाम कब तक कोई समझ नहीं पाया

अपशब्द

अपशब्द कांटे बन चुभ जाते खून नहीं आता
अपशब्द तीर बन चुभ जाते ख़ून नहीं आता

कांटा चुभ जाने से निकल जाता कांटे से
अपशब्द दर्द बन दर्द देता ख़ून नहीं आता

तीर लगने से घाव होता गेहरा भर जाता
अपशब्द पीड़ा बन चुभ जाते ख़ून नहीं आता

चोट लगती ख़ंजर की जिस्म पर ज़खम होता
अपशब्द की कटार से काट ख़ून नहीं आता

बाड़ा बोल ज़हर घोल नफ़रत करना बुरी बात
अपशब्द के तीर चलाना बूंद ख़ून नहीं आता

मीठे बोल मोर के मन मोहक होते ‘कागा’
अपशब्द के तीखे बाण चुभते ख़ून नहीं आता

मानव मौत

जो आया जग में जाना हैं
आज नहीं तो कल जाना है

अमर कोई नहीं होता मरना है
अभी नहीं तो आज जाना है

नहीं कोई ठोर ठिकाना यहां पर
पल भर पड़ाव कल जाना है

मरण जन्म का मुहूर्त नहीं होता
रोता आया चुप चाप जाना है

कर नहीं ग़ुरूर ग़ाफ़ल जग में
मौत के साथ मिल जाना है

आना जाना दस्तूर क़ुदरत का ‘कागा’
बांध बिस्तर बोरिया ज़रूर जाना है

चल राहगीर

पैरों के निशान छोड़ चल पगडंडी हम बनायेंगे
पगडंडी के निशान छोड़ चल मार्ग हम बनायेंगे

ज़माने का दस्तूर ख़ानदान की ख़ास़ियत जारी रहे
राह के निशान छोड़ चल पुल हम बनायेंगे

दो किनारों के बीच दूरी मजबूरी ज़रूर है
पुल के निशान छोड़ चल साहस हम बनायेंगे

उठो जागो मुसाफ़िर मंज़िल कर रही इंतज़ार तेरा
एक कदम तुम आगे चल इतिहास हम बनायेंगे

मेरा तेरा साथ आओ मिल मज़बूत करें क़ाबिल
काम्याबी के निशान छोड़ चल एह़सास हम बनायेंगे

बद नुमा दाग़ नहीं लगने देंगे दामन पर
शफ़ाफ़ के निशान छोड़ चल ह़वास हम बनायेंगे

कौन कहता मंज़िल मिलना बड़ी मुश्किल होती ‘कागा’
ग़फ़लत के निशान छोड़ चल ख्वाहिश हम बनायेंगे

रिज़्क़

ह़क़ ह़लाल का रिज़्क़ खाया करो
बेशक ह़लाल का रिज़्क़ खाया करो

बद नियत आदत से परहेज़ करना
अपना कमाया हुआ रिज़्क़ खाया करो

बदमाश लुच्चे लफंगे करते लूट खसोट
ख़ून पसीने का रिज़्क़ खाया करो

ह़क़ हड़प खाते तड़प जाता बदन
नमक ह़लाल बन रिज़्क़ खाया करो

प्यार का पेग़ाम देकर इंसान को
साथ मिलन जुल रिज़्क़ खाया करो

अपनी रोज़ी में मिलावट करना ‘कागा’
ग़ज़ब गुनाह पाक रिज़्क़ खाया करो

साथी

जीवन में सच्चे साथी पति पत्नी होते
जीवन में अच्छे साथी पति पत्नी होते

पति पत्नी दो पहिये जीवन गाड़ी के
सुचारु संचालन में साथी पति पत्नी होते

दोनों में अगर एक डगमग हो गया
गृहस्ती गाड़ी में साथी पति पत्नी होते

लड़़खड़ा जाती गति राह चलते बीच में
एक पहिया गड़बड़ साथी पति पत्नी होते

नर नारी की जोड़ी जग में सुहानी
नज़र नहीं लगे साथी पति पत्नी होते

पति पत्नी दोनों पर समान फ़र्ज़ ‘कागा’
टूटे नहीं बंधन साथी पति पत्नी होते

मौक़ा

जब क़ुदरत ने दिया हमें सुन्हरा मौक़ा
दरिया दिल पैश किया नहीं दिया धोखा

अकस़र लोग अमानत में ख़्यानत करते
बेमिस़ाल मिस़ाल पैश किया नहीं दिया धोखा

बावफ़ा बन मदद की बिना लाग लपेट
दिलो जान पैश किया नहीं दिया धोखा

मन पसंद नहीं था नापसंद भी नहीं
अपना पैमाना पैश किया नहीं दिया धोखा

देरी दूरी दरार दीवार दलाल नहीं रखा
नज़ीर नमूना पैश किया नहीं दिया धोखा

अपने तो अपने होते है सच्चे सपने
साकार कर पैश किया नहीं दिया धोखा

रोक टोक नौक झौंक ख़ूब झेली ‘कागा’
बेख़ोफ़ मिज़ाज पैश किया नहीं दिया धोखा

इम्तिहान

प्यार को पाना भी एक इम्तिहान है
यार को पाना भी एक इम्तिहान है

प्यार के नाम होती दुनिया में दग़ा
दिलदार को पाना भी एक इम्तिहान है

आंखें मिलती दिल नहीं मिलते धोखे हज़ार
दमदार को पाना भी एक इम्तिहान है

दिल मिल जाते एक झलक में झटपट
दुलार को पाना भी एक इम्तिहान है

इंतजार के लम्ह़े बड़े लम्बे बर्दाशत नहीं
दीदार को पाना भी एक इम्तिहान है

तन्हाई के अश्क मोती गिरते गालों पर
पुकार को पाना भी एक इम्तिहान है

प्यार यार पाना बड़ा फ़्रर्क़ होता ‘कागा’
इक़रार को पाना भी एक इम्तिहान है

तलबगार

मैं त़लबगार तेरे प्यार का
मैं अर्ज़दार तेरे प्यार का

नफ़रत का मेला भरा है
मैं क़र्ज़दार तेरे प्यार का

भारी भीड़ में अलग अकेला
मैं फ़र्ज़दार तेरे प्यार का

तलाश कर रहा झलक की
मैं ग़र्ज़दार तेरे प्यार का

मोह़ब्त की दुकान नहीं नज़र
मैं मर्ज़दार तेरे प्यार का

कहां हो गये ग़ायब ‘कागा’
मैं दीदार तेरे प्यार का

जानकी

जनक घर जन्म लिया नाम सती सीता
समय बड़ा बलवान धीरे होले जब बीता

राजा जनक घर तरुणाई ने ली अंगड़ाई
स्वम्बर रचा राज कुमार आये ली अंगड़ाई

धनुष तोड़ने की शर्त कठिन ज़ोर लगाया
सबने बारी बारी कोई तोड़ नहीं पाया

दशरथ सुत ने झटके में तोड़ा धनुष
ख़ुशी छाई दरबार में टूट गया धनुष

जानकी ने वर माला पहनाई राम को
बजी शहनाई गाये मंगल गीत राम को

जनक राजा के राज्य में जशन मनाये
विवाह मंडप बड़े शान से सुंदर बनाये

प्यार दुलार से डोली सज धज तेयार
विदाई वेला शुभ घड़ी जानकी जिया तेयार

‘कागा’ जनक दशरथ दोनों फूलों नहीं समाये
अवध नगरी आगमन स्वागत प्रजा मन भाये

इंसान इंसानियत

इंसान की नफ़रत इंसान से लानत है
इंसान की अदावत इंसान से लानत है

इंसानियत इंसान में नहीं वो इंसान कहां
इंसान की बग़ावत इंसान से लानत है

जानवर जात पात के जंझट से दूर
इंसान की शरारत इंसान से लानत है

क़ुदरत ने बनाया बुत मिट्टी का बराबर
इंसान की ख़िलाफ़त इंसान से लानत है

हड्डी मांस ख़ून रूह ह़वस ह़वास एक
इंसान की मलामत इंसान से लानत है

जानवरों से तअस़ब नहीं नस्ल असल का
इंसान की शिकायत इंसान से लानत है

दूध पीते जानवरों का बड़े शोक़ से
इंसान की ह़िमाक़त इंसान से लानत है

किरामत क़ुदरत की सबका मालिक एक ‘कागा’
इंसान की किराहित इंसान से लानत है

पिंजरे का पंछी

पिंजरे का पंछी इंसान आज़ाद नहीं
ग़ुलामी में क़ेद इंसान आज़ाद नहींं

ऊंच नीच का बोल बाला आला
अमीर ग़रीब बना इंसान आज़ाद नहींं

जाति धर्म की हथकड़ी हाथों में
मालिक मातह़त होता इंसान आज़ाद नहीं

पैरों में बेडियों का बंधन मज़बूत
शाह गदा है इंसान आज़ाद नहींं

गुरू चेला मुर्शीद मुरीद में तक़सीम
महंत मोलवी महात्मा इंसान आज़ाद नहीं

एड़ी से चोटी तक ज़ंजीर बनी
तोड़ नहीं पाया इंसान आज़ाद नहींं

दरबार दरबान चोकीदार ह़ाकम ह़ुकमरान ‘कागा’
आपस में उलझा इंसान आज़ाद नहीं

इंसान अंधा

काम क्रोध इंसान को अंधा बना देते है
लोभ लालच इंसान को अंधा बना देते है

प्रकृति ने मानव को सर्वगुण सम्पन्न प्राणी बनाया
मोह माया इंसान को अंधा बना देते है

माता पिता परिवार दिया सेवा सुरक्षा चाकरी वास्त़े
अहंकार संस्कार इंसान को अंधा बना देते है

खान पान जल थल अग्नि वायु आभा मंडल
भूख प्यास इंसान को अंधा बना देते है

हाड मांस का पुतला बनाया रक्त रंग एक
नींद आलस इंसान को अंधा बना देते है

जाति धर्म इंसान ने बनाया प्रकृति ने नहीं
भेद भाव इंसान को अंधा बना देते है

प्रकृति ने धरोहर सौपी इंसान को सांसें समान
सत्ता सम्पति इंसान को अंधा बना देते है

खोपड़ी-खोपड़ी मत न्यारी आधी अधूरी ज्यादा ‘कागा’
ऊंच नीच इंसान को अंधा बना देते है

हरियाली

जड़ें सींचते रहना हरियाली होती रहेगी
जड़ें नहीं काटना हरियाली होती रहेगी

पतझड़ में पत्ते गिर जाते नीचे
सिंचाई करते रहना हरियाली होती रहेगी

प्रकृति नियम निराला मालिक पुरूष सुजान
जल थल मेल हरियाली होती रहेगी

खेत बाग़ बग़ीचे प्रकृति की देन
जल वायू खेल हरियाली होती रहेगी

जल जंगल जीव जंतु आपसी नाता
होता ताल-मैल हरियाली होती रहेगी

हर ऋतु आती प्रकृति की प्रवृति
गर्म शर्द झेल हरियाली होती रहेगी

सुख दुख चोली दामन का साथ
प्रकृति का खेल हरियाली होती रहेगी

बड़े बुज़र्गों का आशीर्वाद मिले ‘कागा’
आनंद देता उडेल हरियाली होती रहेगी

मां की याद

आज मेरी मां मुझे याद आई
मां की लोरी मुझे याद आई

पालने में सुला कर प्रेम से
हिलोरे देती लोरी मुझे याद आई

जब नहीं आती नींद मुझे कभी
लोड़ देती लोरी मुझे याद आई

गुनगुन गाती गीत गायन लाड़ लड़ाती
मीठी मधुर लोरी मुझे याद आई

मां की ममत समता क्षमता अनोखी
झूला झुलाती लोरी मुझे याद आई

पीठ पर बांध चुनरी से ‘कागा’
चली खेत लोरी मुझे याद आई

मां

मां एक होती सोतेली मां कोई मां नहीं
मां का अपमान सोतेली मां कोई मां नहीं

मां बाप की जुगल जोड़ी अमर जग में
मां के समान नारी मां कोई मां नहीं

सोतेली मां ने ध्रुव से बाप गोद छीनी
बनावटी मां की ममता मां कोई मां नहीं

राम उत्पन्न कोशल्या की कोख से रघु कुल
कैकेई कलंक बनी कुल की कोई मां नहीं

विधाता ने बनाया मां बाप का प्रेम बंधन
रज वीर्य मिलन सगी जेसी कोई मां नहीं

संतान की नसों में मां बाप का रक्त
संचार होता हरदम सोतेली मां कोई मां नहीं

मां की दिल में दर्द होता बेह़द ‘कागा’
पूतना जेसी डायन नारी रखेल कोई मां नहीं

मां के चरणों में स्वर्ग

मां के चरणों में स्वर्ग शाश्वत सत्य
माता की ममता में स्वर्ग शाश्वत सत्य

मां ने अपने गर्भ में सुरक्षित पाला
नहींं आने दी आंच स्वर्ग शाश्वत सत्य

नौ माह तक जकड़ा रहा नाभी से
मिलती रही अमृत धारा स्वर्ग शाश्वत सत्य

मां की छांव जीवन की अनमोल जड़ी
मां के नैनों में स्वर्ग शाश्वत सत्य

मां का मुखड़ा देख जीवन होता धन्य
मां के आंचल में स्वर्ग शाश्वत सत्य

मां की ममता मोहनी मूर्त स़ूरत सुहानी
सुंदर छवि छटा में स्वर्ग शाश्वत सत्य

मां जग जननी मां जीवन आधार ‘कागा
मां का प्यार होता स्वर्ग शाश्वत सत्य

मंगेतर

जब मंगेतर तब तक बेहतर
मांग भरी मांगीं शुरू बेहतर

मांग में चुटकी भर सिंदुर
ललाट पर लाल बिंदी बेहतर

सात फेरे सात वचन संस्कार
निभाना होता जीवन भर बेहतर

आलंगन बांहों में मिंयां बीवी का
सेज सुहाग रात भर बेहतर

गले में पहना मंगल सूत्र
गहना कान नाक नथुनी बेहतर

पति व्रत नारी शील सदाचार
पत्नी व्रत होता नर बेहतर

पति पत्नी का त्याग पाप
अग्नि साक्षी होती महान बेहतर

नोक झोंक मन मुटाव ‘कागा’
बेवजह छोडना से त़लाक़ बेहतर

ओछी मानसिकता

ख़ुद को ख़ुदा मानते ओछी मानसिकता वाले लोग
ख़ुद को जुदा मानते ओछी मानसिकता वाले लोग

ख़ुद में ख़ूबी ख़ास़ियत नहीं होती रत्ती भर
प्रतिभा देख जलते पराई ओछी मानसिकता वाले लोग

दबंगों से नहीं कर सकते मुक़ाबला ओक़ात नहीं
टांग ख़िंचाई करते अपनी ओछी मानसिकता वाले लोग

बड़-बोले करते बकवास सोच विचार संस्कार संकीर्ण
अपनों का करते अपमान ओछी मानसिकता वाले लोग

हर बात पर करते वाद-विवाद बेवजह बदमाश
मत़लब नहीं निकलता कोई ओछी मानसिकता वाले लोग

आग बबुला हो जाते ईर्ष्या की आग में
झुलस उलझ होते बर्बाद ओछी मानसिकता वाले लोग

पराये इशारों पर नाचते कठपुतली बन कर ‘कागा’
अपनों से करते नफ़रत ओछी मानसिकता वाले लोग

आपकी दोलत हूं

जो भी हूं आपकी बदोलत हूं
जो भी हूं आपकी दोलत हूं

तुमने जन्म दिया अपनी कोख से
मां मेरी मुस्कान आपकी दोलत हूं

नन्ही मुन्ही जान रोना मेरा रसूख़
भूख से परेशान आपकी दोलत हूं

आपने सीने लगाया स्तनों से मां
गाढ़ा दुग्ध पान आपकी दौलत हूं

प्रकृति नियम बिना दांत दूध दिया
गर्भ में रसपान आपकी दोलत हूं

तेरे बिना कोई मेरा सहारा नहीं
आंचल मेरी जान आपकी दोलत हूं

दो ब्लाशत लंगोटी मेरी नंगा तन
मां मेरी शान आपकी दोलत हूं

नींद आती चैन से भूख मिटते
भूख प्यास ईमान आपकी दोलत हूं

प्यार दुलार तेरे होंठों से बरसे
गालों को गुमान आपकी दोलत हूं

मल मूत्र से गीले होते पोतड़े
नहाना धोना स्नान आपकी दोलत हूं

तेरा छट्टी का दूध लाज अमानत
ख़्यानत नहीं नुक़स़ान आपकी दोलत हूं

मेरे नैनों में बसी काजल ‘कागा’
मां जीवन दान आपकी दोलत हूं

गुनाहगार

गुनाह का अंजाम क्या होगा सब मालूम
पनाह का अंजाम क्या होगा सब मालूम

इंसान बनकर ह़ेवान ह़दें पार कर देता
जान कर होता अन-जान सब मालूम

इंसान के सिर चढ़ जाता भूत सवार
नादान नाबीन हो जाता इंसान सब मालूम

इंसानियत रुख़्स़त हो जाती अ़क़ल पर ताला
हो जाता हा़वी शेत़ान ह़ेवान सब मालूम

सज़ा सुना देता क़ाज़ी जेसे रब राज़ी
फिर भी गुनाह करता इंसान सब मालूम

पनाह देने वाला बड़ा गुनाहगार सित्मगर ‘कागा’
ख़ुदा नहीं बख़्शे चाहे ह़ुकमरान सब मालूम

ज्ञान

ज्ञान बेचा नहीं जाता बांटा जाता है
अज्ञान बांटा नहीं जाता डांटा जाता है

जब तक जान जिस्म में कर नेकी
ज्ञान हर किसी को बांटा जाता है

शिक्षा शेरनी का दूध पिये वो दहाड़े
ज्ञान ज़रुरत मंद को बांटा जाता है

बुद्धि हीन को ज्ञान बांट चित्त से
ज्ञान गंगा जल पावन बांटा जाता है

ज्ञान की महिमा अति उत्तम जग में
ज्ञान अज्ञान पर भारी बांटा जाता है

बिना ज्ञान मानव जीवन में घोर अंंधेरा
ज्ञान जलता दीप उजाला बांटा जाता है

ज्ञान बिना मानव बिना पूंछ पशु समान
ज्ञान नंगे का परिधान बांटा जाता है

क़लम कापी किताब दवात ज्ञान गुन ‘कागा’
ज्ञान बहती अमृत धारा बांटा जाता है

तेरा मेरा

मैं कोई एरा ग़ेरा नहीं तेरा हूं
मैं कोई नथू ख़ेरा नहीं तेरा हूं

जेसी नज़र वेसा नज़रिया निगाह में नाज़नीन
सीने से लगाना ग़ैर नहीं तेरा हूं

एह़सासे कमतरी का अ़ज़ाब तरक कर यार
ख़ुदी में देख ग़ैर नहीं तेरा हूं

नोक झौंक कहा सुनी होती प्यार में
रुसवाई भी प्यार ग़ैर नहीं तेरा हूं

सोना भी कसोटी पर परखा जाता है
कुंदन कंचन पेहचान ग़ैर नहीं तेरा हूं

जोहरी जान लेता एक नज़र में हीरा
अस़ल नक़ल अंदाज़ ग़ैर नहीं तेरा हूं

तेरा मेरा के तकरार में उलझ ‘कागा’
नहीं दूरी दरार ग़ैर नहीं तेरा हूं

मजनू

तेरे इश्क़ में मजनू हो गया
तेरे प्यार में मजनू हो गया

लेलां करता रहा हर गांव गली
तेरी याद में मजनू हो गया

जीना दुश्वार हुआ ज़िंदगी ज़िल्लत ज़लील
तेरी जुदाई में मजनूं हो गया

होशो ह़वास जोशो जुनून भूल गया
तेरी तलाश में मजनू हो गया

लेलां मजनू का दास्तान सुना होगा
दोरे ह़ाल में मजनू हो गया

इमतिह़ान कब होगा मेरा फ़िदाई का
यक़ीन दिल में मजनू हो गया

सीना चीर कर देखो मेरा ‘कागा’
ललक लेलां में मजनू हो गया

रहनुमाई

ह़ोस़ला अफ़ज़ाई नहीं कर सकते वो करते बुराई
रहबर रहनुमाई नहींं कर सकते वो करते बुराई

सियास्त के सफ़र में गामज़न बेदार बनकर बेशक
बेधड़क बराबरी नहीं कर सकते वो करते बुराई

ख़लक़ ख़िदमत में होती ख़ामी खु़सर फुसर करते
सच्च सच्चाई नहींं कर सकते वो करते बुराई

बेईमानी तेरा सहारा नियत नीति नज़र नेक नहीं
अवल अच्छाई नहींं कर सकते वो करते बुराई

दावा करते वादा नहीं निभाते इरादा अजीबो ग़रीब
ख़ुश नुमाई नहीं कर सकते वो करते बुराई

बुरी सोच विचार वाहियात करते कत़ल ख़ून का
बेबाक भलाई नहीं कर सकते वो करते बुराई

ज़ुबान से ज़हर उगल नफ़रत की आग जलाते
स़ोह़ब्बत स़फ़ाई नहीं कर सकते वो करते बुराई

फ़स़ाद लफड़ा लड़ाई करते आ़म आवाम में ‘कागा’
अमन अंगड़ाई नहीं कर सकते वो करते बुराई

आरज़ू

आरज़ू तेरी दिल में बेचैन रहता है
तमना तेरी दिल में बेचैन रहता है

दिल दीवाना मस्ताना मानता नहीं कहना मेरा
जुस्तजु तेरी दिल में बेचैन रहता है

बिन पंख उड़ जाता बहुत दूर तलक
तलाश तेरी दिल में बेचैन रहता है

बिना पैर चहल क़दमी करता आज़ू बाज़ू
खोज तेरी दिल में बेचैन रहता है

दिल बड़ा नादान जाति धर्म मज़हब नहीं
प्यास तेरी दिल में बेचैन रहता है

प्यार कर देता यार दिलदार बन ‘कागा’
उदास तेरी दिल में बेचैन रहता है

तेरी राह

राह देख रात गुज़री तुम नहीं आये
चाह देख रात गुज़री तुम नहीं आये

वादा कर भूल गये आज आने का
करवटें बदल रात गुज़री तुम नहीं आये

तेरी याद में रात बेरन हो गई
नैनों निहार रात गुज़री तुम नहीं आये

नैनों से नींद ग़ायब मन चरित्र बेचेन
सुबक कर रात गुज़री तुम नहीं आये

आंखों से आंसू टपके गाल गुलाबी गीले
पलकें झुकी रात गुज़री तुम नहीं आये

हवा की आहट ने सारी रात रुलाया
सरपट सुन रात गुज़री तुम नहीं आये

आंखों में दर्द तेरा बार बार बिलखाये
मसल कर रात गुज़री तुम नहीं आये

दिल चोरी कर चले गये आंखों से
आंखें उदास रात गुज़री तुम नहीं आये

तेरे बिना सूना जीवन जीना मेरा अधूरा
आंखें लाल रात गुज़री तुम नहीं आये

एक झलक वास्ते दिल तड़पे मेरा ‘कागा’
रोते रोते रात गुज़री तुम नहीं आये

मां की कोख

हम पैदा हुए मां की कोख से
हम पैदा हुए मां के पेट से

हाड़ मांस रक्त का पुतला मेला कुचेला
हम पैदा हुए मां की कोख से

हमारी नर्म कोमल निर्मल कंचन जेसी काया
मल मूत्र गठरी मां की कोख से

नो माह बंद मां के गर्भ में
भरण प़ोषण हुआ मां की कोख से

पेट में हिलना डोलना मां को पता
मन से परिवर्श मांं की कोख से

लिंग भेद से अनजान माता रही ‘कागा’
आंच आने नहीं मां की कोख से

प्रकृति

प्रकृति से नहींं कर छेड़-छाड़
प्रकृति से नहीं कर चीर फाड़

प्रकृति से प्यार कर यार बन
प्रकृति से नहीं कर लूट लताड़

प्रकृति के नियम बड़े कठोर डरना
प्रकृति से नहीं कर खोट खिलवाड़

प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया
प्रकृति से नहीं कर मार धाड़

प्रकृति हमारी रक्षक भक्षक नहींं भोले
प्रकृति से नहीं कर कोई कबाड़

प्रकृति की कर पूजा अस़ल पालक
प्रकृति ने दिया हमें जंगल झाड़

प्रकृति मानव जीवन में धरोहर पूंजी
प्रकृति ने दिया जल वायू पहाड़

प्रकृति पिता माता जग जननी ‘कागा’
प्रकृति को नहींं करना कभी उजाड़

मंज़िल एक

सबकी मंज़िल एक क्यों भटके इधर-उधर
सबकी मंज़िल एक क्यों लटके इधर -उधर

एक द्वार से आया जग में अकेला
सबका ठिकाना एक क्यों झांके इधर उधर

कोई गोरा कोई काला कोई रंग सावला
सबमें रूह़ एक क्यों देखता इधर उधर

जिसकी मोह़ब्बत मिट्टी से दफ़न होता उसमें
सबका मालिक एक क्यों बहकता इधर उधर

बाग़ एक बाग़बान एक फूल अनेक रंगीले
सबका मक़स़द एक क्यों महकता इधर उधर

चेहके बुलबुल त़ोत़ा मीना मीना कोयल ‘कागा’
सबकी ख़ुशी एक क्यों उड़ता इधर उधर

ख़ास़ियत

बावफ़ा गिर गये नज़रों से बेवफ़ा बग़लगीर बने
बाशऊर गिर गये नज़रों से बेशऊर बग़लगीर बने

ज़माने का दौर दस्ततूर बदला रस्मो रिवाज क़दीमी
बाइज़्जत गिर गये नज़रों से बेइज़्ज़त बग़लगीर बने

इंसान ख़ुश नहीं इंसान से इंसानियत चली गई
बाअदब गिर गये नज़रों से बेअदब बग़लगीर बने

चुग़ल चापलूस की चाल चाल चलती दाल गलती
बाईमान गिर गये नज़रों से बेईमान बग़लगीर बने

घूस ख़ोर गिला ख़ोर चुस्त दुरस्त चमचे चाटुकार
बाज़मीर गिर गये नज़रों से बेज़मीर बग़लगीर बने

‘कागा’ मोर उड़ गये उल्रुओं ने किया बसेरा
हंस गिर गये नज़रों से बगुले बग़लगीर बने

असफलता एक चुनोती

असफलता एक चुनोती नहीं कड़ी अग्नि परीक्षा है
सफलता कोई बपोती नहीं कड़ी अग्नि परीक्षा है

कोशिश कामयाबी की कुंजी खोले क़िस्मत का ताला
जद्दो-जहद कर जान से अग्नि परीक्षा है

ह़ोस़ला रख बुलंद इरादा नेक कामना नियत स़ाफ़
सारे गुनाह ग़ल्त़ी ग़फ़लत माफ़ अग्नि परीक्षा है

एक बार हार कर निढाल होना नहीं कभी
जीत क़दम चूमने को तैयार अग्नि परीक्षा है

ख़ुद पर रख भरोसा ग़ैर पर कभी नहीं
अजनबी होता नहीं अपना दोस्त अग्नि परीक्षा है

सफ़र जारी रख मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी ज़रूर ‘कागा’
सफलता झुक कर गले मिलेगी अग्नि परीक्षा है

चित्त चोर

नैन मिला नज़र चुरा चले गये
.नैन मिला चित्त चुरा चले गये

नैन मिले चैन नही चित्त में
चित्त बेचैन कर चुरा चले गये

हाथ ख़ाली नहींं देखा चोरी करते
चित्त चंचल को चुरा चले गये

जादू टोना टोटका कर छीन लिया
नैनों में बसा चुरा चले गये

नैनों में नीर ठपके अश्रु धारा
भीगी पलकें झुका चुरा चले गये

‘कागा’ काजल बह गया साथ में
नैन बेचैन बेबस चुरा चले गये

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण का संरक्षण करना मानव का कर्तव्य
वातावर्ण प्रदूषित संरक्षण करना मानव का कर्तव्य

बड़े दरखत कट चुके हरियाली हुई ग़ायब
कल कारख़ाने खुल चुके ख़ुशह़ाली हुई गायब

भू माफिया सक्रिय जंगल झाड़ी काटने लगे
पहाड़ तोड़ पत्थर मशीनों से काटने लगे

शहरों में धूंआ धार वाहनों का अवागमन
दम घुटता प्रदूषित वायु मंडल से आवागमन

आज कल करख़ानों की चमनियां उगलती धूंआ
सांसें थम जाती फेला चारों ओर धूंआ

‘कागा’ कोयले की खुदाई होती खदानों से
रेत उड़ती आसमान पर धुंध खदानों से

अंध भगतों की टोली

केसा आया दौर चली अंध भगतों की टोली
अ़क़ल पर लगा ताला अंध भगतों की टोली

भीड़ में भोले भाले गला फाड़ लगाते नारे
उदेश्य का मालूम नहीं अंध भगतों की टोली

मुफ़्त में परोसी जाती पुलाव पूड़ी पकवान खाते
गीत गाती गूंजता आसमान अंध भगतों की टोली

त़ोत़ा बन मुंह मिंया मिठ्ठू बनते महा मूर्ख
अपने पैरों कुल्हाड़ी मारते अंध भगतों की टोली

गले में गमछा हाथ में झंडा थाम कर
किराये पर करते काम अंध भगतों की टोली

माई मरे ह़ल्वा खाना चाहे मिंया मरे दस्तूर
चाहे ग़रीबों पर छुरी अंध भगतों की टोली

नफ़ा नुक़स़ान किसका होगा कोई ज्ञान ध्यान नहीं
बड़ा जोश जुनून जल्वा अंध भगतों की टोली

राजनीति को रत्ती भर नहींं जानते मोहरे बनते
सिहरा बंधता किसी सिर अंध भगतों की टोली

चुनाव होते चहल क़दमी बड़े शानो शोक्त से
पांच साल पूछते नहीं अंध भगतों की टोली

रोते अपनी बदह़ाली पर फूट फूट कर ‘कागा
सच्चाई को मानते नहीं अंध भगतों की टोली

प्रकृति तेरा रूप अनेक

प्रकृति तेरा रूप अनेक मालिक सबका एक
जेसी दृष्टि वेसी सृष्टि मालिक सबका एक

ब्रह्मांड में रचना की जिसने रंग रंगीली
मानव पशु जीव जंतु मालिक सबका एक

पैड़ पोधा जंगल झाड़ी घास फूस घनेरा
कभी सूखा कभी हरा मालिक सबका एक

कोई जल चर कोई नभ चर प्राणी
सबका पेट भरता पूर्ण मालिक सबका एक

वायू जल धरा दूषित वातावर्ण विष भरा
सांसें अटकी सबकी साथ मालिक सबका एक

कल करख़ाना मिल करते माह़ोल गंदा गड़बड़
दम घुट रहा हरदम मालिक सबका एक

अंध-विश्वास का बोल-बाला झूठ झमेला
गुमराह करते ग़रीबों को मालिक सबका एक

दौर आया दबंगों का दीन हीन दुखी
ह़ाल बदतर बदह़ाल निढाल मालिक सबका एक

कीड़ी मकोड़ी रेंगने उड़ने वाले परिंदे पंछी
रूप रंग संग निराला मालिक सबका एक

मानव जीवन में ज़हर घोल नफ़रत का
‘कागा कलेश बढ़ता नित्य मालिक सबका एक

छोड़ चले गये

सात फेरे खाकर छोड़ चले गये
साथ सौगंध खाकर छोड़ चले गये

अग्नि को साक्षी मान फेरे खाये
सुहाग रात मनाई छोड़ चले गये

कितने सावन बीते दुबारा नहीं लोटे
मांग सिंदुर भर छोड़ चले गये

होली खेली नहीं किसी के संग
मंगल सूत्र पहना छोड़ चले गये

दीवाली को दीपक जले मन अंधेरा
जीवन सूना कर छोड़ चले गये

बादल छाये उमड़ घुमड़ बरसी बूंदें
आग सुलगा कर छोड़ चले गये

आहें भरती रोती सुबक दुबक कर
नैन रहते नम छोड़ चले गये

क़ुस़ूर मेरा क्या बताया नहीं कभी
स़बर बांध टूटा छोड़ चले गये

तेरे नाम की माला जपती हरदम
तुम मेरे पिया छोड़ चले गये

मेरे दिल पर क्या गुज़री ‘कागा’
मेरा जीया जाने छोड़ चले गये

पात्ती प्रेम की

पात्ती प्रेम की मेरे सांवरिया के नाम
किस विध्दि लिखें मेरे सांवरिया के नाम

नाम गांव जाति धर्म का पत्ता नहीं
ठोर ठिकाना नहीं मेरे सांवरिया के नाम

दोनों आंखें हुई दो चार मिल कर
मन चैन नहीं मेरे सांवरिया के नाम

सुद्ध बुद्ध गई आपा खोया रोये नैन
टपक पड़े आंसू मेरे सांवरिया के नाम

कांपती उंगलियां बह गया काजल आंखों से
क़लम कागज़ नहींं मेरे सांवरिया के नाम

पात्ती बनाऊं मेरे मन चित्त चंचल की
लिखों बिरह बातें मेरे सांवरिया के नाम

सुन पराई बात मन भरता नहीं मेरा
आग बुझती नहीं मेरे सांवरिया के नाम

उड़ जाना बेठ पिया की आटरिया ‘कागा’
पढ़ प्रेम पात्ती मेरे सांवरिया के नाम

विकास

विकास का विक़ेंद्रिकरण अस़ल विकास है
विकास का क़ेद्रियकरण अस़ल विनाश है

शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल महाविधालय
गांव ढाणी पाठशाला अस़ल विकास है

पेयजल के साधन सुलभ हर घर
शुद्ध जल नल अस़ल विकास है

हर मोह़ल्ला रोशन हो बिजली से
सिंचाई के साधन अस़ल विकास है

आवा-गमन आवा-जाही सुगम हो
चिकित्सा स्वास्थय सुचारू अस़ल विकास है

आ़म ख़ास़ को उपलब्ध ग्रामीण विकास
राजस्व न्याय सस्ता अस़ल विकास है

सड़क परिवहन यात्रा फ़ास़ला कम हो
बाग़ बग़ीचा चमन आस़़ल विकास है

किसान मज़दूर कामगार को काम मिले
बेरोज़गार को रोज़गार अस़ल विकास है

महंगाई की मार ग़रीबों पर आफ़्त
डायन से निजात अस़ल विकास है

पूजा पाठ आस्था के क़ेंद्र ‘कागा’
पवित्र पावन माह़ोल अस़ल विकास है

देर हो रही है

जल्दी करो देर हो रही है
साथी चले देर हो रही है

मंज़िल दूर राह आसान नहीं अंजान
राह कंटीली देर हो रही है

सिर पर रखी गठरी बड़ी भारी
मौसम खराब देर हो रही है

हमराह नहीं कोई चल रहे अकेले
रहबर रहज़न देर हो रही है

आसमान पर बादल छाये रात अंधेरी
चमकती बिजली देर हो रही है

बारिश आंधी त़ूफ़ान सुनामी का ख़ोफ़
पगडंडी पथरीली देर हो रही हैं

संगी साथी चले गये साथ नहींं
ग़ाफ़िल हम देर हो रही है

हम सोये रहे गेहरी नींद में
जगाया नहींं देर हो रही है

गै़र आगे निकल गये ग़म नहीं
हम पीछे देर हो रही है

अपने जागे नहीं अब तक ‘कागा’
दर्द दोहरा देर हो रही है

सम्बल निर्बल

रहना समुंद्र में रखना मगर-मच्छ से बेर
आज बच गई जान तो कल नहीं ख़ेर

छोटी मछलियां गटक जाता एक झटके में जबरन
छोटे बड़े जल चर को लगाता नहीं देर

ऊंची उड़ान आसमान में बुलंद परिंदा दरिंदा बाज़
चिडिय़ां चूंच में पकड़ करता शिकार तीतर बटेर

जीना है जग में ताल-मेल बनाना होगा
जीओ जीने दो नहीं रखना किसी से बेर

जीवन बड़ा अनमोल ज़हर नहीं घोल नफ़रत का
चपेट में आते जाते भोले भाले नहीं फेर

जंगली जानवरों से भरा पड़ा हाथी चीता सियार
लोमड़ी ख़रगोश बिलाव सब से बलवान राजा शेर

बाहू बली करते शोषण निर्बल इंसान का ‘कागा’
अनंत करते अत्याचार दया नहीं आती पकड़ो पैर

ढोंग पाखंड

तिल का ताड़ बना देते लोग
राई का पहाड़ बना देते लोग

बड़े बड़बोले बात का बतड़ंग बनाते
छोटा मुंह बड़ी बात बोलते लोग

रंगी को नारंगी बोलते बेधड़क बेबाक
ओरों से ऊंचा ख़ुद मानते लोग

जाति धर्म का नशा चढा भरपूर
ऊंच नीच भेद भाव मानते लोग

खेतों में अड़वा से डराते जानवर
अंध-विश्वास से भयभीत करते लोग

मनगढ़ंत तोह़मत मढ़ बदनाम करते फ़ालतू
पालतू तीतर क़ौम को फंसाते लोग

हथकंडा अपना कर ज़लील करते ईमानदार
रस्सी का सांप नक़ली बनाते लोग

ढोंगी पाखंडी भ्रम पैदा कर ‘कागा’
ठगी करते ठाठ से लफंगे लोग

सगा

मां बाप के बिना नहीं कोई सगा
औलाद भी कर देती यदा कदा दग़ा

जिस ख़ून से पैदा हुए जीवन सार
यह दुनिया मत़लब की नहीं कोई सगा

पुत्र हो जाता पराया जोरू का ग़ुलाम
इशारों पर नाचता हरदम नहीं कोई सगा

पुत्री बेचारी क्या करे दामाद की अमानत
दो नावों के बीच नहीं कोई सगा

संतान को संस्कार दे धन दौलत तेरी
वरना वृद्धाश्रम भेज देंगे नहीं कोई सगा

लोक लाज से डर रखा घर में
घुट कर जीना होगा नहीं कोई सगा

त़ाने सुनने होंगे हर रोज़ हज़ार ‘कागा’
बेज़मीर बन रहना होगा नहीं कोई सगा

इंसान मुसाफ़िर

इंसान एक मुसाफ़िर मंज़िल का पता नहीं
ख़ुद है बेख़बर मंज़िल का पता नहीं

कहां से आया कहां जाना है आगे
कितना दूर चला मंज़िल का पता नहीं

कौन है अपनी ह़स़ियत क्या अंदाज़ा नहीं
ग़ुरूर में मग़रूर मंज़िल का पता नहीं

गिरेबान झांक कर देख गंद की गठरी
करता बड़ा अभियान मंज़िल का पता नहीं

ज़माने की चकाचौंध में आंखें चौधिया गई
भूल गया मार्ग मंज़िल का पता नहीं

अकेला आया जग में आकेला जाना वापिस
बिसार बेठा ग़ाफ़िल मंज़िल का पता नहीं

मंज़िल बड़ी मन-चली मिलती नहीं ‘कागा’
दो दिन बसेरा मंज़िल का पता नहीं

क़्यामत

फ़िज़ा बदल रही क़्यामत आने वाली है
रज़ा बदल रही शामत आने वाली है

इंसानानियत रफ़्ता -रफ़्ता ग़ायब ख़त्म होते देखी
त़ौर तरीक़ा बदला क़्यामत आने वाली है

औलाद वालदीन की इज़्ज़़त आबरू नहीं करता
तल्ख़ अंदाज़ मिज़ाज क्यामत आने वाली है

रिश्ते नाते खटास भरे मिठास चली गई
ख़ुद ग़र्ज़ ख़ुलूस़ क़्यामत आने वाली है

तहज़ीब तमदन की तंगी तालमेल नहीं ज़रा
लहज़े में शोख़ी क़्यामत आने वाली है

इबगदत उस़ूल प्यार मोह़ब्त कहां गई ‘कागा’
नफ़रत आग भभकी क़्यामत आने वाली है

अपना वजूद

चापलूसों के चक्कर में अपना वजूद खो लिया
चाटुकारों के चक्कर में अपना वजूद खो दिया

चिकनी चुपड़ी बातों में फंस कर ग़फ़लत की
चुग़लों के घक्कर में कपना वजूद खो दिया

काना फूसी कर गुमराह टरते रहे हरदम लोग
दलालों के चक्कर में अपना वजूद खो दिया

उलट फेर की भड़काऊ भाषा सुन कर
बिचौलियों के चक्कर में अपना वजूद खो दिया

गिला शिक्वा कर हेरा फेरी सीना ज़ोरी करते
गिलाख़ोरों के चक्कर में अपना वजूद खो दिया

भृष्ट श्रेष्ट बन गये झूठा झांसा देकर ‘कागा’
घूसख़ोरों के चक्कर में अपना वजूद खो दिया

आज कल की नारी

मांग में सिंदुर गले में मंगल सूत्र ललाट पर लाल बिंदी
कलाईयों में कांंच कंगन नैनों में काजल हाथों में रची महेंदी

काले बाल गूंथे नाक नथुनी कानों में झुमका पैरों में पायल
झुण झुण करती झंकार छम छम करे मन चित्त सब घायल

पनघट पर पानी भरती सिर पर रख गगरिया ठुमक ठुमक कर
चाल मोरनी जेसी मतवाली निराली भोली भाली बजा ताली ठुमक कर

गोरी घूंघट पट में फूटरी निरखत तिरछी नज़र से सब को
मान मर्यिदा इज़्ज़त आबरू रखे लाज ह़य्या से बराबरसब को

प्राचीन काल की परम्परा पावन का पालन होता हर नारी में
आज कलयुग का रस्मो रिवाज छिन्ध भिन्न नयी नवेली नारी में

सिर पर दुपट्टा नहीं खुले बाल बेबी कट चाल चिंकारा जेसी
बड़बड़ बोले सास ससुर से कर तकरार तू तड़ाका तुंकारा जेसी

‘कागा’ कलह करती हर रोज़ ज़ोर ज़िद्द बुज़र्ग वृद्धाश्रम भेजने की
समय पर भोजन नहीं परोसे रट लगाती रहती वृद्धाश्रम भेजने की

ईर्ष्यालु

ईर्ष्यालु ईर्ष्या की आग में जलते रहे
हम अपनी दौड़ भाग में चलते रहे

बराबरी नहीं कर सके बुराई करते रहे
वो अपनी नाकामी से हाथ मलते रहे

हम आगे बढ़ते रहे अपनी चाल में
वो अपने जाल में बुरे फंसते रहे

हम चले अपनी राह पर सम्भल कर
वो ब्याबान दल दल में धंसते रहे

हमने छूआ आसमान नीचे गिरने का ख़त़रा
वो देख ह़ाल हमारा बेकार हंसते रहे

हमें उड़ने की आ़दत केसे बताऊं ‘कागा’
वो घुटनों बल ज़मीन पर रेंगते रहे

ओ मेरे मन

ओ मेरे मन मीत केसे पाऊं जीत
ओ मेरे मन मीत केसे गाऊं गीत

मेरा मन भोला भाला उड़ जाता आकाश
बिना पंख बिना डोरी जेसे पतंग आकाश

पतंग की डोर होती पकड़ी हाथ में
मन बिना बंधन नही डोरी हाथ में

मन बड़ा चंचल भटक जाता भावना में
भाव भरे अनेक घूमता फिरता भावना में

मन बहुत चतुर सुजान सुनता सब की
करता मन की बात सुनता सब की

मन मति न्यारी पल घड़ी बदल जाती
सोच विचार चलना मति गति बदल जाती

ओ मेरे मन मीत केसे निभायें रीत
प्रेम का बंधन पक्का धागा पावन प्रीत

प्रेम में नहीं होती कभी हार जीत
प्रेम अमर अजर रहे नहीं हार जीत

प्रेम प्याला अमृत होता विष रस नहीं
मीरा ने बेहिचक पिया विष रस नहीं

‘कागा’ कलेश नहीं करना दया भाव रखना
मन तन वचन के पाप हरे रखना

हाथी के दांत

हाथी नेता में बराबरी कोई अंतर नहीं
नेता देता झूठा झांसा कोई अंतर नहीं

हाथी दांत दिखाने वाले खाने वाले अलग
देख विश्वास केसे करें कोई अंतर नहीं

हाथी के पीछे कुत्ते भौंकते घेर अनेक
करता नहीं ज़रा परवाह कोई अंतर नहीं

नेता आते चुनाव में करते वादा खोखला
जीत कर भूल जाते कोई अंतर नहीं

खरी खोटी सुनाओ सामने हो जाते ख़ामोश
पीठ पीछे गिला करो कोई अंतर नहीं

कथनी करनी में अंतर नहीं रखना ‘कागा’
वरना तुम भी वेसा कोई अंतर नहीं

कौन मनाये

ख़ुद से गया रूठ कौन मनायें
स्वंय से गया रूठ कौन मनाये

मेरी ओर किसी से रुसवाई नहीं
ख़ुद से है शिकायत कौन मनायें

मन तन चित्त सब कुछ मेरा
ख़ुद से है गिला कौन मनाये

बिना पंख उड़ जाये मन मेरा
ख़ुद से हूं नाराज़ कौन मनाये

तन पर मेरा तनिक नियंत्रण नहीं
ख़ुद से हूं ख़फ़ा कौन मनाये

चित्त चंचल भटक जाता गलियों में
ख़ुद से है शिक्वा कौन मनाये

झूठ बोलन आ़दत नहीं सच्च सीख
ख़ुद से हूं ख़िलाफ़ कौन मनाये

नैन देखते श्रवण सुनते जीभ चखती
ख़ुद में नहीं ख़ूबी कौन मनाये

दांत भोजन खाते चबाते आंत पकाते
ख़ुद रहता मैं ख़ामोश कौन मनाये

हाथों की ह़रकत हल-चल अपनी
ख़ुद बेठा रहता ख़ाली कौन मनाये

नाक सूंघ लेता गंध ताज़ी बासी
ख़ुद नही होता ख़राब कौन मनाये

सांसों का आवागन अपनी मनमानी से
ख़ुद करता खुसर फुसर कौन मनाये

मेरी कोई भूमिका नहीं क़त़ई ‘कागा’
ख़ुद पर आती लाज कौन मनाये

चापलूस चाल

चलो चापलूस की चाल समझ गये
चलो चालबाज़ की चाल समझ गये

देर आये दुरस्त आये ग़ुरूर था
चकना-चूर हुआ बड़ा ग़ुरूर था

सत्ता का नशा चढा था बेह़िस़ाब
किसी को नहीं मिलता था जवाब

नीर नियाणे धर्म ठिकाने कहावत सच्च
आई अ़क़ल अपने ठिकाने कहावत सच्चा

काया माया छाया का घमंड गड़बड़
पल में होगा प्रलय घमंड गड़बड़

‘कागा’ पराई शक्ति का क्या भरोसा
पासा पलट देती कोई नहीं भरोसा

बीता कल

बीता कल याद रखना भूल नहीं जाना
अपनी जड़ें याद रखना भूल नहीं जाना

अपनी जन्म भूमि की मिट्टी मां बाप
अपने परिजन याद रखना भूल नहीं जाना

कुंए का कड़वा पानी खींच निकाल पिया
बूंद बूंद याद रखना भूल नहीं जाना

गांव की गलियों में खेला ख़ुशी से
वो चोबारे याद रखना भूल नहीं जाना

संगी साथी लंगोटिये यार बच्चपन गुज़ारा साथ
सुन्हरे लम्ह़े याद रखना भूल नहीं जाना

वक़्त ने पासा बदला छोड़ देना पड़ा
अपना ख़ानदान याद रखना भूल नहीं जाना

दरख़्त की जडें कटती सूख होता ठूंठ
सींच कर याद रखना भूल नहीं जाना

कट जाती डालियां हरी होती दोबारा ‘कागा’
बसंत को याद रखना भूल नहीं जाना

पिता परमेश्वर

धरती माता पिता आकाश पालन कर्ता
बिना पिता उत्पति नहीं पालन कर्ता

पिता छत्र छाया माता माया काया ममता
पिता निराली क्षमता पिता पालन कर्ता

माता जननी जगदम्बा पिता परमेश्वर दाता
पिता का प्रेम अमर पालन कर्ता

पिता की महिमा न्यारी जग में
माता संग मिलन पिता पालन कर्ता

चिंता रहती पोषण की दिन रात
चित्त शांति नहीं पिता पालन कर्ता

माता उठाती कमर तक पिता कंधा
स्वंय से ऊपर पिता पालन कर्ता

माता ऊमा पिता शिव जुगल जोड़ी
पिता एक सहारा पिता पालन कर्ता

पिता अनोखा प्राणी संतान चाहता सुखी
पिता सुख का सागर पालन कर्ता

पिता कष्ट सहन करता अनेक कागा’
मौम जेसे पिघल जाता पालन कर्ता

रंजिश

रंजिश क्यों रखते लोग मुझे नहीं मालूम
ह़स़द क्यों रखते लोग मुझे नहीं मालूम

बुरा किया नहीं बिगाड़ा नहीं कोई लड़ाई
ईर्ष्या क्यों रखते लोग मुझे नहीं मालूम

किसी व्यक्ति की बद नेकी नहीं की
नाराज़ क्यों रहते लोग मुझे नहीं मालूम

दिल से दोस्त बनाये गले लगा कर
दुश्मनी क्यों करते लोग मुझे नहीं मालूम

कथनी करनी में कोई अंतर नहीं रखा
अ़दावत क्यों रखते लोग मुझे नहीं मालूम

रंजो ग़म नहीं किया दिलो दिमाग़ से
ग़ुस़्स़ा क्यों करते लोग मुझे नहीं मालूम

अमनो अमान भाई-चारा बनाये रखा हरदम
शरारत क्यों करते लोग मुझे नहीं मालूम

दख़ल अंदाज़ी नहीं की तरक्क़ी में ‘कागा’
ख़िलाफ़त क्यों करते लोग मुझे नहीं मालूम

जन सेवक

जन सेवक बन सेवा कर प्रकृति की देन
सेवा कर तन मन से प्रकृति की देन

कर सेवा मिले मेवा कहता सकल जन मानस
एक कण से होता मण प्रकृति की देन

सृष्टि की रचना शुभ सोचो मन चित्त से
भावना का ताना बाना गूंथा प्रकृति की देन

होता जब प्रेम का प्रवाह बहती जल धारा
अमृत बरसे बूंद बूंद पावन प्रकृति की देन

पांच तत्व का पुतला बना रक्त मांस गारा
काम क्रोध लोभ मोह अहंकार प्रकृति की देन

नर नारी दोनों अधूरे एक दूसरे बिना ‘कागा’
वंश वृद्धि होती मिलन से प्रकृति की देन

ज़िंदगी

बंदा कर बंदगी संवर जाए ज़िंदगी
मिटे मन गंदगी संवर जाए ज़िंदगी

छोड़ झेड़ा झगड़ा फ़स़ाद लफड़ा लड़ाई
तज मन तकरार संवर जाए ज़िंदगी

मौत सरासर सच्च ज़रा नहीं झूठ
रख मन निर्मल संवर जाए ज़िंदगी

स्मर्ण कर मालिक सुजित किया संसार
सांस बन बेठा संवर जाए ज़िंदगी

नहीं रंग रूप अलौकिक माया स्वरूप
घट भीतर बिराजे संवर जाए ज़िंदगी

बंदगी है ज़िंदगी ओर नहीं ‘कागा’
छोड़ सारे जंजाल संवर जाए ज़िंदगी

आरक्षण बनाम संविधान

आज कल राजनैतिक दल ज्ञान बांट रहे है
आरक्षण हटाने संविधान बदलने पर ध्यान बांट रहे है

चंद लोगों की मांग आरक्षण हटाया जाना चाहिए
कुछ लोग चाहते संविधान को बदला जाना चाहिए

आरक्षण मिला जाति भेद भाव ग़ैर बराबरी कारण
संविधान निर्माण हुआ हर वर्ग को बराबरी कारण

बहुजन के वोट बटोरने वास्ते मिलती धमकी धौंस
लटकी तलवार ऊपर हटाने की मिलती धमकी धौंस

वक़्त की नज़ाकत सभा स़ूरत देख देते आश्वासन
नेता करते गुमराह ख़ुश करने के झूठे आश्वासन

संविधान भारत की आत्मा को कोई ख़तरा नहीं
आरक्षण कमज़ोर वर्ग को संरक्षण कोई ख़त़रा नहीं

‘कागा’ फ़ालतू अफ़वाहों पर ध्यान देना बेह़द बेकार
शांति बनाये रखना भाईचारा ध्यान देना बेह़द बेकार

पापी मन

छल कपट छोड़ बंदा जीना दो दिन
छीना झपट छोड़ बंदा जीना दो दिन

पराया माल हड़प भाग जाना अच्छा नहीं
लूट खसोट खाना बंदा जीना दो दिन

दो दिनों का जीवन करता पाप पापी
अपने पेट वास्ते बंदा जीना दो दिन

ग़रीब की हाय बुरी लोहा भस्म करे
मृत जीव चाम बंदा जीना दो दिन

राम नाम रट घट भीतर मन मंदिर
स्मर्ण कर निरंतर बंदा जीना दो दिन

काम कलेश लालच मोह माया तज ‘कागा’
कर निर्मल चित्त बंदा जीना दो दिन

पाप का घड़ा

पाप का घड़ा भर चूका फूटने वाला है
घमंड का घड़ा भर चुका टूटने वाला है

पाप का घड़ा पक्का घमंड का घड़ा कच्चा
बारी बारी कर भर चुका फूटने वाला है

रावण कौरव कंस तीनों रक्षा नही कर सके
ईश्वर की लाठी ऊपर लटकी लूटने वाला है

सच्च की नाव डगमग जाती डूबती नहीं कभी
मंझधार में फंसा पेच अब टूटने वाला है

दिल है शीशा ज़रा ठोकर नहीं होती सहन
सम्भल कर लगाना दिल अब टूटने वाला है

आग लगी नफ़रत की चारों ओर घेर ‘कागा’
पक्का बंधन प्रेम का अब टूटने वाला है

देश भगत

हम वत़न प्रस्त हैं बुत प्रस्त नहीं
हम देश भगत हैं अंध भगत नहीं

ख़ून खोलता हमारी रगों में आज़ादी का
हम ख़ुश क़िस्मत है अंध भगत नहीं

गुमराह करते ख़ोफ़ दिखा कर दुश्मन का
हम चुस्त दुरस्त है अंध भगत नहीं

झूठा झांसा खोखला वादा करते हर बार
हम मोला मस्त है अंध भगत नहीं

ताना बाना छिन्न भिन्न करते भाईचारा का
हम तंग दस्त है अंध भगत नहीं

हमारी भोली भाली स़ूरत देख करते दादागिरी
हम अस्त व्यस्त है अंध भगत नहीं

कमज़ोर इरादा नहीं फिर भी करते मनमानी
हम ह़ोस़ला हिम्मत है अंध भगत नहीं

एरे ग़ैरे नथू खेरे मत समझो ‘कागा’
हम गुज़रा वक़्त है अंध भगत नहीं

परिचय

परिचय नहीं पूछ जेसा तेरा वेसा मेरा
जेसी दृष्टि वेसी सृष्टि तेरा मेरा चेहरा

आंखों में आंखें मिला देख तेरी स़ूरत
हूब्हू नज़र आयेगा तुमको तेरा चित्र चेहरा

नेक नियत नेक इरादे से देख मुझको
जिस्म से जुदा हाव भाव एक चेहरा

तेरी नज़र मेरी नज़र में तुम हम
तीसरा नहीं कोई नज़र आयेगा अलग चेहरा

दो दिल सीने अलग धड़कन एक आवाज़
सुर पेहचान लेती देख दूर से चेहरा

दिल केसा अजीबो ग़रीब अंग है ‘कागा’
पेहचान कर देता देख दोनों अजनबी चेहरा

दौर में

जेसी नज़र वेसा नज़रिया दौर में
जेसी ओक़ात वेसा ज़रिया दौर में

चोरों को नज़र आते सब चोर
प्यासे को पोखर दरिया दौर में

ज़ालिम का दबदबा क़ायम है बदस्तूर
तड़प रोता लगातार जिया दौर में

ह़ाकम नहीं सुनता फ़रियाद ग़रीब की
बड़ा पशेमान होता पिया दौर में

रोशन नहीं दुनिया चारों ओर अंधेरा
बिना तेल बुझता दिया दौर में

आसमान सूना बादल बन बिखर जाते
असोज बूंद पुकारे पपिहा दौर में

बाग़ों में बसेरा उल्लु का ‘कागा’
बुलबुल बेज़ार ग़मगीन गोरिया दौर में

भिखारी

भिखारी मांगता भीख ख़ुदा के नाम इंसान से
शाहूकार मांगते मन्नत ख़ुद के नाम भगवान से

भिखारियों की भीड़ भारी इबादत घरों के बाहर
ख़ाली कटोरा हाथों में इबादत घरों के बाहर

अमीर मांगते जाकर अंदर शाही ठाठ बाट से
पूजा पाठ करते इबादत शाही ठाठ बाट से

ऊंचे ख्याल शाही अंदाज़ बड़े बेह़द बेह़िस़ाब ख़्वाब
ख़ुदा को वादा ख़ेरात का करते नेक नवाब

बिना मांगे कुछ नही मिलता इस दुनिया में
मौत नहीं मिलती मुफ़्त मांगने पर दुनिया में

कागा इंसान से मांगने वाले को भिखारी कहते
मालिक से मांग खाने वाले को अधिकारी कहते

चिंतन मनन आत्म मंथन

चिंतन मनन आत्म मंथन करें हम लोग
मानव जीवन मिला मंथन करें हम लोग

मानव पशु प्राणी के बीच यह अंतर
बुद्धि जीव मिल मंथन करें हम लोग

मानव ने सीखे गुण अवगुण जानवरों से
ज़ोर ज़ुल्म पर मंथन करें हम लोग

छीना झपटी गिद्ध दृष्टि कर देना क़तल
ह़ेवान की हरकत मंथन करें हम लोग

शेर जंगल का राजा करता चीर फाड़
सांप करे मनमानी मंथन करें हम लोग

मगर मछ गटक जाये जलधारी जीवों को
कोई न्याय नहीं मंथन करें हम लोग

ग़रीब पर दया दीन हीन पर ह़य्या
करें करूणा सब मंथन करें हम लोग

मां गर्भ में ऊंधा लटके किये क़ोल
भूल बेठे बोल मंथन करें हम लोग

नींद भूख प्यास लालच मोह सबको समान
काम वासना कुसंग मंथन करें हम लोग

काया माया छाया का भरोसा नहींं ‘कागा’
प्रेम भाव बढ़ायें मंथन करें हम लोग

सितारे

सितारे गर्दिश में है ग़म नहीं कर
सितारे बुलंद होंगे दोबारा ग़म नहीं कर

दौर आया है दबंग दोगले लोगो का
नेकी का ज़माना आयेगा ग़म नहीं कर

बेचेन नहीं होना बुलबुल देख ख़ज़ां को
बाग़ों में बहार आयेगी ग़म नहीं कर

सुरख़ियों में छाये आज ह़ाशिये पर हैं
इंसाफ़ा का तरज़ू तगड़ा ग़म नहीं कर

अंधेरी रात आई है स़ुबह़ सवेरा होगा
उल्लू पर आफ़्त आयेगी ग़म नहीं कर

कारवां को जारी रख राही रुकना नहीं
मंज़िल ज़रूर मिलेगी दोस्त ग़म नहीं कर

ज़ालिम का जिगर छलनी यक़ीन कर ‘कागा’
ज़ुल्म सितम खत्म होगा ग़म नहीं कर

दल-दल

दुनिया बड़ा दल-दल पग पग पर छल
दल बदल दिल बदल पग पग पर छल

अब विचार धारा का संघर्ष नहीं सता संघर्ष
कल रहज़न आज रहबर पग पग पर छल

क़त़़ले आम किया बेगुनाह ग़रीबों का वो अगूआ
भगवा भेष धारण किया पग पग पर छल

राजनीति के रंग रूप गिरगिट जैसे रंगीले दोगले
नीले पीले लाल आसमानी पग पग पर छल

किसी के हाथ थामा कमल हाथी साईकल सवारी
सिर पर नुकीली टोपी पग पग पर छल

सौ सौ चूहा खाकर बिल्ली ह़ज चली ‘कागा’
महा अपराधी गंगा नहाये पग पग पर छल

भुलक्कड़

अपने गिरेबांन में झांक कर देख बंदा
कितना ख़ुश नस़ीब कितना ग़रीब देख बंदा

बंद मुठ्ठी आता इंसान खुले हाथ जाता
सौ फ़ी स़दी सच्चाई सोच देख बंदा

झूठ फ़्रेब दग़ा क्यों करता जहान में
वापिस जाना ख़ुदा के घर देख बंदा

रोता आया रुला कर जायेगा अपनों को
क्यों करता ग़ुरूर बद-गुमान देख बंदा

बचकानी बातें तेरी बड़ी प्यारी मन पसंद
भोली भाली लगती मतवाली माफ़ देख बंदा

जवानी का जोश जल्वा जुनून जज़्ज़बा अजूबा
ख़त़ा करता ख़ूब पछताना होगा देख बंदा

भूल गया वादा आये कर याद ‘कागा’
लेखा जोखा हि़स़ाब मालिक का देख बंदा

दर्द ए बेवफ़ा

दर्द ए बेवफ़ा कुछ वफ़ा कीजिये
दर्द ए जफ़ा कुछ वफ़ा कीजिये

दुनिया दर्द का ख़ज़ाना एहसास होता
इंसान दर्द का दास्तान आभास होता

दर्द बड़ा बेदर्द होता वो रोता
नहीं जिसको दर्द कुछ नहीं होता

दर्द ए बेवफ़ा बिस्तर बोरिया बांधो
चले जाओ अपना बिस्तर बोरिया बांधो

वफ़ा कर जफ़ा़ करना बड़ा बुज़दिल
वफ़ा कर बेवफ़ा नहीं बन बुज़दिल

ख़ोफ़ रख ख़ज़ां का बहार में
ग़ुरूर नहीं कर बेकार बहार में

‘कागा’ बावफ़ा बन बेवफ़ा नहीं बेवकूफ़
आंधी त़ूफ़ान से नहीं घबराना बेवकूफ़

मंद बुद्धि

झंझोड़ कर जगाया दोबारा सो गये
गठजोड़ कर भगाया दोबारा हो गये

अपना पराया दोस्त दुश्मन जानते नहीं
नफ़ा नुक़्स़ान बुरा भला जानते नहीं

चुंगल में फंस जाते लालच पर
बिक जाते सस्ते में लालच पर

आम चूसते अमीर ग़रीब गुटलियों को
संतोष करते बटोर कर गुटलियों को

बुराई करते बढ़-चढ़ हड़बड़ी में
शरीक होते हर शरारत गड़बड़ी में

लोक तंत्र में आज़दी से कभी
अपना वोट नहीं दिया खुला कभी

पराये घरो में रोशनी करने वास्ते
अपने घर जलाये ख़ुश करने वास्त़े

‘कागा’ झूठे झांसों में झौंके गये
गुमराह कर हर बार झौंके गये

मज़दूर दिवस

एक मई मज़दूर दिवस मिल जुल मनायें
ख़ून पसीने से नया मान चित्र बनायें

हम मज़दूर जन मानस से दूर नहीं
आम जन का अंग हम जशन मनायें

कल कारख़ाना मिल मशीन सब हुनर जानते
पल घड़ी का रखते ख़्याल पर्व मनायें

साल भर में एक मई शुभ दिन
साल में एक दिन ईद मनायें

परिवार में पूरा दिन साथ इकठ्ठे रहें
बच्चों से मिल प्यार बांटें ख़ुशी मनायें

हम मज़दूर है कोई मजबूर नहीं ‘कागा’
दुनिया के श्रमिक मिल कर मोज मनायें

ग़रीबी महंगाई

ग़रीबी मार गई बचा वो महंगाई मार गई
करिबि मार गये बचा वो दबंगाई मार गई

नंगा दुबला पतला बदन सूखा हड्डियों का बांचा
दो जून रोटी को तड़पे महंगाई मार गई

आटा दाल चावल तेल नमक मिर्च साग सब्ज़ी
आसमान छूते भाव मोल तोल महंगाई मार गई

पीने को पानी नहीं प्यासे पशु पक्षी इंसान
हल्क़ सूखे हर किसी के महंगाई मार गई

बज़ार में मिलावट का बोल बाला चीज़ों में
ज़हर भी महंगा बनावट वाला महंगाई मार गई

लहंगा महंगा चोली चूनरी धोती अंगरखी सस्ते नही
रोटी कपड़ा मकान मांग अधूरी महंगाई मार गई

हाथ में थामा कटोरा भीख नहीं मिलती ‘कागा’
दवा हवा दोनों मिलना मुश्किल महंगाई मार गई

क़ानून

क़ानून सबके लिये बराबर सरासर सच्च
क़ानून में सुराख़ बराबर सरासर सच्च

क़ानून मकड़ जाल फंसते कीड़े मकोड़े
निकल जाते जानवर स़ाबत सरासर सच्च

छोटी मछलियां पकड़ी जाती जाल में
बच जाते मगर मच्छ सरासर सच्च

घास फूस जलती आग ज़नी से
झुलस जाते हरे दरख़्त सरासर सच्च

लाख की चोरी तिनकी की बराबर
बच जाते डाकू लुटेरे सरासर सच्च

ग़रीब को सज़ा मिल जाती गम्भीर
अमीर होते बाइज़्ज़त बरी सरासर सच्च

धुरेंदर क़र्ज़ हड़प भाग जाते ‘कागा’
फंस जाते किसान भोले सरासर सच्च

अपने नहीं मिलते

खोजता हूं ख़ाक में अपने नहीं मिलते
ढ़ूंढता हूं राख में अपने नहीं मिलते

दफ़न किया क़बर खोद ऊपर डाली मिट्टी
दो गज़ कफ़न ज़मीन ऊपर डाली मिट्टी

चित्ता सजाई लकड़ी की जलाई हाथों से
पैनी नज़र देखते रहे जलाई हाथों से

अपने जाते शांत चले हम रोते रहे
आये रोते ख़ामोश चले हम रोते रहे

सिर पटक छाती पीट रोये ज़ारो ज़ार
लोटे नहीं वापिस दोबारा रोये ज़ारो ज़ार

दुनिया फ़ानी आनी जानी नहीं कर मलाल
किसी का भरोसा नहीं होते झटके ह़लाल

‘कागा’ बंद मुठ्ठी आये ख़ाली हाथ चले
क़ुदरत का कमाल किसी की नहीं चले

डा. भीमराव अंबेडकर

अम्बेडकर नेक इंसान थे कोई अवतार नहीं
अम्बेडकर एक महान थे कोई अवतार नहीं

युग बीते सदियां गुज़री कई अवतार आये
अम्बेडकर एक जान थे कोई अवतार नहीं

ऊंचे वर्ण में उत्पन्न हुऐ समस्त अवतार
अम्बेडकर एक मेहरबान थे कोई अवतार नहीं

वंचित वर्ग में पैदा हुए एक इंसान
अम्बेडकर एक दास्तन थे कोई अवतार नहीं

अवतार से कम नहीं जोश जल्वा जुनून
अम्बेडकर एक आलीशान थे कोई अवतार नहीं

शिक्षा संगठन संघर्ष का मंत्र फूंका दमदार
अम्बेडकर एक अरमान थे कोई अवतार नहीं

बहुजन का कोई धणी धोरी नहीं था
अम्बेडकर एक ईमान थे कोई अवतार नहीं

सर्व समाज में व्याप्त कुरीतियों पर सोचा
अम्बेडकर एक क़द्रदान थे कोई अवतार नहीं

महिला मज़दूर के ह़क़ूक़ की ह़िफ़ाज़त की
अम्बेडकर एक वरदान थे कोई अवतार नहीं

राजनीति में माहिर भारत का संविधान रचा
अम्बेडकर एक फ़रमान थे कोई अवतार नहीं

जाति विहीन समाज के प्रबल समर्थक ‘कागा’
अम्बेडकर एक आसमान थे कोई अवतार नहीं

तेरी अदा

तेरी अदा ने पागल किया इंसान को
तेरी स़दा ने घायल किया इंसान को

ख़ुदा ने केसा खा़का खींचा ख़ूब स़ूरत
रंग रूप बड़ा ह़सीन सींचा ख़ूब स़ूरत

आंखें तेरी नूर नूरानी देख होती हेरानी
मद मस्त मन मोहक बड़ी मस्तानी दीवानी

चाल हिरनी जेसी आवाज़ में जादू जुनून
करती कशिश अपनी ओर दिल का ख़ून

लाल गाल काले बाल चेहरा चाल कमाल
शक्ल शानो शोक्त निराली जोश जवानी जमाल

हर अंग उज़्वा रसीला नशीला रंगीला चमकीला
प्यार का भरा प्याला फुर्तीला हठीला जोशीला

मालिक ने बनाई नर मादा की जोड़ी
ख़ास़ ख़ूब ख़ूबियां कोई कसर नहीं छोड़ी

ऋषि मुनी पीर पैग़म्बर सब तेरे दीवाने
तेरे बिना कायनात सूनी दर्द भरे दीवाने

‘कागा’ औरत शहोरत धरोहर धन दोलत हस्ती
उम्दी अदा में होती मौजूदगी मोज मस्ती

नज़रों में है

कौन अपना कौन पराया सब नज़रों में है
कौन दोस्त कौन दुश्मन सब नज़रों में है

ख़ुद ग़र्ज़ ख़ास़ हो जाते चंद लम्हों में
किस किस ने धोखा दिया नज़रों में है

अपना वजूद लगाया दांव पर क़ुर्बान कर वास्ते
किसने सुन्हरा मौक़ा दिया खुला नज़रों में है

हर बार बलिदान हुआ बावफ़ा बन सीना तान
कौन दग़ा बाज़ निकला नादान नज़रों में है

नाम लूंगा किसी का सुन चेहरे उतर जायेंगे
किसने डुबोना चाहा दरिया में नज़रों में है

बिके नहीं झुके नहीं थके नहीं अटल इरादा
चांदी के टुकड़ों पर बिकाऊ नज़रों में है

चिंता फ़िक्र नहीं ज़िक्र नहीं एसे नीच लोग
वक़्त आने पर बता देंगे नज़रों में है

अंधे गूंगे बहरे नहीं चौकने चाक चौबंद हरदम
कौन क्या कहता करता सोचता नज़रों में है

बुरा किया नहीं बिगाड़ा नहीं माहोल गुमराह कर
शांति बनाये रखी चाल बाज़ नज़रों में है

बदनाम करने के बहाने ढूंढे नाकाम रहे ‘कागा’
किस किस ने साज़िश रची नज़रों में है

संघर्ष की मिस़ाल है हम मज़दूर

संंघर्ष की मिस़ाल है हम मज़दूर दुनिया के
हाथ में मशाल है हम मज़दूर दुनिया के

हम मज़दूर ख़ून पसीना एक कर करते मज़दूरी
मुल्क को ख़ुशह़ाल है हम मज़दूर दुनिया के

दिन रात गर्मी सर्दी बारिश आंधी चाहे त़ूफ़ान
देश करते मालामाल है हम मज़दूर दुनिया के

थकते रुकते झुकते नहीं करते मेह़नत मुश्किल में
करते कोशिश कमाल हैं हम मज़दूर दुनिया के

काम चोर नहीं अपने फ़र्ज़ अदा करना धर्म
संघर्ष हमारा जमाल है हम मज़दूर दुनिया के

कैसा कठिन काम हो कूद पड़ते मेदान में
धमाका कर धमाल है हम मज़दूर दुनिया के

रोटी कपड़ा मकान हमारी मूल भूत मांग रहती
ठोक लेते ताल है हम मज़दूर दुनिया के

बाज़ुओं में ता़क़्त हाथी जैसी आज़मा कर देखो
हाथी जेसी चाल है हम मज़दूर दुनिया के

हम मज़दूर मज़बूत मजबूर मायूस उदास नहीं चेहरा
हंसता हुआ ह़ाल है हम मज़दूर दुनिया के

मिस़ाल है संघर्ष के कोई तोड़ नहीं ‘कागा’
वत़न के लाल है हम मज़दूर दुनिया के

जिओ जीने दो

जिओ ओर जीने दो
पिओ ओर पीने दो

जिओ स्वंय जीवन अपना
पिओ भरपूर ग़म अपना

जीने दो हर प्राणी
जीव जंतु हर प्राणी

पशु पक्षी में प्राण
पैड़ पौधों में प्राण

छेड़ छाड़ नहीं करना
चीर फाड़ नहीं करना

जीने का ह़क़ सबको
पीने का ह़क़ सबको

पाप नहीं करना कभी
मन नहीं सताना कभी

‘कागा’अहिंसा परमो धर्म
जय महावीर करो कर्म

हार जीत

हार जीत का काम किया जीवन में
दिल जीत का काम किया जीवन में

एक सिक्के के दो पेहलू आगे पीछे
प्रेम प्रीत का काम किया जीवन में

किसी दिल को चोट नहीं दी कभी
गाना गीत का काम किया जीवन में

मीठा बोल मधुर मिलन मन चित्त चंचल
मन मीत का काम किया जीवन में

जाति धर्म के जंजाल से दूर रहकर
रस्म रीत का काम किया जीवन में

उतार चढ़ाव उथल पुथल देखे आंखों से
शीतल शीत से काम किया जीवन में

चलती चींटी को नहीं सताया तन से
भय भीत से काम किया जीवन में

निज हित्त से हट झट पट ‘कागा’
थन हित्त का काम किया जीवन में

अंतर

कथनी करनी में अंतर नहीं रखना
तोल मोल में अंतर नहीं रखना

इंसान होकर आया जग में बंदा
इंसान बनकर रहना जग में बंदा

चुग़ली चोरी हेरा फेरी नहीं करना
रहना नेक दिल यारी नहीं करना

बुराई भलाई हर कोई जानता है
नेक नियत बद नीति जानता है

तराज़ू से तोल बराबर न्याय करना
किसी को नहीं नुक़स़ान न्याय करना

किसी ग़रीब का ह़क़ नहीं हड़पना
पराये धन के लिये नहीं तड़पना

लिखा क़िस्मत में आकर ज़रूर मिलेगा
सौ तालों में बंद ज़रूर मिलेगा

द्वीष ईर्ष्या किसी से रखना नहीं
बदले की भावना कभी रखना नहीं

दिल सच्चा स़ाफ़ पाक पवित्र रखना
चाल चित्त चेहरा चित्र पवित्र रखना

‘कागा’ कोयल काजल कोयला रंग काला
मोह़ब्बत करना नहींं करना कर्तूत काला

सिक्के के दो पेहलू

एक सिक्के के दो पेहलू होते हैं
अस़ली नक़ली के दो पेहलू होते है

दोनों पर होते अलग निशान नये नवेले
जान पेहचान के दो पेहलू होते है

ज़िंदगी में अनेक रास्ते मंज़िल तक जाना
जल्दी आहिस्ते के दो पेहलू होते है

जो चल पड़े मिल गई मंजिल उनको
जाना आना के दो पेहलू होते है

हार जीत का चोली दामन का साथ
मेहनत मशक्कत के दो पेहलू होते है

किनारे पर बेठे नहीं मिलते मोती कभी
ग़ौता ख़ोर के दो पेहलू होते है

कूद पड़े उफान उमड़ी लहरों के दरम्यान
त़ूफ़ान आंधी के दो पेहलू होते है

अंधेरा उजाला धूप छांव दिन रात ‘कागा’
मरना जीना के दो पेहलू होते है

इंसान

ज़िंदगी में अच्छे इंसान बनो
ज़िंदगी में नेक इंसान बनो

हिंदू मुस्लिम बनो आपकी मर्ज़ी
मज़हब में स़ाफ़ इंसान बनो

सिख ईसाई बोद्ध जैन यहूदी
धर्म से पाक इंसान बनो

मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे जाओ
स्तूप में शरीफ़ इंसान बनो

गीता क़ुरान बाईबल गुरूग्रंथ पढ़ो
अस़ल नस्ल बेदाग़ इंसान बनो

इंसान की इंसान से नफ़रत
अ़दावत नहीं प्यारे इंसान बनो

ख़ुदा अल्लाह ईश्वर वाहगुरू एक
नाम अनेक आप इंसान बनो

इंसानियत इंसान का गहना ‘कागा’
पहन पाक स़ाफ़ इंसान बनो

आज़ाद

हम ग़ज़ब ग़ुलाम आज़ाद कोई नहीं
हम करते सलाम आज़ाद कोई नहीं

कोई बादशाह बेगम की करता ग़ुलामी
हम बुज़दिल बदनाम आज़ाद कोई नहीं

कोई अमीर वज़ीर की करते चापलूसी
हम दीवान दरबान आज़ाद कोई नहीं

कोई सेठ शगहूकार की करता चमचागिरी
हम ग़रीब गुमनाम आज़ाद कोई नहीं

कोई मुरशिद दस्तगीर के मुरीद मलूक
हम बेहद बेजान आज़ाद कोई नहीं

कोई गुरू के चेले करते चाकरी
हम लेते ज्ञान आज़ाद कोई नहीं

कोई जागीरदार ज़मीन के मालिक मेहरबान
हम कामगार किसान आज़ाद कोई नहीं

खेत खलियान हमारा हम करते मज़दूरी
हम भरते लगान आज़ाद कोई नहीं

किसी के हाथों पैरों मे हथकड़ी बेड़ियां
जिस्म जकड़ी ज़ंजीरें आज़ाद कोई नहीं

झमूरियत निज़ाम में भी ग़ुलामी ‘कागा’
ऊंची नीची सीढ़ियां आज़ाद कोई नहीं

ग़रीबी

ग़रीबी में गीला आटा
कभी खारा कभी खाटा

रूखी सूखी बासी रोटी
खाते मिलती पतली मोटी

पेट की आग बुझाते
प्रभू के गीत गाते

जूठन खुरचन बचा खुचा
लगता स्वाद बहुत अच्छा

बिल-बिला देती भूख
बच्चे करते चीख कूक

पानी पीते पोखर का
मेला कुचेला पोखर का

पशु पक्षी भाई -चारा
हम निभाते भाई-चारा

मानव करते बड़ी नफ़रत
अमीर ग़रीब वाली नफ़रत

बाळू रेत हमारा बिछोना
घास फूस बिछाते बिछोना

नींद आती बड़ी गेहरी
चाहे रात दिन दुपहरी

‘कागा’ कोई नहीं हमारा
सहारा कोई नहीं हमारा

स्वाभिमान

स्वाभिमान से समझोता सहन नहीं
सम्मान से समझोता सहन नहीं

अपमान के घूंट पीना नहीं
ज़िल्लत की ज़िंदगी जीना नहीं

बिना इज़्ज़त आबरू जमात केसी
बिना अदब एह़तराम जमात केसी

बेज़मीर बन जीना मौत अच्छी
ज़लील बन जीना मौत अच्छी

सिर उठाये जीना बड़ा बेहतरीन
सिर झुकाये जीना बेह़द बदतरीन

पुलाव पव्वे पर नहीं मरना
पूड़ी पकवान पर नहीं मरना

स्वाभिमान की सूखी रोटी खाना
अपमान की चुपड़ी मत खाना

जहां आदर सत्कार जाना ज़रूर
वहां नहीं जाना जहां ग़ुरूर

झूठे झांसे में फंसना नहीं
लालची लार में फंसना नहीं

बदले की भावना नहीं रखना
बदल जाना द्वीष नहीं रखना

‘कागा’ पराया दामन थामना नहीं
अपनों से आमना सामना नहीं

ज़माना

ज़माना ज़ालिम है फ़ालतू फ़रमाईश नहीं कर
ज़माना ख़ामोश है फ़ालतू ख़्वाहिश नहीं कर

दिल के बदले दिल दिया चोरी नहीं
ज़माना जईफ़ है फ़ालतू आज़माईश नहीं कर

दिल देकर दिल लिया हेरा फेरी नहीं
ज़माना जानदार है फ़ालतू नुमाईश नहीं कर

दिल लगाना कोई गुनाह नहीं प्यार है
ज़माना ज़ोरदार है फ़ालतू पैमाईश नहीं कर

दिल दोनों आशिक़ माशूक की धड़कती है
ज़माना मज़ेदार है फ़ालतू सताईश नहीं कर

इश्क अंधा गूंगा बेहरा लूला लंगड़ा होता
ज़माना शानदार है फ़ालतू पैदाईश नहीं कर

दो दिलों का मिलन बुरा क्यों ‘कागा’
ज़माना दमदार हैं फ़ालतू आराईश नहीं कर

ज़ख़्मी

ज़ख्म दिल के अभी तक भरे नहीं
ज़ख़्म हरे है अभी तक भरे नहीं

ज़ख्म गेहरे है जिस्म छलनी कर दिया
दर्द दिल में अभी तक भरे नहीं

मरहम के बदले नमक लाये मुठ्ठी में
बड़े बेरह़म है अभी तक भरे नहीं

बेदर्द हमदर्द की नोटंकी करते ह़ाल पूछ
बड़े बेशर्म है अभी तक भरे नहीं

नशतर लाये हो हाथों में मत कुरेदो
बेवजह नहीं छेड़ो अभी तक भरे नहीं

ग़ल्त़ी ख़त़ा बता करते एसी बदनुमा हरकत
अचानिक किया ह़मला अभी तक भरे नहीं

घात लगा विश्वास घात किया क़रीबी बन
छेड़ छाड़ नहीं अभी तक भरे नहीं

ज़ख़्मी होकर ज़िंदा है सांसें अटकी ‘कागा’
मरने को मजबूर अभी तक भरे नहीं

खुदी भूल गये

ख़्यालों में खोये ख़ुदी भूल गये
सवालों में खोये ख़ुदी भूल गये

ज़िंदगी में हम सफ़र मिला मगर
जवाबों में खोये ख़ुदी भूल गये

ख़्याल ख़ूब आते क़दम दर क़दम
ख़्वाबों में खोये ख़ुदी भूल गये

ग़ुलामी का गुनाह किया बेगै़रत बन
स़वाबों में खोये ख़ुदी भूल गये

कश्ती मंझधार में डगमग कर डोली
हिचक़ोलों में खोये ख़ुदी भूल गये

भरोसा रख बेठे ग़ाफ़िल ग़ैरों पर
ख़ुमारी में खोये ख़ुदी भूल गये

बेपरवाह बने बाबफ़ा थे नेक दिल
इशारों में खोये ख़ुदी भूल गये

फ़िज़ा बदली रज़ा ख़ुशी रब्ब की
नज़ारों में खोये ख़ुदी भूल गये

दिल दिया दग़ा बाज़ को ‘कागा’
मकारों में खोये ख़ुदी भूल गये

राजनीति के रंग

राजनीति का रंग रूप बदल गया
राजनीति का संग स्वरूप बदल गया

धर्म जाति का घाल मेल घुसपेठ
राजनीति में चाल चरित्र बदल गया

भाई भतीजा वाद का बोल बाला
राजनीति का त़ौर त़रीक़ा बदल गया

बाहू बल धन बल दल बल
राजनीति का ढंग ढाल बदल गया

रोटी बेटी रिश्ता नाता वोट वास्ते
राजनीति का रस्मो रिवाज बदल गया

मन गढ़ंत तोह़मत मढ़ना आ़म बात
राजनीति का उस़ूल आमाल बदल गया

बदनाम करना बेवजह फ़ित़रत बन गई
राजनीति में क़द्र क़ायदा बदल गया

अस़ल नस्ल नक़ल की पेहचान नहीं
राजनीति में तोल मोल बदल गया

कल आये वो बग़लग़ीर बन गये
राजनीति में मान दंड बदल गया

‘कागा’ कारवां को कुचल बने अगूआ
राजनीति में ईमान अरमान बदल गया

बेहत्तर समाज

बेहत्तर समाज वास्ते इच्छा शक्ति की दरकार होती हैं
बदत्तर समाज वास्ते बद नीति की दरकार होती है

सरल स्वभाव सादा जीवन उच्च विचार धारा नेक इरादा
बेहत्तर समाज वास्ते नेक नियत की दरकार होती है

इंसान में इंसानियत कूट कूट कर भरी हो भरपूर
बेहतर समाज वास्ते सुंदर संस्कार की दरकार होती है

भेड़ खाल ओढ़ घुस जाते भैड़ों के झुंड में
बेहतर समाज वास्ते बुलंद आवाज की दरकार होती है

बहुरूपिए मुखौटा लगा कर नक़ली चेहरे पर करते गुमराह
बेहत्तर समाज वास्ते ह़क़ीकी हुलिये की दरकार होती है

हम ठहरे अस़ली नक़ली से नहीं दूर का रिश्ता
बेहत्तर समाज वास्ते अस़ल नस्ल की दरकार होती है

खेतों में उग जाये कंटीली झाड़ियां काटना होता ज़रूरी
बेहत्तर समाज वास्ते स़ाफ़ स़फा़ई की दरकार होती है

कुरीतियां खोखला कर देती चाट दीमक की त़रह़ ‘कागा’
बेहत्तर समाज वास्ते कुशल किरदार की दरकार होती है

मानव दानव

बिना संस्कार मानव पशु समान
बिना विचार मानव पशु समान

मानव दानव में भेद संस्कार
बिना आचार मानव पशु समान

मलीन मन जिस मानव का
बिना सार मानव पशु समान

सभ्यता संस्कृति के बग़ैर मानव
बिना प्यार मानव पशु समान

कर्तव्य निभाना मानव की मानवता
बिना आधार मानव पशु समान

मानव की मुस्कान ख़ुशी ग़म
बिना दुलार मानव पशु समान

मानव की मानव से नफ़रत
बिना यार मानव पशु समान

मुंह छुपाये कब तक जीना
बिना दीदार मानव पशु समान

दो दिलों का मिलन ‘कागा’
बिना उपकार मानव पशु समान

हिचकियां

आती बेहद हिचकियां किसी की याद में
आती ख़ूब सिसकियां किसी की याद में

उमदराज़ हो चुके दिल फिर भी जवां
आती भर आंखियां किसी की याद में

चले गये शदीद दर्द हुआ दिल में
वो सहेली सखियां किसी की याद में

बहुत प्यारी नोक झौंक होती रहती हरदम
मीठी मस्त तल्ख़ियां किसी की याद में

मुद्दतें गुज़री हम फिर भी मुनतज़िर बेताब
उड़ती सामने तितलियां किसी की याद में

दिल सिहर उठता जब याद आती कभी
सूनी लगती गल्लियां किसी की याद में

फूल खिलते चमन में रंग बरंगी गुलज़ार
मुस्कुराती दिल कल्लियां किसी की याद में

मौसम आया लोट वो नहीं वापिस ‘कागा’
रसीली रंग रल्लीयां किसी की याद में

मत़लबी दुनिया

मत़लब निकल आया अब पेहचान नहीं
वक़्त गुज़र गया अब पेहचान नहीं

गिड़गिड़ा कर तलवे चाटते चमचागिरी कर
उदास मायूस चेहरा अब पेहचान नहीं

सिर झुका हाथ जोड़ करते अ़र्ज़
मिट चुकी ग़र्ज़ अब पेहचान नहीं

अनजगन अजनबी बन गये जेसे ग़ैर
ज़ुबान में तलख़ी अब पेहचान नहीं

चापलूस बन चाटुकारी करते बड़े बेज़मीर
काम हुआ मुकमल अब पेहचान नहीं

बड़े अदब से पैश आते हरदम
बेवफ़ा बन गये अब पेहचान नहीं

नज़रें झुका कर चलते थे ‘कागा’
घूरते दूर से अब पेहचान नहीं

आई चिल-चिलाती गर्मी

आई चिल-चिलाती गर्मी पसीना से तर-बतर
छाई चित्त चलाती गर्मी ह़सीना भी तर-बतर

चलती गर्म हवा लू-ताप के थपेड़े हरदम
धूल भरी आंधी चलती पसीना से तर-बतर

तपती धूप दुपहरी आई चिल चिलाती गर्मी चुभन
मेहनत कश मज़दूर मायूस पसीना से तर-बतर

किसान अपने खेत खलियान में ख़ुश बड़े बेपरवाह
ग़रीब झुग्गी झौंपड़ी में पसीना से तर-बतर

सेठ शाहूकार करते कोठियों में मोज मस्ती
सुख के संसाधन मौजूद पसीना से तर-बतर

आई चिल चिलाती गर्मी पशु पक्षी सब परेशान
हांफते कांपते हाय तोबा पसीना से तर-बतर

तरबूजा खरबूजा की त़लब होती बढ़िया मांग ‘कागा’
चिल चिलाती धूप में पसीना से तर-बतर

घर जाना है

हम सबको अपने घर जाना है
पल भर पड़ाव घर जाना है

यहां आना जाना दुनिया मुसाफ़िर खा़ना
चंद दिन डेरा घर जाना है

रिश्ते नाते सब मत़लब के बंदा
दिन रात बसेरा घर जाना है

आये अकेले जग में जाना अकेला
नहीं संगी साथी घर जाना है

हमारा घर कोई दूर नहीं पड़ोसी
हम है मुसाफ़िर घर जाना है

पैदल आये नहीं कोई सवारी से
कंधों पर चढ़ घर जाना है

हमारी कमाई दो गज़ ज़मीन कफ़न
मिट्टी में दफ़न घर जाना है

कोई जला देंगे चित्ता पर रख
मुख में आग घर जाना है

अपनों का सलूक बड़ा दमदार ‘कागा’
नहीं गिला शिक्वा घर जाना है

बदलव प्रकृति का नियम

बदल बंदा बदल बदलाव प्रकृति का नियम
हर पल बदल बदलाव प्रकृति का नियम

हर मौसम हर पल बदल जाता रंग
संग साथ बदल बदलाव प्रकृति का नियम

तख्तो जात राज बदल रस्मो रिवाज बदल
नाज़ो नख़रे बदल बदलाव प्रकृति का नियम

पतझड़ पर सारे पत्ते छोड़ देते डालियां
ग़ुंचे फूल जाते बदलाव प्रकृति का नियम

हवा पानी धरती आकाश सब बदलते रहते
आंधी त़ूफ़ान बारिश बदलाव प्रकृति का नियम

मिज़ाज बदल समाज बदल नई राह पर
पुराना साज़ बदल बदलाव प्रकृति का नियम

वेश भूषा खान पान रहन सहन बदल
ताना-शाह बदल बदलाव प्रकृति का नियम

बोल चाल त़ौर त़रीक़ा वक़्त के साथ
रूढ़ि रिवाज बदल बदलाव प्रकृति का नियम

पड़ा पानी भी सड़ांध पैदा कर देता
जाग उठ चल बदलाव प्रकृति का नियम

सांप साल में केंचुली बदलता एक बार
लिप्ट चंदन से बदलाव प्रकृति का नियम

कीचड़ का कीड़ा कब तक बने रहोगे
फूल का बन बदलाव प्रकृति का नियम

शिक्षा शेरनी का दूध पिये प्याला ‘कागा’
दिल को बदल बदलाव प्रकृति का नियम

सत्ता का रास्ता

सत्ता का रास्ता राजनीति जीवन संघर्ष
सत्ता का वास्ता राजनीति सत्ता संघर्ष

सत्ता संकरी गली नहीं गुज़रा जाये
पग पग पर होता सत्ता संघर्ष

सत्ता प्राप्ति सेवा भाव समर्पित जीवन
बिना सत्ता सपने अधूरे सत्ता संघर्ष

कर सेवा मिले मेवा मन भावन
पीड़ित की दुआ सीढ़ी सत्ता संघर्ष

ग़रीब की हाय बुरी नहीं सताना
प्रेम से गले लगाना सत्ता संघर्ष

आहिस्ता चल सोच विचार राह कंटीली
बिखरे रोड़े हटा चल सत्ता संघर्ष

जीवन में सत्ता संघर्ष जारी रख
रुकना झुकना थकना नहीं सत्ता संघर्ष

दबंग दलाल चापलूस चुग़ल का दौर
ताल मेल की तमना सत्ता संघर्ष

सांप नाथ नाग नाथ दोनों दमदार
हिम्मत ह़ोस़ला हुनर रख सत्ता संघर्ष

कभी कसाई कभी सपेरा कभी मदारी
बीन जादू छड़ी रख सत्ता संघर्ष

‘कागा’ बिना करिश्मा राजनीति आसान नहीं
साम दाम दंड भेद सत्ता संघर्ष

अपने पराये

हम पर क्या गुज़री दिल जाने
हम पर क्या बीती दिल जाने

दिल जल कर फफोले फूट पड़े
मवाद बेशुमार क्या गुज़री दिल जाने

दिल ने दर्द सहा नहीं बोला
आह भरी क्या गुज़री दिल जाने

सिर क़लम हुआ क़ौम वास्ते क़तल
तड़पते रहे क्या गुज़री दिल जाने

जनाज़ा उठा कंधा तक नहीं दिया
ख़ामोश रहे क्या गुज़री दिल जाने

ग़ुसल नहीं कराया अपने हाथों से
सुबकते रहे क्या गुज़री दिल जाने

नमाज़ नहीं पढ़ी वुज़ू करते रहे
दुबक कर क्या गुज़री दिल जाने

फूल हाथों में बरसाया नहीं गया
कांपते रहे क्या गुज़री दिल जाने

कफ़न को छूआ तक नहीं ज़रा
नहीं दीदार क्या गुज़री दिल जाने

मिट्टी नहीं मुठ्ठी भर दफ़न वास्ते
दूरी बनाई क्या गुज़री दिल जाने

क़बर खोदी गै़रों ने केसी ‘कागा’
देखा नहीं क्या गुज़री दिल जाने

ज़िंदगी एक अनसुनी कहानी हैं

ज़िंदगी एक अनसुनी कहानी है
ज़िंदगी एक अनसुलझी कहानी है

मलाल नहीं कर ज़िंदगी पर
ज़िंदगी एक अनबुझी कहानी है

ज़िंदगी मिली ज़माने में सौग़ात
ज़िंदगी एक अनहोनी कहानी है

बिना ज़िंदगी जहान सब सूना
ज़िंदगी एक अनकही कहानी है

ज़िंदगी में बंदगी कर बंदा
ज़िंदगी एक अनजान कहानी है

ज़िंदगी को जाया नहीं करना
ज़िंदगी एक ज़बरदस्त कहानी है

बिना ज़िंदगी रिश्ता नाता केसा
ज़िंदगी एक रूह़ानी कहानी है

बिना ज़िंदगी प्रेम प्रकट नहीं
ज़िंदगी एक क़िस़्सा कहानी हैं

दर्द दिलों में दबे धधकते
ज़िंदगी एक ज़रूरी कहानी है

ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आते
ज़िंदगी एक अधूरी कहानी है

‘कागा’ जिंदगी मौत का मेल
ज़िंदगी एक ज़ुबानी कहानी है

जज़्बात ख़ामोश पत्थर दिल

जज़्बात ख़ामोश हो गये पत्थर हुआ दिल
फस़ादात ख़ामोश हो गये पत्थर हुआ दिल

बड़े नाज़ फ़ख़र से सीने में संजोया
मोम जेसे पिघलने वाला पत्थर हुआ दिल

धड़कनें बड़ी तेज़ होती थी मिलने पर
हांप जाता कांप जाता पत्थर हुआ दिल

बड़ा नर्म कोमल निर्मल मुलायम लचक थी
बुरी नज़र लगी किसकी पत्थर हुआ दिल

दिल आंखों का गेहरा रिश्ता नाता गम्भीर
नैन नम भरा ग़म पत्थर हुआ दिल

सोचा नहीं कभी एसा मुश्किल वक़्त आयेगा
अपने होंगे अजनबी पराये पत्थर हुआ दिल

बच्चपन में बेपरवाह बेताज बादशाह था हरदम
जवानी जोश जल्वा जुनून पत्थर हुआ दिल

जब मौम था पिघल जाया करता एकदम
फेल जाता फेफड़ों तक पत्थर हुआ दिल

मौम पिघल अश्क बन उमड़ आते बेबस
गिरते आकर गालों पर पत्थर हुआ दिल

जब से जज़्बात ख़ामोश हो गये ‘कागा’
दुबक सुबक सिसक रहा पत्थर हुआ दिल

अपना वजूद

अपना वजूद नहीं पराये भरोसे पेहलवान
संबल मोजूद नहीं पराये भरोसे बलवान

उछल कूद करते बंदर लंगूर जेसी
अपनी ओक़ात नहीं पराये भरोसे पेहचान

बोलने का त़ौर तरीक़ा तमीज़ नहीं
अपना सलूक नहीं पराये भरोसे ज़ुबान

अंध भक्त बन कर बेठे बेपरवाह बेवक़ूफ़
नज़रिया नहीं अपना पराये भरोसे नादान

आंखों पर पट्टी बांधी जान-बूझ
पंंख नहीं अपने पराये भरोसे उड़ान

‘कागा क़िस्मत सहारे बेठे कंजूस कायर
बेह़द बेकार बदह़ाल पराये भरोसे जान

आरक्षण सहारा

आरक्षण सहारा है कोई ख़ेरात नहीं
आरक्षण सहारा है कोई सौग़ात नहीं

जेसे माज़ूर को लाठी का सहारा
आरक्षण सहारा है कोई करामात नहीं

स़द्दियों से क़ब्ज़ा कर रखा था
आरक्षण सहारा है कोई जज़्बात नहीं

जिसकी लाठी उसकी भैंस दौर गया
आरक्षण सहारा है कोई शरारत नहीं

धरोहर पर बराबर का ह़क़ ह़िस़्स़ा
आरक्षण सहारा है कोई बग़ावत नहीं

ऊंच नीच भेद भाव जाति धर्म
आरक्षण सहारा है कोई ख़ुराफ़ात नहीं

आदम-शुमारी के आंकड़े तादाद तक़्सीम
आरक्षण सहारा है कोई इनायत नहीं

भीख नहीं मांगते मुनासिब ह़क़ हैं
आरक्षण सहारा है कोई विरासत नहीं

चंद सिरफिरे लोगों के मरोड़ें आती
आरक्षण सहारा है कोई सियास्त नहीं

गाहे बगाहे सवाल खड़े करते लामबंद
आरक्षण सहारा है कोई ख़िदमात नहीं

अमीर ग़रीब की वोट क़ीमत बराबर
आरक्षण सहारा है कोई ह़िमाक़त नहीं

आवाज़ दबाने का अजीब त़रीक़ा ‘कागा’
आरक्षण सहारा है कोई ज़मानत नहीं

जन सेवक

मत पूछो जात हमारी हम जन सेवक
मत पूछो ओक़ात हमारी हम जन सेवक

जब समाज संकट की घड़ी में था
तब ए़श अ़शरत में हम जन सेवक

ग़म के आंसू पूंछे नहीं आकर कभी
ह़ाल चाल पूछे नहीं हम जन सेवक

पैर में चुभा कांटा निकाल नहीं सके
पीड़ा में पिसते रहे हम जन सेवक

सौ चूहा खाकर बिल्ली ह़ज को चली
कोई बचाने नहीं आया हम जन सेवक

ग़रीब झूझ रहे थे गर्म दुपहरी में
कर रहे थे विश्राम हम जन सेवक

हमारा रोब रुतब्बा शानो शोक़त धन दौलत
क़ाबिले तारीफ़ दमदार है हम जन सेवक

कार कोठी क़द काठी मज़बूत हमारी कागा’
स़ानी नहीं सियास्त में हम जन सेवक

ज़र ज़मीन जोरू

ज़र ज़मीन जोरू जंग की जड़
तारीख़ गवाह तीनों जंग की जड़

दुनिया में हर दौर की लड़ाई
ज़र दौलत रहीं जंग की जड़

जब हुआ ज़मीन पर जबरन ह़मला
मुक़ाबला कर बचाया जंग की जड़

जब हुई इज़्जत अस्मत पर चोट
मरने को तैयार जंग की जड़

जब आई आबरू पर आफ़्त आंच
तब जोहर हुआ जंग की जड़

रामायण महा भारत खुलम खुला मिस़ाल
रावण कौरव कटे जंग की जड़

विश्व युद्ध हुआ आई क्रांति ‘कागा’
तीनों से तकरार जंग की जड़

इंसानियत

बग़ावत के बीज मत बोना खेतों में
नफ़रत की आग मत लगाना खेतों में

अमनो अमान का पैग़ाम देना अ़वाम को
हरियाली पर नज़र नहीं लगे खेतों में

फ़स़ल लहलाती हर कोने में किसानों की
खलियानों में ख़ुशी छाई निराली खेतों में

मेह़नतकश मज़दूर ख़ुश होकर देते मिल मुबारकबाद
भाईचारा की मिस़ाल मज़बूत ख़ूब खेतों में

बग़ावत के बीज बाग़ी बन उगते कांटे
चुभते नंगे पाऊं में अपने खेतों में

नफ़रत की आग भभक जाती लपटें बनकर
फ़स़लें जल कर राख करती खेतों में

बीज बोये लाशों के क़तले आ़म कर
ज़मीन ख़ून उगलती सेलाब बन खेतों में

ख़ुदा ने इंसान बनाकर भेजा जहान में
धर्म मज़हब में तक़्सीम हुऐ खेतों मैं

रोटी की कोई जाति धर्म नहीं ‘कागा’
सब खाते इंसान पैदा कर खेतों में

बच्चपन

कोई है माई का लाल बच्चपन लोटा दे
कोई है माई का लाल पच्चपन लोटा दे

बच्चपन की भोली भाली बिना द्वीष की बातें
बिना बात रूठ जाना पल भर लोटा दे

अपना घरोंदा बना देते मिट्टी का मिल कर
मिला देते दोबारा मिट्टी में बिखेर लोटा दे

दोस्ती सब से करते बेर नहीं किसी से
कट्टी बंधी के बीच खेल हमारा लोटा दे

मां बाप के आंखों के तारे सूरज चांद
अड़ोस पड़ोस के होते दुलारे लोटा दे

बच्चपन की बीती हुई बातें हूब्हू याद हैं
खेल कूद खिलोना सलोना साज़ कोई लोटा दे

माना बीता कल आता नहीं दोबारा लोट वापस
बच्चपन छोड़ो दम है तो पच्चपन लोटा दे

अब जिस मोड़ पर खड़े दोनों याद आते
हाथ पांव थर थर कांप जाते लोटा दे

बच्चपन जवानी पच्चपन गुज़रना क़ुदरत का क़ानून ‘कागा’
गुज़रा ज़माना आता नहीं फिर कोई लोटा दे

आरक्षण

तलवार लटकी है बहुजन के सिर
सांसें अटकी है बहुजन के फिर

हज़ारों साल मुख्य धारा से दूर
आरक्षण आधार गया सवालों में घिर

संविधान में मिला आरक्षण का सहारा
हटाने की मिलती धमकियां उधर इधर

ख़ोफ़ के साये में ज़िंदगी बदतर
जानवरों को होता शेर का डर

रंगा सियार देते बार बार भभकी
स़फ़ाई देता ह़ाकम सताता जब डर

दौड़ चूहा बिल्ली आई खेल चलता
तब होते लामबंद फिर जाते बिखर

समाज ने अपना रुख़ नहीं बदला
हज़म नहीं होता आरक्षण अगर मगर

द्वेष भाव की चिंगारी सुलग रही
ज्वगला कब बनेगी सबकी है नज़र

कहते सब संविधान भारत की आत्मा
सिरफिरे करते माह़ोल ख़राब कुटिल कट्टर

कथनी करनी में अंतर बहुत ‘कागा’
बदलते बयान बुज़दिल करते नहीं आंद्र

अस़ली

ऊंचा दुकान फीका पकावान दिखावटी
माल बिकता सारा नक़ली मिलावटी

कोई आंखों से अंधा नाबीन
किसी के आंखों पट्टी बनावटी

कोई अ़क़्ल के अंधे गाफ़िल
कोई करते देखा देखी सजावटी

किसी का भेजा गोबर भरा
कोई पीढ़ी दर पीढ़ी परिपाटी

मान नहीं मान मेहमान तेरा
पुलाव से बढ़िया दाल बाटी

तन तंदुरस्त चुस्त नहीं ‘कागा
सहारा बनी सम्बल लकड़ी लाठी

सम्मान अपमान

लोकतंत्र में मत-दाता का सम्मान
षड़यंत्र में मत-दाता का अपमान

चापलूस चाट चाशनी के चक्कर में
करते नेक दान-दाता का अपमान

काना-फूसी चुग़ली कर उल्ट फेर
करते गुमराह अन्न-दाता का अपमान

कानों में ज़हर घोल भरपूर बेवजह
करते बंदनाम नेतृत्व नेता का अपमान

मत-दाता भाग्य विधाता होता है
करते कर्मठ कार्य-कर्ता का अपमान

संवाद-दाता करते फ़र्ज़ अदा अपना
करते जमकर रिश्ता नाता का अपमान

हिमायती बन आते हमदर्द इंसान ‘कागा’
करते हरदम हमदम फि़रश्ता का अपमान

नया दौर

अब कौन पूछता नये लोग मिल गये
अब कौन पूछता नये दिल मिल गये

पतझड़ मौसम चला गया आई बसंत बहार
गुंचे अंकुर गये नये गुल खिल गये

हम अमन के दीवाने चैन करते पसंद
ख़ुशनुमा माह़ोल में अचानिक ज़हर घुल गये

मोर उड़ गये उल्लुओं ने किया बसेरा
बुलबुल बहक गये सारे पोल खुल गये

आग लगी सीने में मोह़ब्त मिलन की
बिछुडने के फफोले ज़ख़्म बन छिल गये

अटल इरादे हमारे कभी डगमग नहीं हुए
एक झटके में ज़लज़ला बन हिल गये

आरज़ू थी मुलाक़ात की बड़ी शिद्दत से
हम इंतजार करते रहे वो कल गये

नया दौर नया ज़माना नया कारवां ‘कागा’
नये चेहरे नये मोहरे पुराने पल गये

जय श्री राम

जय श्री राम जय राम नाम
जय बोलो राम सकल सम्पन्न काम

राम नाम राम बाणा दर्द दवा
राम नाम राम बाण दर्द हवा

राम नाम जप कर तप नाम
तड़पत को होता तुरंत चैन आराम

राम नाम की लूट में छूट
राम नाम रट बंधन जाये टूट

अटूट रख नाता राम नाम से
मिट जाये भ्रम राम नाम से

राम नाम भज मानव मन से
काल कटे राम रटे मन से

मेरा राम मेरे रोम रोम बसे
तेरा राम तेरे रोम रोम बसे

राम रट घट पट खोल घूंघट
राम रमे मन में खोल घूंघट

राम बिना मुक्ति नहीं मिले सुनो
राम बिना शक्ति नहीं मिले सुनो

‘कागा’ राम नाम जीवन का सहारा
राम है बेसहारा का मात्र सहारा

अंदाज़

चलो अच्छा हुआ हम राज़ निकले तुम
ग़ैर होकर दिल के राज़ निकले तुम

कुरंजों का झुंड देख गुमराह था मैं
बद-गुमान हुआ बुलंद बाज़ निकले तुम

फिदा होकर दिल दे दिया अपना तुमको
यक़ीन किया दोस्त दगा़ बाज़ निकले तुम

सोचा नहीं था कभी दिल में एसा
दिल तोड़ कर धोखे बाज़ निकले तुम

उजला देख हंस समझा मैं ने तुमको
बेह़द बेकार बगुला चाल बाज़ निकले तुम

नज़र अंदाज़ कर रखा था तुमने ‘कागा’
दर्द दिया हमदर्द बन अंदाज़ निकले तुम

 

चित्त चोर

मत जाओ दिल तोड़ कर
मत जाओ हमें छोड़ कर

थोड़ा रूको चंद दिनों वास्ते
दिल भरा नहीं जोड़ कर

दिल हुआ तेरा अब मेरा
बिना पैर चल दोड़ कर

चले जाना अब तो ठहरो
जाना नहीं मुंह मोड़ कर

प्यार किया है गुनाह नहीं
मिज़ाज नहीं बदल झोड़ कर

बावफ़ा बन बेवफ़ा नहीं ‘कागा’
मत जाओ दिल झंझोड़ कर

राम नाम भज ले ए प्यारे

राम नाम भज ले ए प्यारे जीवन सफल होगा
राम नाम की धूम मची प्यारे जीवन सफल होगा

राम नाम रट घट भीतर कर नौ द्वार बंद
अऊं सऊं का सांसों में संचार जीवन सफल होगा

काम क्रोध लोभ लालच मोह माया तज मन से
अंतर अलख जोत जग मग जाये जीवन सफल होगा

राम नाम भज मानव जन्म मिला बड़ा अनमोल रतन
सोना नहीं नींद मैं खोना नहीं जीवन सफल होगा

पांच तत्त्व का पुतला तेरा जल थल नभ अगन
प्राण अपान समान उदान व्यान वायू जीवन सफल होगा

सांसों का कोई भरोसा नहीं कब चली जाये ‘कागा’
राम का नाम भज मेरे प्यारे जीवन सफल होगा

डर

सिर डाला ओखल में मूसल का क्या डर
कूद पडे सागर में डूबने का क्या डर

मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है
कूद पड़े आग में जलने का क्या डर

अग्नि परीक्षा हो चुकी हर बार जिंदगी की
बाल बाल बचे है मरने का क्या डर

डूबते को तिनके का सहारा फ़िरश्ता बन आता
मंझधार में बड़ी मुश्किल मौत का क्या डर

चक्की के दो पाटों में कील एक सहारा
सांसें अटकी सबकी साथ पीसने का क्या डर

जंगे मैदान में कूद पड़े लड़ने को ‘कागा’
तलवारों का तकरार सिर कटने का क्या डर

जीवन

जीना है ज्वाला बन जियो धूंआ बनकर नहीं
जीना है उजाला बन जियो धूंआ बनकर नहीं

इंसान बनकर आये हो जहान में इंसान बनो
जीना है मतवाला बन जियो धूंआ बनकर नहीं

दिल मिला दिमाग़ मिला अ़क़्ल शक्ल शानो शोक्त
जीना है रखवाला बन जियो धूंआ बनकर नहीं

जानवर जेसा बन जीने से मरना बेहत्तर होगा
जीना है ग्वाला बन जियो धूंआ बनकर नहीं

कायर कमज़ोर इरादा रखने वालों का कोई नहीं
जीना है आला बन जियो धूंआ बनकर नहीं

बिखरे मोती किसी काम कै नहीं होते ‘कागा’
जीना हैं माला बन जियो धूंआ बनकर नहीं

इरादे

संजीदा लोगों से उलफ़्त मेरी
रंजीदा लोगों से नफ़रत मेरी

संजीदा हमेशा ह़ोस़ला अफ़ज़ाई करते
कमज़ोर इरादों को बुलंद करते

आसमान छूने पर दाद देते
अरमान उड़ान पर दाद देते

रंजीदा लोगों का इरादा बुज़दिल
रोक टोक करते बड़े बुज़दिल

क़दम दर क़दम करते कोताह़
आगे बढ़ने को करते गुमराह

ह़ास़द बन करते बदनाम तबाह
कुचल देते आरज़ू तमना तबाह

बदनाम

हम बेवजह बदनाम हो गये
हम बेवजह परेशान हो गये

मुफ़्त में दिल दे दिया
दिल देकर बदनाम हो गये

दिल के बदले बदनामी मिली
दिल खोकर बंदनाम हो गये

दिल दिया गुनाह किया कैसा
दिल लुटाकर बदनाम हो गये

दिल में दिल घुस गया
कैसे निकालें बदनाम हो गये

तेरी नज़र का कैसा जादू
दिल चुराया बदनाम हो गये

तेरी पायल ने घायल किया
बजने पर बदनाम हो गये

तेरी चूड़ियां तेरे कंगन ‘कागा’
खनखन पर बदनाम हो गये

चले गये

वो आंखें मिला कर चले गये
वो हाथ हिला कर चले गये

मुद्दतों बाद मिले बड़ी शिद्दित से
वो दिल जला कर चले गये

अनजान बनकर आये जान पेहचान कर
वो दिल मिला कर चले गये

बेक़ुस़र हम कोई ख़त़ा नहीं हमारी
वो दिल बहला कर चले गये

उनका आना ग़ज़ब हो गया जानम
वो दिल दहला कर चले गये

दर्द दिल का बेदर्द क्या जाने
वो तिल-मिला कर चले गये

दिल की दास्तान किसे सुनाऊ़ ‘कागा’
वो दिल दुबला कर चले गये

अपने पराये

अपनों की मजलिस में ख़ुश होकर बेठे
ग़ैरों की मह़फ़िल में नाख़ुश होकर बेठे

वक़्त का तक़ाज़ा ज़मीर बेचा नहीं गया
अपनों की गोद में ख़ुश होकर बेठे

अपनों के प्यार में पागल हो गये
अपनों की ड्योढ़ी पर ख़ुश होकर बेठे

शराब कबाब शबाब का कोई शोक़ नहीं
अपनों के आंगन में ख़ुश होकर बेठे

ग़ैरों की पैशानी पर सलवटें देखी ख़ूब
अपनों की आग़ोश में ख़ुश होकर बेठे

कोने में किनारे पर ज़रा जगह मिली
अपनों की दिल में ख़ुश होकर बेठे

ग़ैरों का त़ाअम लज़ीज़ जूठन ज़रूर मिला
अपनों के दस्तरखान में ख़ुश होकर बेठे

प्यास बुझाई पानी से ओक से ‘कागा’
अपनों की आंखों में ख़ुश होकर बेठे

मां तेरा आंचल

मां तेरा आंचल बहुत याद आता है
मां तेरा दुलार बहुत याद आता है

मां तेरी गोद गीली कर देता जब
मां तेरा प्यार बहुत याद आता है

जब रोता आंसू पौंछती अपने आंचल से
मां तेरा उपकार बहुत याद आता है

आंचल से चेहरा नाक स़ाफ़ कर देती
मां तेरा दीदार बहुत याद आता है

मेला कुचेला नहीं हुआ तेरा आंचल कभी
हरदम स़ाफ़ तैयार बहुत याद आता है

छुपा लेती आंचल में बुरी नज़र से
लोरी भरी ललकार बहुत याद आता है

दूध पिला पीठ पर थपकी मारती मेरे
करता मैं डकार बहुत याद आता है

मम्मी पापा की भाषा सिखाती बोल तोतला
सुखी तेरा संसार बहुत याद आता है

उंगली पकड़ चलना सिखाती गिरता उठता ‘कागा’
भरता जब हुंकार बहुत याद आता है

मां तेरी महिमा निराली

मां तेरी महिमा निराली मतवाली
मां तेरी ममता निराली मतवाली

मां तेरी मूरत मन मोहनी
मां तेरी स़ूरत तन सोहनी

मां तेरी दया दृष्टि न्यारी
मां प्रेम भाव सृष्टि प्यारी

मां तेरा आशीर्वाद बना रहे
मां तेरा संवाद बना रहे

मां तेरा रंग रूप पावन
मां तेरा संग स्वरूप भावन

तेरे बिना जग में अंधेरा
तेरे नाम होता सु़बह़ सवेरा

तुम ममता क्षमता की सागर
तुम माता रानी गरिमा गागर

‘कागा’ पर कृपा बनाये रखना
दया की दृष्टि बनाये रखना

जन हित्त

कर बंदा जन हित्त के काम
जग में होगा तेरा बड़ा नाम

शिक्षा चिकित्सा स्वास्थय पेय-जल ऊर्जा
खेत खलियान जन हित्त के काम

सड़क रोज़गार स्कूल हर ढाणी पानी
मिले मान जन हित्त के काम

किसान की आय दुगनी हो बेहतरीन
सुंदर स्वाभिमान जन हित्त के काम

मुफ़्त की रेवड़ियां बांटना बुरी बात
अच्छे अरमान जन हित्त के काम

सम्मान का व्यवहार समानता से हो
पर्याप्त सम्मान जन हित्त के काम

ऊंच नीच भेद भाव मिटना चाहिये
सब समान जन हित्त के काम

अमीरों की आड़ में ग़रीब ग़ायब
बेह़द बदगुमान जन हित्त के काम

भाई भतीजा वाद विवाद समाप्त ‘कागा’
ऊंचा इंसान जन हित्त के काम

बोल अनमोल

बेज़ुबान कोई नहीं सबके मुंह में ज़ुबान
बेजान कोई नहीं सबके जिस्म में जान

खोपड़ी खोपड़ी मत न्यारी प्रकृति की देन
कोई अंध मक्त नादान कोई चतुर सुजान

पुतला प्रभू ने बनाया अलग थलग चेहरे
मिलते जुलते नहीं सगे भाई नहीं समान

ज़ुबान हर मुंह में वाणी का भेद
कोई गूंगा कोई तोतला कोई अनाड़ी अनजान

कोई मुख मिश्री घोल बोले अमृत वचन
कोई ज़हर उगले चुभे जेसे तीर कमान

बत्तीस दातों के बीच बिना हड्डी ज़ुबान
एक शब्द बाण से तोड़े दांत ज़ुबान

”कागा’ कोयल दोनों काले कड़वा मीठा बोल
प्यार नफ़रत से मन वभोर करे ज़ुबान

मां मुझे विश्राम दें

मां मेरी मुझे विश्राम दें
मां मुझे परम धाम दें

मैं तेरे चरणों का दास
मां मुझे अनंत आराम दें

तेरे बिना मेरा कौन ओर
माता मेरी तेरा नाम दें

नव रात्रि में नाम जपें
तेरे आंचल में विश्राम दें

तेरे बिना नहीं कोई सहारा
बेसहारा हूं स़ुबह़ शाम दें

लड़खड़ा रहा हूं नीचे गिर
गिरते को मां थाम दें

‘कागा’ पर दया दृष्टि रखें
खाली हाथ को काम दें

ज़िंदा दिल

वो दिल कहां से लाऊं अम्बेडकर जेसा
वो विचार कहां से लाऊं अम्बेडकर जेसा

जिसमें क़ौम के लिये दर्द छलकता हो
जिसमें समाज के लिये ग़म झलकता हो

क़ौम की ह़िफ़ाज़त के लिये परिवार खोया
उम्रभर समाज के लिये ख़ून आंसू रोया

इरादा अटल रखा क़ानून आईन के ज़रिये
ह़क़ूक़ मह़फ़ूज़ किया क़ानून आईन के ज़रिये

दुनिया को दिखाया अपना जोश जल्वा जुनून
तड़पता रहता हमेशा ह़ोस़ला बुलंद खोलता ख़ून

अगर भीम नहीं होता वंचित होते वीरान
दर दर की ठोकरें खाते बस्तियां वीरान

शिक्षा का रूह़ फूंका बेजान जिस्म में
संगठन संघर्ष का नारा बेजान जिस्म में

बाज़मीर ज़िंदगी बसर करते दबे कुचले ‘कागा’
उदय सूरज अम्बेडकर का अंधेरा दोड़ भागा

उजड़ा चमन

अपने लहु से सींच चमन आबाद किया
उजड़ा गै़र आबाद था चमन आबाद किया

आप कहां ग़ायब थे नज़र नहीं आये
बड़ी मुश्किल से सूखा चमन आबाद किया

सारे दरख़्त सूख ठूंठ हो गये थे
घौंसले छोड चले परिंदे चमन आबाद किया

जब हरा भरा हुआ चमन दोबारा दिलकश
माली हुआ मोज मस्त चमन आबाद किया

लोट आई ख़शी बहार बाग़ में बुलबुल
तितली त़ौता मीना क़ोयल चमन आबाद किया

कलियां खिली फूल बनने की फ़िराक़ में
भंवरे चूमने लगे फूल चमन आबाद किया

उल्लु आमादा दोबारा बर्बाद करने को तैयार
निगरानी रख पैनी नज़र चमन आबाद किया

हुजूम उमड़ आया गुल देख गुलस्तान में
नियत नेक नहीं नादान चमन आबाद किया

बाग़बान के बग़लग़ीर बन गये कल आकर
त़ौत़ा चश्मी करते गुमराह चमन आबाद किया

कांटों के बीच खिले गुलाब गुल ‘कागा’
रंग बरंगी फूल ख़ुशबू चमन आबाद किया

समर्पण

मन तन समर्पित किया समाज के लिये
वचन जीवन अर्पित किया समाज के लिये

जब से होश सम्भाला जवानी का जोश
कूद पड़े सेवा में समाज के लिये

आव देखा नहीं ताव देखा लग्न लगी
दुख दर्द में ह़मदर्द समाज के लिये

तन मन धन चन जीवन किया क़ुर्बान
गर्मी सर्दी वर्षा में समाज के लिये

नोकरी में ईमानदारी से निभाया अपना कर्तव्य
राज समाज की सेवा समाज के लिये

समाज लिखा पढ़ा सजग नहीं था इतना
सदा चिंतित रहते थे समाज के लिये

छूआ छूत भेद भाव का बोल बाला
कोई नहीं रखवाला जिये समाज के लिये

शिक्षा से कोसों दूर चारों ओर अंधेरा
रोशनी की किरण जगाई समाज के लिये

अम्बेडकर की विचार धारा की अलख जगाई
शिक्षा का नारा दिया समाज के लिये

जागा समाज फिर सो गया दोबारा ‘कागा’
झंझोड़ कर जगाना होगा समाज के लिये

सहारा

जब तक हमारा एक दूसरे का सहारा
कोई नहीं मोह़ताज एक दूसरे का सहारा

सुख दुख होते चोली दामन का साथ
यदा कदा बनते एक दूसरे का सहारा

सच्च झूठ एक सिक्के के दो पेहलू
सच्च डूबता नहीं एक दूसरे का सहारा

झूठ झंझट में डाल देता बिना वजह़
दूरी बनाये रखना एक दूसरे का सहारा

ताली एक हाथ से नहीं बजती कभी
दोनों हाथों बजती एक दूसरे का सहारा

नर नारी दोनों एक दूसरे की ज़रूरत
बिना होते बेसहारा एक दूसरे का सहारा

डूबते को तिनके का सहारा होता ‘कागा’
मिल जाये किनारा एक दूसरे का सहारा

दोहरे चेहरे

राजनीति में दो चेहरे अस़ली नक़़ली
राजनीति के दो मोहरे अस़ली नक़ली

हमाम में सब नंगे अमीर ग़रीब
बाहर जनाब नवाब गेहरे अस़ली नक़ली

हाथी के दांत दो त़रह़ के
देखने खाने के दोहरे अस़ली नक़ली

हाथी अपनी चाल चलता मद मस्त
कुत्ते भौंक करते बहरे अस़ली नक़ली

ज़िंदा हाथी लाख मरा सवा लाख
ठाठ बाट कर ठहरे अस़ली नक़ली

ग़रीबों की कुटिया होती बेख़ोफ़ ‘कागा’
अमीरों के घर पेहरे अस़ली नक़ली

गवारा नहीं

बिना फेरे हम तेरे गवारा नहीं
हम इंसान जानवर नहीं गवारा नहीं

हम रस्म अदायगी करते पुरानी रवायत
इंसान है इंसानियत धर्म गवारा नहीं

धर्म मज़हब से वास्त़ा पक्का हमारा
उस़ूलों पर रखते भरोसा गवारा नहीं

हम रूठ जाते बच्चों की त़रह़
लम्बा रूठना रुसवाई हमें गवारा नही

दिल में दग़ा नहीं ठहरे सगे
दर्द होता गहरा बेदर्दी गवारा नहीं

दिल हमार कोमल निर्मल मौम जेसा
पिघल जाते जल्दी सख़्ती गवारा नहीं

पत्थर दिल नहीं क़त़्तई हमारा ‘कागा’
जुदाई ज़्यादा वक़्त तक गवारा नहीं

फ़ित़रत

रूठे को मनाना इंसान की फ़ित़रत है
टूटे को बनाना इंसान की फ़ित़रत है

इश्क जंग सियासत में सब कुछ जायज़
टकराव बिखराव ठहराव इंसान की फ़ित़रत है

दूरियां सिमट जाती दो दिलों के दरम्यान
दरार को पाटना इंसान की फ़ित़रत है

बग़लग़ीर बेईमान बनते दर्द होता दिल मैं
सबक़ सिखाना चाहिए इंसान की फ़ित़रत है

भेड़िया ओढ खाल भेड़ों के झुंड में
खाता भेड़ें क्या इंसान की फ़ित़रत है

लुच्चे लफ़ंगे करते बदनाम नेक बंदों को
नज़र स़ानी करना इंसान की फ़ित़रत है

मुखौटा ओढ मुंह पर बोल मीठे अल्फ़ाज़
करते गुमराह क्या इंसान की फ़ित़रत है

शमशीर बंद म्यान में भूली नहीं ओक़ात
वक़्त पर वार इंसान की फ़ित़रत है

रूठ जाना मान जाना मिज़ाज में ‘कागा’
मजबूरी नहीं मज़बूती इंसान की फ़ित़रत है

मोर

मोर सुंदर पक्षी पैर काले
मोर सिर मुक्ट पैर काले

जब आती मौसम बारिश की
फंख फेला नाचता पैर काले

जब गर्जते बादल गर्मजोशी से
झूम झूम नाचता पैर काले

मोर मधुर वाणी स्वर सुहाना
बादल बरबस बरसते पैर काले.

मोज मसती में मगन मोर
संग नाचे मोरनी पैर काले

नाच काले पैर देख रोता
टपक पड़ते आंसू पैर काले

पी लेते मोरनी गिरते नहीं
ज़मीन पर ज़रा पैर काले

सुंदर होकर गटक लेता सांप
भांप ख़त़रा भारी पैर काले

सेवक का ह़ाल मोर समान
सेवा समाज की पैर काले

कोयल की कूक मोर जेसी
स़ूरत मूरत काली पैर काले

अंदर बाहर रुप काला ‘कागा’
कड़वा बोल क़ौल पैर काले

ऊंट राजनीति

देखना होगा ऊंट किस करवट बेठता है
देख़ना होगा ऊंट किस ओर बेठता है

लम्बी गर्दन मोटा तगड़ा भारी भरकम बदन
लचकदार टांगे मोड़ किस करवट बेठता है

ऊंट रेगिस्तान का जहाज़ कहते आम लोग
भूखा प्यासा रहता किस करवट बेठता है

बिना खाये पिये जल ख़ोराक हफ़्ते भर
परवाह नहीं करता किस करवट बेठता है

गुड़ खल दोनों बराबर उड़ेलो रोता रड़ता
स्वाद नहीं जानता किस करवट बेठता है

बिना नाक नकेल मुहारी के बिदक जाता
पटक देता नीचे किस करवट बेठता है

खड़ा होना बेठना अ़ज़ाब ग़ज़ब त़ौर त़रीक़ा
गिरने का ख़त़रा किस करवट बेठता है

आज कल की राजनीति ऊंट जेसी ‘कागा’
सोच करना सवारी किस करवट बेठता है

भीतर घात

चरित्र पवित्र नहीं नेता बन गया
दामन पवित्र नहीं नेता बन गया

चरित्र पवित्र बनाये एसा इत़र नहीं
चंगा भीतर नहीं नेता बन गया

दामन पर दाग लगे बेह़द बदनुमा
पवित्र भीतर नहीं नेता बन गया

चित्त चोर मन मेला लोभी लालची
स़ाफ़ भीतर नहीं नेता बन गया

लूट खसोट हेरा फेरी यारी करता
हय्या भीतर नहीं नेता बन गया

सौ चूहा खाकर बिल्ली ह़ज चली
दया भीतर नहीं नेता बन गया

समाज सेवा के नाम करता ठगी
सच्चाई भीतर नहीं नेता बन गया

कभी मठ मंदिर में शीस झुकाता
भय भीतर नहीं नेता बन गया

कभी रोज़ा की रस्म अदा करता
सजदा भीतर नहीं नेता बन गया

अपनों से अदावत ग़ैरों से दोस्ती
प्रेम भीतर नहीं नेता बन गया

कोयले की दलाली हाथ काले ‘कागा’
भलाई भीतर नहीं नेता बन गया

नया वर्ष

नव वर्ष नया हर्ष नई उमंग
नया रंग नया रूप नई तरंग

नव वर्ष बधाई नई रोशनी हो
नया सूरज नया चांद चांदनी हो

नया जोश जल्वा जुनून नया ख़ून
नया त़ौर त़रीक़ा नया सबक़ मज़मून

गई सरकार नये चेहरे नई चाल
नया दौर दबदबा वत़न हो ख़ुशह़ाल

अमनो अमान चैन से ज़िंदगी बसर
भाई-चारा क़ायम नहीं कोर कसर

सनातन धर्म संस्कृति को आंच नहीं
ताना बाना टूटे नहीं आंच नहीं

‘कागा’ प्रकृति नियम का पालन हो
कोई छेड़ छाड़ नहीं पालन हो

भिखारी

ख़ुदा की बारगाह में सब भिखारी
चाहे अमीर ग़रीब है सब भिखारी

अमीर मांगते ख़ुद वास्ते ख़ुदा से
ग़रीब मांगते ख़ुदा के वास्ते भिखारी

फ़र्क़ फ़ास़ला बहुत बड़ा करो फ़ेस़ला
अमीर ग़रीब दोंनों ख़ुदा घर भिखारी

अमीर भरता मांग तिजोड़ी दोलत से
ग़रीब भरता मांग भूखा पेट भिखारी

अमीर रहता अपनी शानो शोक़्त से
ग़रीब फटे ह़ाल बदह़ाल बदतर भिखारी

अमीर मांगता कटोरा छिपाये बग़ल में
ग़रीब मांगता भीख कटोरा फेलाये भिखारी

पीर फ़क़ीर शाह गदा मुलां मोल्वी
संत महात्मा पंडित पूजारी सब भिखारी

भगवान ने भेजा इंसान बनाकर ‘कागा’
तक्सीम हो गये सिकंदर क़लंदर भिखारी

रुकावटें

रुकावटें तो आयेगी साथी रुकना नहीं
गिरावटें तो आयेगी साथी झुकना नहीं

बढ़ते चलते जाना मंज़िल की ओर
थकावटें तो आयेगी साथी थकना नही

रोक टोक करेंगे रहज़न रहबर बनकर
मिलावटें तो आयेगी साथी चूकना नहीं

गठरी क़ाबू रखना बग़ल में दबाये
सजावटें तो आयेगी साथी बहकना नहीं

ज़मीर को ज़िंदा रखना बेशक बेधड़क
बनावटें तो आयेगी साथी बिकना नहीं

गाली गलोज़ गिला शिक्वा करेंगे ‘कागा’
घबराहटें तो आयेगी साथी बकना नहीं

नारी शक्ति को नमन

नारी शक्ति भक्ति बिना नारी नर अधूरा
नारी युक्ति मुक्ति बिना नारी नर अधूरा

नारी माता बहिन पत्नि पुत्री भूआ भाभी
नारी पति व्रत बिना नारी नर अधूरा

नारी अर्धांगिनी भगनी संगनी मंगनी अग्नि जननी
नारी गति देती बिना नारी नर अधूरा

ब्रह्मा विष्णु महेश नारी संग रहते सदेव
राम सति सीता बिना नारी नर अधूरा

नारी छवि छाया परछाई पति संग पावन
गगन धरती युगल बिना नारी नर अधूरा

नारी चित्त चंचल नर मन निर्मल कोमल
मस्तक मति प्रवृति बिना नारी नर अधूरा

नारी नर की खान निपजे शूर वीर
दाता उत्पति होती बिना नारी नर अधूरा

राजा रानी दासी अमीर ग़रीब पीर फ़क़ीर
योगी यति जन्मे बिना नारी नर अधूरा

नारी कोख से पैदा हुआ कवि ‘कागा’
नारी शक्ति नमन बिना नारी नर अधूरा

ओक़ात

इंसान की ओक़ात कुछ बस में नहीं
इंसान के जज़्बात कुछ बस में नहीं

अपने जन्म मरने का मुहूर्त नहीं होता
जन्म पर रोता कुछ बस में नहीं

नहाते कोई ओर दूध का पेहले प्रबंध
मां पिलाती गाढ़ा कुछ बस में नहीं

उठने बेठने में लाचार लचीला तन बदन
क़ोमल निर्मल काया कुछ बस में नहीं

मल मूत्र विसर्जन स्नान माता के भरोसे
लगती भूख रोता कुछ बस में नहीं

थोड़ी शक्ति आती शरीर में होती हलचल
घुटनों बल रेंगता कुछ बस में नहीं

जब आते दांत मुंह में बारी बारी
मिलता तरल पदार्थ कुछ बस में नहीं

पालने में पलता गोद में करता गुनगुन
गिरता उठता लड़खड़ा कुछ बस में नहीं

उंगली सहारे खड़ा होकर चलता होले होले
सहारा लेता पराया कुछ बस में नहीं

धीरे धीमे आत्म निर्भर बनता घर में
पिता की परिवर्श कुछ बस में नहीं

जवानी आते ख़्याल आता ख्वाहिश घेर लेती
मर्ज़ी का मोह़ताज कुछ बस में नहीं

दुनिया के जाल जंजाल मे फंस कर
बन जाता पराधीन कुछ बस में नहीं

अंत में आती मोत प्राण उड़ता ‘कागा’
नहाते रोते ओर कुछ बस में नहीं

ज़िंदगी

केसा राज़ ज़िंदगी मेरी मुझे मालूम नहीं
कितना दिन जीना जहान में मालूम नहीं

सांसें लाया गिन कर गिनती भूल गया
कितनी गुज़री कितनी बाक़ी बची मालूम नहीं

मैं कौन नाम ठिकाना नहीं याद मुझे
कहां से आया कहां जाना मालूम नहीं

माता पिता गुरू जन ने दिया ज्ञान
रट कर रखा ओर कुछ मालूम नहीं

देखा देखी करता देख दुनिया का रंग
जलना गाड़ना क्या ठीक कोई मालूम नहीं

परिजन कौन छीन गया जिसकी पीड़ा होती
कब मिलेंगे दोबारा कहां मुझे मालूम नहीं

कुछ लोग जिक़्र करता नर्क स्वर्ग का
कोई मिल नहीं आया वापिस मालूम नहीं

उधार की सांसें मुफ़्त का शरीर मेरा
मन चित्त वासना का मेल मालूम नहीं

भय भूख प्यास लालच मोह माया जाल
क्यों संग रहते मिल कर मालूम नहीं

कल्पना करते मनगढ़ंत बेतुकी बातें सारे ‘कागा’
कितना सच्च झूठ झांसा कोई मालूम नहीं

बाबा भीमराव अंबेडकर

चौदह अप्रैल डा,भीमराव अंबेडकर की जयंती है
भारतीय संविधान निर्मगता महान विभूति की जयंती है

दलित पीड़ित वर्ग के मसीहा की जयंती है
किसान कामगार मज़दूर मुक्ति दाता की जयंती है

वंचित शोषित नारी कल्याण कर्ता की जयंती हैं
पिछड़ों को हक़ दिलाने वाले की जयंती है

मानवता के मानव महा मना की जयंती है
समस्त को समानता दिलाने वाले की जयंती है

शिक्षा स्वास्थ्य मताधिकार दिलाने वाले की जयंती है
‘कागा’ जय भीम जय संविधान की जयंती है

बंदगी

बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की
साधना कर बंदा स़ाह़ब की

ज़िंदगी दो दिन की बंदा
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

गंदगी निकाल मोह माया की
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

मांदगी मोज मस्ती हस्ती की
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

दरिंदगी दबाव दिल में बेह़द
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

संजीदगी रख तन मन में
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

शर्मंदगी महसूस नहीं होती कभी
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

‘कागा’ काया जब तक सांस
बंदगी कर बंदा स़ाह़ब की

बेरुख़ी

तेरी बेरुख़ी ने तुमको बर्बाद किया
तेरी शोख़ी ने तुमको बर्बाद किया

किसी का नहीं क़ुस़ूर तुम मग़रूर
तेरी ख़ुमारी ने तुमको बर्बाद किया

धन दोलत शहोरत का नशा था
तेरी यारी ने तुमको बर्बाद किया

चंडाल चोकड़ी के चक्कर में मस्त
तेरी ग़द्दारी ने तुमको बर्बाद किया

ख़ुलूस़ ख़बीस़ सलूक में सलीक़ा नहीं
तेरी तीमादारी ने तुमको बर्बाद किया

घमंड की घोड़ी पर चढ़े तुम
तेरी सवारी ने तुमको बर्बाद किया

नीचे उतरने पर महसूस किया ‘कागा’
तेरी होशियारी ने तुमको बर्बाद किया

हार जीत

जीत वोट से होती है चोट से नहीं
सत्ता वोट से मिलती है नोट से नहीं

प्रजा तंत्र में मत का महत्व होता हैं
जीत मत दान से होती चोट से नहीं

वोट गोपनिय होता है अमीर ग़रीब का बराबर
रानी दासी सब समान जीत चोट से नहीं

धौंस धमकी से वोट नहीं मिलते डर कर
वोट विकास के नाम मिलते चोट से नहीं

दास बन जाओ जनता जनार्दन माई बाप है
हाथा जोड़ी करो झुक सत्ता चोट से नहीं

हार जीत एक सिक्के के पेहलू होते ‘कागा’
ग़ुलाम बन जाओ तैयार जीत चोट से नहीं

लेहर

लेहर ज़रूर आयेगी समुंद्र किनारे बेठ देख
ठहर ज़रुर जायेगी ज़िंदगी किनारे बेठ देख

कुछ पाना है ग़ौत़ा ख़ोर बनना पड़ेगा
मोती ज़रुर मिलेगा डुबकी मार कर देख

समुंद्र बेशुक़ीमती हीरा जवाहरात का ख़ज़ाना है
ह़ोस़ला बुलंद कर ग़ौत़ा मार कर देख

समुंद्र में बेशुमार ख़ोफ़नाक घड़ियाल जानवर है
किनारा पार कश्ती में सवार होकर देख

हवा का रुख देखने से नहीं फ़ायदा
लेहरें आती जाती रहेगी गिन कर देख

किनारे पर मरी मछलियां मिलेगी ज़रूर ‘कागा’
ओढ़ सिर पर कफ़न मंझधार जाकर देख

ख़्वाब

नींद में नज़र आते बेह़िस़ब ख़्वाब
जागने पर नज़र आते ख़्याल जनाब

इंसान को क़ुदरत ने अ़त़ा फ़रमये
सोच विचार वास्ते दिल ओर दिमाग़

सोते गहरी नींद का ख़ुमार होता
जागते होता ग़ुरुर का ग़ज़ब अ़ज़ाब

जवानी का जोश जल्वा ज़ाहिर होता
शेतान सिर सवार चढ़ शुरु शबाब

मोज मस्ती का कोई अंदाज़ा नहीं
बेशुमार प्यार करता नहीं कोई जवाब

उम्रदराज होने पर होती ख़ुशी ग़म
ग़ौर करता सरसरी निगाह से नवाब

अपने तजुर्बात का निकाल निचोड़ ‘कागा
तक़सीम करता निहायत नुमायां गोहर नायाब

कविराज

कवि किसी का ग़ुलाम नहीं आज़ाद होता है
कवि किसी का मोह़ताज नहीं आज़ाद होता है

कवि की कल्पना बिना पंख उड़ जाती आसमान
चांद सितारों से करती मह़फ़ल आज़ाद होता है

त़ोत़े की त़रह़ नहीं बंद होता पिंजरे में
मुंह मिंया मिठू बनता नहीं आज़ाद होता है

कवि की वाणी मुर्दे में जान फूंक देती
बोल के बाण चला देता आज़ाद होता है

कवि के कथन में जादू का अस़र बेबाक
सत्य होते मुख के वचन आज़ाद होता है

राग द्वेष से कोसों दूर बिना लाग लपेट
राजनीति का रंग रूप नहीं आज़ाद होता है

सरस्वती बसती घट भीतर जैसे दूध में घी
मंथन से निकले निज मक्खन आज़ाद होता है

भारत को आज़ाद कराने में कवियों का कमाल
जोश भरा जवानों में भरपूर आज़ाद होता है

इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा बुलंद किया शायरों ने
चिंंगारी को हवा फूंक दी आज़ाद होता है

सिर झुका करता मैं सलाम हाथ जोड़ ‘कागा’
कवि की भविष्य वाणी सच्ची आज़ाद होता है

बेबस बंदे

बिना पैंदे के बर्तनों जैसे हो गये
बिना वजूद के बंदों जैसे हो गये

हर पल लुढ़क जाते इधर उधर हम
बिना सोचे चलते बच्चों जैसे हो गये

हम है ज़म्मेवार फ़र्ज़ अदा करना होगा
भूल बेठे हम भुलकड़ जैसे हो गये

मन्स़ूबों पर पानी फेर दिया ग़ल्त़ी कर
अपनों से अ़दावत गै़रों जैसे हो गये

मुद्दे बदल गुमराह किया हर किसी को
आई अपनी बारी जाहिलों जैसे हो गये

भय बता भूत प्रेत का डराया धमकाया
रस्सी का सांप मदारी जैसे हो गये

जन्नत की ह़सीन ह़ूरों का लालच दिया
स्वर्ग की परियां ठगों जैसे हो गये

मजबूरी से खिलवाड़ जमकर लूट खसोट की
टोना टोटका बहाना भौपों जैसे हो गये

अंधविश्वास की आड़ में बहला फुसला ‘कागा’
झाड़ फूंक कर ओझों जैसे हो गये

चुनाव चर्चा

गांव शहर में चलती चुनाव चर्चा
गली कूचे में चलती चुनाव चर्चा

खीमे कुनबे में चलती चुनाव चर्चा
धर्म मज़हब में चलती चुनाव चर्चा

चोखट चोपाल पर चलती चुनाव चर्चा
चोसर चौराहा पर चलती चुनाव चर्चा

जाति बिरादरी में चलती चुनाव चर्चा
रिश्ते नाते में चलती चुनाव चर्चा

पनघट तालाब पर चलती चुनाव चर्चा
खेत खलियान पर चलती चुनाव चर्चा

चाय थड़ी पर चलती चुनाव चर्चा
बज़ार हाट पर चलती चुनाव चर्चा

ख़ुशी ग़मी पर चलती चुनाव चर्चा
सगाई शादी पर चलती चुनाव चर्चा

बाराती घराती में चलती चुनाव चर्चा
दुल्हा दुल्हन में चलती चुनाव चर्चा

मंदिर मस्जिद में चलती चुनाव चर्चा
गुरद्वारा चर्च में चलती चुनाव चर्चा

नेता कार्यकर्ता में चलती चुनाव चर्चा
कवि संवाददाता में चलती चुनाव चर्चा

कागा’ हवा में तीर नहीं चलाओ
नेक की फ़तह़ चलती चुनाव चर्चा

नव वर्ष

2081चेत्र नव वर्ष बड़े धाम धूम से मनायें
नया वर्ष हर्ष उत्कर्ष बड़े धाम धूम से मनायें

चेत्र शुक्ल एकम आई संग ढेरों ख़ुशियां लाई अपार
नई उमंग तरंग रंग बरंगी फूल खिले छाई बहार

थाली बजायें ताली बजायें गायें गीत नाचें नाच साथ
बनायें क़त़ार मधुर मीठी गुफ़्तार मिलायें हाथ में हाथ

सनातन धर्म का शंख नाद करें मंदरों में पूजा
आरती का थाल सजायें बजायें घंटा करें पाठ पूजा

पुरानी परम्परा की प्रथा को जीवित रखें दिल से
आंच नहीं आने दें कोई स्वागत करें दिल से

कागा’ आराधना स्तुति करें ईश्वर से कर बद्ध हम
सुख समृद्धि शांति सम्पति दे विनती कर बद्ध हम

ख़ून के रिश्ते

ख़ून के रिश्ते ख़त्म हो रहे है
रक्त के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

बाप की जगह ससुर का रोब रुतबा
कुटुम्ब के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

मां की जगह सास का दख़ल दबाव
कोख के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

सगे भाई से बोल चाल बंद रहती
भाई के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

सालों से होती अपने मन की बातें
चचेरों के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

साली की सुनी जाती मांग हर पल
बहिन के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

भूआ मामा के बहिन भाई सब ग़ैर
परिवार के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

जोरू के ग़ुलाम हो गये जवान ‘कागा’
क़ौम के रिश्ते ख़त्म हो रहे है

विश्वास की नींव

विश्वास की नींव पर आत्म-विश्वास की इमारत
श्वास की नींव पर आत्म-विश्वास की इमारत

आत्म-मंथन से होते सारे सफ़ल काम सम्पन्न
विश्वास की नींव पर कर्म कांड होते सम्पन्न

जिसमें श्वास नहीं उसको कहते बेजान बेबस बंदा
उसको जलाया जाता गाड़ा जाता मरा हुआ बंदा

विश्वास से पत्थर मूर्ति हो जाती साक्षी ईश्वर
प्राण प्रतिष्ठा मंत्रोचार से हो जाता साक्षी ईश्वर

चमत्कार को नमस्कार करते दंडवत प्रणाम कर सदेव
मनो-कामना होती पूर्ण आशा तिरसना भावना सदेव

जमघट लगा रहता देवालयों में दिव्य दर्शन वास्ते
प्रतीक्षा करनी पड़ती अपनी बारी की दर्शन वास्ते

‘कागा’ आस्था के स्थलों पर लगते रहते मेले
पूजारी प्रसाद चढ़ाते भोग लगाते मिल गुरू चेले

ख़त़रा

अब स़ाफ़ बताओ कौन ख़त़रे में है
अब सच्च बताओ कौन ख़त़रे में है

कोई कहता देश बाहरी ख़त़रे में है
कोई कहता देश अंदरूनी ख़त़रे में है

खुल कर बताओ कौन ख़त़रे में है
कोई कहता हिंदु लोग ख़त़रे में है

कोई कहता मुस्लिम क़ौम ख़त़रे में है
बोल कर बताओ कौन ख़त़रे में है

कोई कहता भारतीय संविधान ख़त़रे में है
कोई कहता प्रदत आरक्षण ख़त़रे में है

चुप क्यों बताओ कौन ख़त़रे में है
कोई कहता धर्म मज़हब ख़त़रे में है

कोई कहता जात पात ख़त़रे में है
ज़ुबान खोल बताओ कौन ख़त़रे में है

कोई कहता गाय माता ख़त़रे में है
कोई कहता माता पिता ख़त़रे में है

बुढे बोल बताओ कौन ख़त़रे में है
प्रकृति से छेड़छाड़ जंगल ख़त़रे में है

कोई कहता पशु पक्षी ख़त़रे में है
आगे आओ बताओ कौन ख़त़रे में है

‘कागा’ कहता प्रदूषण से ख़त़रे में है
पर्यावरण बचाओ मिल मानव ख़त़रे में ह़ै

जीना-मरना

जीना चाहता हूं जीने नहीं देते लोग
मरना चाहता हूं मरने नहीं देते लोग

चलना चाहा रहा हूं मंज़िल की ओर
रास्ता रोक देते बढ़ने नहीं देते लोग

मेरी मुस्कान पर ख़फ़ा हो जाते है
रोना चाहता हूं रोने नहीं देते लोग

आरज़ू है जुनून जज़्बा जल्वा ज़ाहिर करें
पाबंदी लगा देते बोलने नहीं देते लोग

उक़बी रूह हमारी बुलंद नापना है फ़लक
पंख कुतर लेते उड़ने नहीं देते लोग

दिल चाहता है दोड़ कर दिखाऊं क़ाबलियत
टांग खींचने लगते दोड़ने नहीं देते लोग

ख्वाहिश है जीने से मरना बेहतर ‘कागा’
जनाज़ा उठाते जल्दी ठहरने नहीं देते लोग

मेरा समाज

अब अपने ह़ाल भांप नहीं कोई मोल
इधर शेर उधर सांप नहीं कोई मोल

सामने गेहरा गढा पीछे ऊबड़ खाबड़ खाई
आगे बढ़ना पीछे हटना नहीं कोई मोल

जीना दुश्वार हो गया बड़ा मुश्किल मुह़ाल
मौत हो गया सत्ता नहीं कोई मोल

नाव अटकी मंझधार में किनारा उस पार
मांझी ने मना की नहीं कोई मोल

ख़रबूज़े जेसी ह़ालत है छुरी से दोस्ती
ऊपर नीचे कोई गिरे नहीं कोई मोल

बकरे की मां कब तक ख़ेर मनाये
आख़िर गर्दन कटनी है नहीं कोई मोल

कौन ख़तरे में कोई तो बजाये ‘कागा’
अपनी खाल बचाते देखे नहीं कोई मोल

अस़ली नक़ली

अब पता चलेगा कौन नक़ली कौन अस़ली
अब स़ाफ़ होगा कौन बेनस्ली कौन अस़ली

प्राण जाये वचन नहीं जाये रघु रीत
कौन सच्चा कौन झूठा किसकी हार जीत

कौन पार्टी का वफ़ादार कौन ईमानदार जानदार
कौन करता जाति वाद कौन संवाद शानदार

किससे बेर नहीं किसकी ख़ेर नहीं बोलो
लगा मुंह पर ताला अब तो खोलो

जाति धर्म भाई भतीजा वाद विवाद छोड़ो
सच्चाई अच्छाई से नेक निष्पक्ष नाता जोड़ो

कौन अंध भक्त ठग भक्त कौन सच्चा
भीतर घात नहीं करना साथ देना सच्चा

अब मूंछ पर देना ताव आये चुनाव
कुछ करो मरो के ह़ालात बने चुनाव

मौक़ा मिला है धोखा नहीं देना ‘कागा’
विवेक से रहना टूटे नहीं प्रेम धागा

दल-बदल

भगदड़ मची है दल-बदल करने की
होड़ मची है दिल-बदल करने की

त़ोता मीना आम की एक डाली पर
फुदक कर जा बेठते दूसरी डाली पर

बंदर लंगूर खाते अंगूर उछल कूद कर
बैलें बिगाड़ देते हरदम उछल कूद कर

तिनके उड़ जाते हवा के झौंके से
बरगद नहीं उखड़ता हवा के झौंके से

चमगादड़ चिपक जाता ऊंधे मुंह छत्त से
बदलता नहीं जगह प्यार होता छत्त सेव

इंसान चलता हवा के रूख़ के साथ
‘कागा’ मानव का दामन चोली का साथ

बदनियत

रास्ता रोका कांटे बिछा कर हमारा
रास्ता रोका रोड़े बिखेर कर हमारा

हम रुक अपने घर बेठ गये
वो चले कांटा चुभा बेठ गये

जैसी करनी वैसी भरनी किसका दोष
फफोले पड़े पैरों में किसको दोष

षड़यंत्र रचा हमें रोकने के लिये
गले पड़ गई साज़िश अपने लिये

गढ़ा खोदा गेहरा हमें गाड़ने वास्ते
ऊंधे मुंह गिरे चले उस रास्ते

जैसी नीयत वैसी मुराद प्रकृति नियम
बुरी नज़र मुंह काला प्रकृति नियम

‘कागा’ हमने किसी का बिगाड़ा नहीं
बाल बाल बच गये बिगाड़ा नहीं

बोल-बाला

राजनीति में बहुरुपियों का बोल-बाला
राजनीति में बिचोलियों का बोल-बाला

मनोरंजन के लिये बदलते अलग मुखोटे
राजनीति में चापलूसों का बोल-बाला

चहरे पर चेहरा लगा भेष बदलते
राजनीति में चाटुकारों का बोल-बाला

हूब्हू आवाज़ बदल गुमराह करते रहते
राजनीति में चमचागिरी का बोल-बाला

नक़ाब ओढ़ मुखड़ा ढांप लेते नादान
राजनीति में चुग़लों का बोल-बाला

गिरगिट रंग बदल देती मौसम पर
राजनीति में घूसख़ोरों का बोल-बाला

मद्दारी हाथ स़फ़ाई का करता कर्तब
राजनीति में झमूरों का बोल-बाला

इंसान बदल देता रंग बेमौसम ‘कागा’
राजनीति में पलटुओं का बोल-बाला

दो अप्रैल

दो अप्रैल बहुजन का एकता दिवस महान
दो अप्रैल बहुजन का नेतिक्ता दिवस महान

गुमनाम एलान पर सम्पूर्ण भारत बंद आह्वान
कूद पड़े दंगल अखाड़े में बहुजन जवान

एक नारा एक सोच जाग उठा स्वाभिमान
तह़स नह़स़ हो रहा देश का संविधान

दो अप्रैल दो हज़ार अठारह मचा घमासान
चोपाल चपे-चपे कूचे से उमड़े अरमान

सर फ़रोशी की तमना दिल में सीना तान
लाम बंद होकर किया बंद अंधाधुंद हिंदुस्तान

धरपकड़ कर धराशायी किया उग्र आंदोलन आसान
ख़ूनी संघर्ष हुआ वीर जवान हुए क़ुर्बान

ठोंस दिया जेलों में कुछ शहीद जवान
इंस़ाफ़ नहीं आज तक कुचले गये अरमान

आज़ाद भारत में नहीं देखा एसा त़ूफ़ान
भूमि रक्त रंजित आंधी से धुंधला आसमान

संविधान प्रदत्त अधिकारों की लड़ाई सुरक्षित सम्मान
इंसानियत का दर्जा मिले नहीं हो अपमान

बहुजन समाज का जाग उठा सोया स्वाभिमान
क्रांति का बिग़ुल बजा गूंजा गगन गान

गर्व से कहो हम हिंदू वत़न हिंदुस्तान
राष्ट़हित सर्वोपरि चमन आबाद कर बनायेंगे गुलस्तान

‘कागा’ भाईचारा जिंदाबाद क़ायम हो अमनो अमान
ज़िल्लत की ज़िदगी बर्दाश्त नहीं सब समान

रिश्ते नाते

चंद रिश्ते महसूस होते हैं
चंद रिश्ते मख़्सूस होते है

दुनिया मत़लब की होती यारो
आमने सामने मह़सूस होते है

ख़ून के रिश्ते बड़े जज़्बाती
बिना मेल मह़सूस होते है

चोट लगती एह़सास हो जाता
दिल को मह़सूस होते है

बिछुड़ते होती आंखों में नमी
ग़म से मह़सूस होते है

जब मुलाक़ात होती दोबारा ‘कागा’
ख़ुशी अश्क मह़सूस होते है

परीक्षा

अग्नि परीक्षा होनी है प्रतीक्षा कर
कड़ी समीक्षा होनी है प्रतीक्षा कर

कौन अस़ली कौन नकली कौन चापलूस
कौन झूठा कौन सच्चा प्रतीक्षा कर

कौन सोना कौन पीतल कौन ताम्बा
भट्टी भभक चुकी है प्रतीक्षा कर

कौन लोहा कौन फ़ोलाद कौन काच
हाथ में हथोड़ा थामा प्रतीक्षा कर

कौन हीरा कौन मौती कौन लाल
पारखी परख कर लेगा प्रतीक्षा कर

मटकी ठोकरें मार ख़रीद लेते ‘कागा’
आग में तपना है प्रतीक्षा कर

पर्यावरण बचायें

आओ हम सब मिलजुल पर्यावरण बचायें
वातावर्ण दूषित हो चुका पर्यावरण बचायें

ज़मीन जंगल जनता जनार्दन बेह़ाल है
सबका एक उदेश्य मिलजुल पर्यावरण बचायें

इंसान महान मगर दुश्मन आपस में
जाति धर्म झगड़ा मिलजुल पर्यावरण बचायें

भाई-चारा बिगड़ चुका मज़बूत था
अ़दावत बढ़ गई मिलजुल पर्यावरण बचायें

जंगल काटे जाते पुरनी धरोहर को
हरे भरे दरख़्त मिलजुल पर्यावरण बचायें

खदानों में खुदाई से खिलवाड़ होता
ज़हरीली हवा फेलती मिलजुल पर्यावरण बचायें

पशु पक्षी प्राणी जीव जंतु मानव
हर कोई प्रभावित मिलजुल पर्यावरण बचायें

नफ़रत की आग भभकी बुझती नहीं
शांति संदेश देकर मिलजुल पर्यावरण बचायें

काले कारनामे करतूत बदनाम करते ‘कागा’
माह़ोल गंदा है मिलजुल पर्यावरण बचायें

एक अप्रैल

एक अप्रैल झूठ झांसा राजनीति खेल
एक अप्रैल मूर्ख बनाते राजनीति खेल

अप्रैल फूल धूल झौंकते आंखों में
पानी बताते कीचड़ नहीं आंखों में

करते वादा खोखला राजनीति में नेता
फिर जाते बोखला राजनीति में नेता

पांच सालों पल्ट कर नहीं आते
चुनाव वक़्त ईद चांद बन आते

तलवे चाट गिड़गिड़ा कर मांगते माफ़ी
कान पकड़ गिर क़दमों मांगते माफ़ी

जनता भोली भाली मवाली करती माफ़
भीतर घात से करती पाटा स़ाफ़

कभी बख़्श भी देती दोबारा मौक़ा
कभी करती बेड़ा पार कभी धोखा

‘कागा’ कभी नहीं फंसना चुंगल में
सबक़ सिखाना ज़रूर चुनावी दंगल में

मिलावट

हम तो डूबेंगें स़नम आपको साथ लेकर
हमें तो मरेंगें सनम आपको साथ लेकर

हम सवार उस कश्ती में मलाह़ नहीं
हम है बेपरवाह मानेंगे कोई स़लाह़ नहीं

रहबर रहज़न हो गये चलते सफ़र में
सारा सामान लूट लिया चलते सफ़र में

दुनिया मत़लब की परवाह नहीं किसी की
धोखा दग़ा देती परवाह नहीं किसी की

ख़ुद प्रस्त ख़ुद के वास्ते हरदम तैयार
मत़लब हुआ मुकमल ग़ायब होने को तैयार

चंडाल चोकड़ी चोर चुग़ल चापलूस चमचों की
चोकीदार चुप-चाप चश्मदीद गवाही चमचों की

कूंए में भांग पड़ी पानी पीते एक
‘कागा’ कौन बने क़ाज़ी पानी पीते एक

ईमानदारी

ईमानदारी का ज़माना नहीं चापलूसों का दौर है
वफ़ादारी का ज़माना नहीं चाटुकारों का दौर है

सच्चाई सुनता नहीं कोई बुराई का बोल बाला
नेकी का ज़माना नहीं बदी का दौर है

मर्द मुजाहिद की परवाह नहीं हिजड़े है अगुवा
बेबाक का ज़माना नहीं चुग़ुलों का दौर है

पेपर लीक हो जाते कड़ी निगरानी में मह़फ़ूज़
मेहनती का ज़माना नहीं नक़ालों का दौर है

सेठ शाहूकार अपनी चाल मोज मस्ती में बेपरवाह
रोकड़ा का ज़माना नहीं दलालों का दौर है

इर्द गिर्द घूम करते चमचागिरी पसंद होते ‘कागा’
हक़ीक़त का ज़माना नहीं दादागिरी का दौर है

मर चुका हूं

मर चुका हूं याद नहीं करना
मिट चुका हूं याद नहीं करना

आत्मा जीवित है दिल ज़िंदा दिल
ज़िंदा लाश हूं याद नहीं करना

सांसे चल रही आत्मा जल रही
सहारा ख़ुद का याद नहीं करना

मरा हूं अपनों के लिये बेमौत
अर्थी नहीं उठाई याद नहीं करना

ग़ैरों से गिला नहीं अपने क़ातिल
तिल-तिल मरा याद नहीं करना

गिद्धों ने नोचा आंखों के सामने
कंकाल बचा बाक़ी याद नहीं करना

चित्ता पर जलाया नहीं लकड़ियों पर
क़बर खोदी नहींं याद नहीं करना

मरा था जिनके लिये करते ठठोली
कहते है अधमरा याद नहीं करना

अंदर आग थी जलता था हरदम
दुश्मन ईर्ष्या से याद नहीं करना

जीवन समर्पित किया समाज के दिये
ख़ुद वास्ते नहीं याद नहीं करना

मर चुका हूँ दोबारा केसे मरना
एक बार मरना याद नहीं करना

क़बर में दफ़न कफ़न ओढ़ ‘कागा’
कर देना कभी याद नहीं करना

राजनीति

राजनीति की रोटियां सेंकी जा रही है
शत़रंज की गोटियां फेंकी जा रही है

धर्म पंथ जाति संत महंत के नाम
आम ख़ास़ रोटियां सेंकी जा रही है

मुखौटा लगा किसी शख्सियत का चेहरे पर
गुमराह कर रोटियां सेंकी जा रही है

सर-सब़ज़ बाग़ दिखाते स़िह़रा में शानदार
झूठा झांसा रोटियां सेंकी जा रही है

लाली पाप का लालच देकर ललचाते लुभाते
रंग बिरंगी रोटियां सेंकी जा रही है

पैसा फेंको तमाशा देखो वक़्त की नज़ाक़्त
वक़्त बादशाह रोटियां सेंकी जा रही है

चलती का नाम ख़ड़ी को कहते खटारा
हमदर्द बन रोटियां सेंकी जा रही है

सितारे गर्दिश में है बुलंद नहीं ‘कागा’
पिल्ले गुर्राते रोटियां सेंकी जा रही है

राजस्थान

आन बान शान जान मेरा राजस्थान
रंग रूप उमंग भरा मेरा राजस्थान

वेष भूषा भाषा निराली भांति-भांति
मर्द बांकड़ली मूंछ वाला मेरा राजस्थान

सिर पगड़ी पग मोजड़ी धोती टेवटा
अंग रखी पूठिया पहने मेरा राजस्थान

गोरी घूंघट पट में लगती फूटरी
साठ कळी का घाघरा मेरा राजस्थान

पग पायल बाजे छम-छम करती
नाक नथड़ी कान झूमर मेरा राजस्थान

पनघट पाणी भरे पनिहारी संग सहेलियां
हंसती मुस्काती आती जाती मेरा राजस्थान

खेत खलिहान करते काम मिल जुल
काचर मतीरा ग्वार फली मेरा राजस्थान

केर चापटिया सांगरी साग सोगरा ‘कागा’
मन मोहक लगता मोकळा मेरा राजस्थान

स़ुबह

स़ुबह की लाली छाई निराली मतवाली
स़ुबह़ की हवा पुरवाई निराली मतवाली

भौर वेला में चिड़ियां चहक उठी
महकी सुगंध गई दुर्गंध निराली मतवाली

किसान कामगार चले अपने काम पर
मज़दूर अपनी मोज मस्ती निराली मतवाली

परिंदे अपने घौंसले छोड़ उड़ चले
चुग्गे की तलाश में निराली मतवाली

पशु चरागाह में चले चारा चरने
सूखा हरा घास हरियाली निराली मतवाली

सु़बह़ जागते गहरी नींद से ‘कागा’
बच्चे बुढ़े बुज़ुर्ग जवान निराली मतवाली

इश्क अश्क

इश्क अश्क चोली दामन का हाथ
आश्क माशूक चोली दामन का साथ

होते नैन दो चार आमने सामने
होती कसक चोली दामन का साथ

रूह होता एक जिस्म दो जुदा
होता रक़स़ चोली दामन का साथ

बूंदें बन बरस जाते गालों पर
पलक सिसक चोली दामन का साथ

आशिक माशूक का दर्द दोनों जानें
हवा ह़वस चोली दामन का साथ

वस़ाल में रोते सुबक दुबक कर
सामने अ़कस चोली दामन का साथ

दिल के फफोलों की जलन ज़ख्म
देते बख़्श चोली दामन का साथ

इश्क मुश्क छुपते नहीं होने पर
टपकते अश्क चोली दामन का साथ

तड़प दिल की धड़कनों जाने ‘कागा’
हर शख़्स़ चोली दामन का साथ

मुखौटा

ख़ुद का वजूद नहीं मुखौटा ग़ैर का
ख़ुद में ख़ूबी नहीं मुखोटा ग़ैर का

बक-बक बकवास करते ऊंची आवाज़ में
ख़ुद में कूअत नहीं मुखौटा ग़ैर का

गै़र की गोद में बेठ गुर्राते ग़ज़ब
ख़ुद में ख़ास़ियत नहीं मुखौटा ग़ैर का

चापलूस चोर चाटूकार गवाह बनते ग़ैर के
हवा देते चिंगारी को मुखौटा ग़ैर का

ख़ुद लूले ल़गड़े गूंगे बहरे अंधे बेसहारा
ख़ुद का भरोसा नहीं मुखौटा ग़ैर का

गै़रत नहीं ग़द्दारों में ग़स़्स़े में लबरेज़
ख़ेर नहीं ख़ुद की मुखौटा ग़ैर का

मुख़बर बन क़ौम के जासूसी करते ‘कागा’
ख़ुद में ख़ुदारी नहीं मुखौटा ग़ैर का

दस्तक

दिल पर किसी ने दस्तक दी
आहट हुई किसी ने दस्तक दी

दिल को क़ेद कर रखा हैं
सीने पर किसी ने दस्तक दी

चश्मों ने देखा किसी ने नहीं
रुख़सार पर किसी ने दस्तक दी

अश्क उमड़ आये बरसते बादल बन
पलकों पर किसी ने दस्तक दी

नम हो गई आंखें नज़ारा देख
आंखों पर किसी ने दस्तक दी

रूह रो रहा तड़प-तड़प कर
लब्बों पर किसी ने दस्तक दी

लब्ब लर्ज़ गये बोल नहीं पाये
ज़ुबां पर किसी ने दस्तक दी

मक़सद इशारों से बयां किया ‘कागा’
चोखट पर किसी ने दस्तक दी

वोट की चोट

राजनीति में वोट की चोट बड़ी सज़ा
कूटनीति में वोट की चोट कड़ी सज़ा

झूठा झांसा खोखला वादा नेक इरादा नहीं
बदनीति में वोट की चोट बड़ी सज़ा

बहला फुसला करते गुमराह भ्रम जाल में
अनीति में वोट की चोट बड़ी सज़ा

सत्ता के नशे में चूर मग़रूर मस्ताने
चुनोती में वोट की चोट बड़ी सज़ा

ज़मीन पर पग नहीं निगाहें ऊंची आसमान
बपोती में वोट की चोट बड़ी सज़ा

भोली भाली जनता भेड़ चाल चलती हरदम
पनोती में वोट की चोट बड़ी सज़ा

ग़रीबों की परवाह नहीं करते कभी ‘कागा’
कटोती में वोट की चोट बड़ी सज़ा

माहे रमज़ान पाक

माहे रमज़ान पाक है इबादत करें
रखें रोज़ा हर रोज़ इबादत करें

दिल में मोहब्ब्त प्यार का जज्बा
झोली भर ख़ुशी की सख़ावत करें

नफ़रत को दूर कर भाईचारा बनायें
नेकी करें बदी से बग़ावत करें

पांच वक़्त नमाज़ अदा फ़ज़ीलत से
स़ेहरी इफ़्तार उस़ूल की ह़िफ़ाज़त करें

ग़रीब यतीम मिस्कीन के हमदर्द बनें
अ़ज़ाब आज़ार से बेज़ार अ़दावत करें

चांद की चाहत में मुंतज़िर रहें
मुक़दस़ माहे रमज़ान अ़क़ीदत करें

जोशो ख़रोश से तैयारी करें ‘कागा’
ईद आमद पर नेकी इनायत करें

मुसाफ़िर

सफ़र जारी रख मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी
आज नहीं कल मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी

कारवां रहगुज़र रहे हरदम राह पर
माना डगर मुश्किल मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी

रहबर रहज़न खड़े मुस्तेद मार्ग में
नज़र आती ह़लचल मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी

स़ब्र कर तकबर नहीं ज़ोर जबर
कांटों को कुचल मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी

काम्याबी जब क़दम चूमेगी आकर सामने
फूल जायेंगे खिल मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी

दुश्मन दोस्त बन जायेंगे क़रीब ‘कागा’
मन जायेगा मचल मुसाफ़िर मंज़िल मिलेगी

मत सोचो इतना

मत सोचो इतना दर्द बन जाये
मत सोचो इतना बेदर्द बन जाये

सोच विचार कर क़दम उठाना अच्छा
शुभ सोचो इतना हमदर्द बन जाये

सही सोच का नतीजा सफल होता
मत सोचो इतना सरदर्द बन जाये

बहार आने पर गुंच्चे फूल जाते
मत सोचो इतना ज़र्द बन जाये

हवा चलती आसमान में ठंडी गर्म
मत सोचो इतना गर्द बन जाये

भीड़ भरी बज़ार में वो अकेले
इतना मत सोचो फ़र्द बन जाये

ज़माने में ख़ुद प्रसस्त लोग ‘कागा’
इतना मत सोचो नामर्द बन जाये

ढोल में पोल

ढोल में पोल देख सकते खोल
प्याज़ में पोल देख सकते खोल

ढोल गले का हार बन जाता
बजता मधुर बोल देख सकते खोल

हाथ की थाप डंडे की मार
अंदर है पोल देख सकते खोल

प्याज़ परतों से ढका गोल मटोल
उतरा जब छोल देख सकते खोल

पीतत पर झोल सोन का चमकीला
चढ़ा है घोल देख सकते खोल

इंसान की अंदर का अंदाजा नहीं
बोले दो बोल देख सकते खोल

गुबारा रंग रंगीला लाल पीला नीला
हवा का मोल देख सकते खोल

बांसुरी में छेदन जग जाहिर ‘कागा’
भीतर है पोल देख सकते खोल

दिल की बातें

दिल की बातें कौन सुनता आज कल
कोई नहीं हमदर्द कौन सुनता आज कल

हा़कम ग़ूंगा बेहरा अंधा लूला लंगड़ा लाचार
किसको करें फ़रियाद कौन सुनता आज कल

जान क़ुर्बान कर दी जिसके लिये अपनी
हो गये अजनबी कौन सुनता आज कल

अपना जान रखा आग़ोश में बदल गये
केसे करें भरोसा कौन सुनता आज कल

मत़लब का कारोबार चल रहा दुनिया में
दलालों की सरकार कौन सुनता आज कल

दिल की बातें दबी रह गई ‘कागा’
अपने हुए पराये कौन सुनता आज कल

दोस्त दुश्मन

अपने पराये खड़े सामने परख पेहचान
दोस्त दुश्मन खड़े सामने परख पेहचान

एक के हाथ में आग चिंगारी
दूसरे के जल सामने परख पेहचान

एक के हाथ में जाल चुग्गा
दूसरे के दया सामने परख पेहचान

एक के हाथ में खंजर कटार
दूसरे के ढाल सामने परख पेहचान

एक के हाथ लोह की ज़ंजीर
दूसरे के राखी सामने परख पेहचान

मुख में राम बग़ल में छुरी
दूसरे के माला सामने परख पेहचान

मुखोटा ओढ़ रखा चेहरे पर ‘कागा’
बुरा अच्छा खड़े सामने परख पेहचान

अपेक्षाएं जीवन की

अपेक्षाऐं जीवन की अनंत है कोई अंत नहीं
अकांक्षाऐं जीवन की अनंत है कोई अंत नहीं

समुंदर जल कड़वा नदियां दोड़ती आती कल-कल
मीठा शीतल नीर प्रेम का कोई अंत नही

मिल जाती भाव विभोर होकर अपना वजूद खोती
कभी हंसती रोती धोती धरती कोई अंत नहीं

सागर नदी का प्रेम बंधन टूटे नहीं अटूट
समुंदर नहीं जाये रूठ दोड़ती कोई अंत नहीं

धरती का सीना चीर फाड़ कर बहती उछल
बाधा नहीं करती बीच बर्दाश्त कोई अंत नहीं

प्रेम का रिश्ता नाता भली भांति निभाती भरपूर
भनक तक नहीं लगने देती कोई अंत नहीं

इंसान की ख़्वाहिशें ख़ूब होती बेह़द बेशुमार ‘कागा’
नाउम्मीद होकर तोड़ देता प्यार कोई अंत नहीं

मित्र-शत्रु

चलो अब हम मित्र बन गये
नहीं कोई बेर मित्र बन गये

मोर नेवला नाग बिल्ली चूहा छछुंदर
शेर नंदी मिल मित्र बन गये

मोर को मिली आज़ादी नाचने की
जंगल में शोर मित्र बन गये

नेवला काटे रास्ता बेधड़क किसी का
नहीं रोक टोक मित्र बन गये

सांप शिव के गले का हार
चूहा गणेश सवारी मित्र बन गये

बिल्ली को मिली दूध की रखवाली
म्याऊं-म्याऊं करे मित्र बन गये

नंदी को मिली छूट सांड बना
आवारा घूमे फिरे मित्र बन गये

छछुंदर को सांप निगल नहीं सकता
उगल नहीं सके मित्र बन गये

चोर चोर मोसेरे भाई नहीं गिला
बांट लेते ह़िस़्स़ा मित्र बन गये

राजनीति के रंग निराले काले उजले
सफ़ेद-पोश दाग़दार मित्र बन गये

रंग हरा दो हो जाते लाल
एक जाजम बेठ मित्र बन गये

काजल कोठड़ी में बेदाग़ निकला ‘कागा’
जो शत्रु थे मित्र बन गये

मतदान

एक बन नेक बन विवेक से मतदान करना
एक बन अनेक बन विवेक से मतदान करना

चोर चुग़ुल के चुंगल से निकल बाहर आओ
चखा स्वाद कर याद विवेक से मतदान करना

पांच साल मुड़ कर नहीं देखा पीड़ित को
ख़ुमार था सत्ता का विवेक से मतदान करना

फ़ोन नहीं उठाया आपात काल में किसी का
बहाना बाज़ी करते रहे विवेक से मतदान करना

चुनाव चिन्ह पर गुमराह किया प्रत्याशी बता कर
चेहरे पर मुखोटा ओढ़ा विवेक से मतदान करना

पव्वे पुलाव चाशनी के चक्कर में नहीं आना
शराब कबाब दबाव नहीं विवेक से मतदान करना

जाति धर्म मज़हब धमकी मत़लब हवा देखा देखी
चापलूसी चाटुकारी चमचागिरी नहीं विवेक से मतदान करना

विकास के नाम वोट मांगे कुछ नहीं किया
मौक़ा देकर धोखा पाया विवेक से मतदान करना

विकास की गंगा बहाने का वादा भूल गये
प्यासी तड़प रही जनता विवेक से मतदान करना

गिरगिट रंग बदले मौसम पर नेता बेमौसम ‘कागा’
अ़क़ल आ गई ठिकाने विवेक से मतदान करना

लायक़-नालायक़

दादा लायक़ पिता नालायक़ लोग क्या करें
पिता लायक़ ख़ुद नालायक़ लोग क्या करें

पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा का दौर नहीं
ख़ुद ख़राब नादान नालायक़ लोग क्या करें

चंडाल चोकड़ी की चोट चपेट लपेट में
बुरे फंसे धंसे हुए लोग क्या करें

सत्ता का पारा चढ़ा सातवें आसमान पर
इंसान लगते कीड़ी मकोड़ी लोग क्या करें

बीज बोये बग़ावत के बाग़ों खेतों में
बबूल कांटे उग गये लोग क्या करें

झूठे झांसे झमेले सुन कान थक गये
अब उठ गया भरोसा लोग क्या करें

बाप दादा को ज़लील किया आपने ‘कागा’
नाम बदनाम किया आपने लोग क्या करें

इंसान

पत्थर ने चोट मारी नहीं सुधरा इंसान
पत्थर की चोट भारी नहीं सुधरा इंसान

पत्थर का क़ुस़ूर नहीं काम कर दिया
लगी थी चोट क़रारी नहीं सुधरा इंसान

पत्थर पर पड़ी मार छेनी हथोड़ों की
भगवान बना चोट चमत्कारी नहीं सुधरा इंसान

लोहा तपा जलती आग में हुआ लाल
हथियार बना चोट भारी नहीं सुधरा इंसान

कंचन कुंदन हो गया हल्की ठोकर से
गहना बना चोट मारी नहीं सुधरा इंसान

मिट्टी पर मार पड़ी पावड़ों की बेशुमार
बर्तन बने चोट जारी नहीं सुधरा इंसान

काटा पैड़ कुल्हाड़ी चढ़ा कारीगर के हत्थे
पालना बना चोट चमत्कारी नहीं सुधरा इंसान

पत्थर लोहा लकड़ी मिल बना मकान ‘कागा’
चोट दर चोट जारी नहीं सुधरा इंसान

संग रंग

कल थे कनिष्ट आज वरिष्ट हो गये
कल थे भ्रष्ट आज श्रेष्ट हो गये

दल -बदलू दुनिया रात को करते चोरी
दिन को हेरा फेरी श्रेष्ट हो गये

धंधा करते धोखा-धड़ी का दोगला दौर
चोर मचाये शोर लुटेरे श्रेष्ट हो गये

खल-बली उथल पुथल हर खीमे में
पासा बदल पवित्र होकर श्रेष्ठ हो गये

गंदी नाली के कीड़े बदबूदार कीचड़ में
गंगा में नहाये सर्व श्रेष्ट हो गये

सांप केंचुली छोड़ने से जहर कम नहीं
कटोरा भर दूध पिया श्रेष्ट हो गये

‘कागा’ हंस नहीं हो सकता संग रहते
बगुले आंख बंद कर श्रेष्ट हो गये

बराबर

हाथों पैरों की उंगलियां बराबर नहीं होती
अपनों ग़ैरों की गलियां बराबर नहीं होती

लो्गों की हाथ रेखायें होती अलग अलग
सगे भाईयों की हथेलियां बराबर नहीं होती

समुंदर में रहते मगर-मछ मेंढक मछलियां
तालाब दरिया की मछलियां बराबर नहीं होती

गुलस्तान में खिलते गुल ग़ज़ब रंग बरंगी
महकते फूलों की कलियां बराबर नहीं होती

अमीरों की कोठियां बड़ी बुलंद उम्दा आलीशान
सेठ शाहूकारों की ह़वेलियां बराबर नहीं होती

मह़लों में सखियां होती शहज़ादी की शान
दिल बहलाने की सहेलियां बराबर नहीं होती

आशिक़ माशुक़ करते बातें आंख इशारों से
अमीर ख़ुसरो की पहेलियां बराबर नहीं होती

ज़ाती ज़िंदगी में हर इंसान करता रोमान
अमीर ग़रीब की रंगरलियां बराबर नहीं होती

ख़ुदा ने इंसान को ख़ास़ बनाया ‘कागा’
हर दरख़्त की डालियां बराबर नहीं होती

बिना पिया

यह केसी आग बिना पिया जले मेरा जीया
बुझती नहीं आग बिना पिया बले मेरा जीया

नहीं शोला नहीं धूंआ सुलग भभक धधक रही
पानी से बुझे नहीं पिया जले मेरा जीया

जब से आंखें हुई दो चार लगी आग
बिना चिंगारी झुलस गई पिया जले मेरा जीया

सिसक सुबक कर टपक पड़े आंसू गालों पर
पलक छलक भीग गये पिया जले मेरा जीया

आग लगी दिल में तड़प रहा सारा जिस्म
तपता तन मन बदन पिया जले मेरा जीया

तेरी एक झलक वास्ते पलक पावड़े बिछाये ‘कागा’
कब आओ मेरे आंगन पिया जले मेरा जीया

होली के रंग

होली के रंग प्रेम के संग
होली का हुड़दंग चंग के संग

होले आई होली ख़ुशियां भर झोली
सखियां खेलें होली प्रेम के संग

गायें गीत झूमें नाचे टाबर टोली
मायड़ मीठी बोली प्रेम के संग

तन मन रंगा गाल लाल गुलाल
आंगन सजी रंगोली प्रेम के संग

पिचकारी भरा पानी फागुन की फुहार
ढोल बजाये ढोली प्रेम के संग

‘कागा’ मैं होली अपने पिया की
भीगी चूनर चोली प्रेम के संग

जल बिना सब सून

जल बिना सब सून जल जोश जुनून
जल बिना सूख जाये शरीर का ख़ून

जल संकट पर होता मुल्क में अकाल
त्राहि त्राहि मच जाती होते ह़ाल बेह़ाल

जल जीवन जल जन तन मन मगन
जल आज जल कल जल थल गगन

जल की एक बूंद से बनता बदन
बिना जल सब सूना घर आंगन सदन

हर जीव आत्मा जल जीवन जनक जतन
चर अचर जर अजर बिना जल पतन

बिना जल मर जाये मीन तड़प कर
पेड़ पोधा पशु पक्षी प्राणी तड़प कर

बिना जल एक पल घड़ी बीत नहीं सके
बिना पिये जल कोई जी नहीं सके

बारिश बूंदें पड़ती तब आती महकी सुगंध
धोकर देती धरती पर जमी पड़ी दुर्गंध

‘कागा’ हर बूंद को सहज कर रखें
जल जीवन जल आज सहज कर रखें

लेखा जोखा

अमीर छोड़ो ग़रीबों के लिये क्या क्या
वज़ीर छोड़ो पहरेदारों के लिये क्या किया

दोलतमंद अपने दम खम पर बड़े मजबूत
व्यापारी छोड़ो मज़दूरों के लिए क्या किया

शाहूकार अपनी शानो शोकत क़ायम रखते आये
दलाल छोड़ो किसानों के लिये क्या किया

दबंग अपनी दादागिरी मोज मस्त में रहते
चापलूस छोड़ो चाटुकारों के लिये क्या किया

कारीगर अपने हुनर के सहारे ज़िंदा है
शिल्पकार छोड़ो बेरोज़गारों के लिये क्या किया

चौकीदार चोथ वसूली कर काम चला देते
दरबान छोड़ो चपरासियों के लिए क्या किया

पानी के लिये तड़पते पशु पक्षी इंसान
छात्र छोड़ो महिलाओं के लिये क्या किया

कम्मियां ढूंढ कोसते है विरोधियों को ‘कागा’
धुरिंद्र छोड़ो कार्यकर्ताओं के लिये किया

जीना मरना

जीवन जीना सम्मान के लिये
जीवन जीना स्वाभिमान के लिये

जीवन मिला है मरना त़य्य
जीवन जीना अरमान के लिये

जीवन के दिन दो चार
जीवन जीना ईमान के लिये

जीवन में आती कठिन घड़ी
जीवन जीना अभियान के लिये

जीवन में परीक्षा होती है
जीवन जीना इमत्हान के लिये

जीवन जमाल करता कमाल कागा’
जीवन जीना जान के लिये

होली खेलते हैं

चलो हम होली संग खेलते है
चलो हम होली रंग खेलते है

बसंत ऋतु में फागुन माह में
चंग की थाप पर खेलते है

इंद्रधनुषी रंग बरंगी गुल फूल खिले
भंवरा गीत गुनगुनाते होली खेलते है

लहंगा-चोली भीगी रंगा सारा बदन
मुखड़े पर लाली होली खेलते हैं

नाचें गीत फाग गाये संग सखियां
अखियां चमके काजल होली खेलते हैं

होलिका जली मची खलबली बचा प्रह्लाद
सत्य की जीत होली खेलते हैं

ह़ोली के हुड़दंग में रंग गुलाल
ढोली बजाये ढोल होली खेलते हैं

राधा संग कृष्ण खेले गोपियां गोरी
पिया संग मन होली खेलते हैं

बाग़ों में झूले झूमें संग सहेलियां
घर आंगन रंगोली होली खेलते है

मोर नाचे संग मोरनी पंख फेलाये
बोले बोल मधुर होली खेलते हैं

कलियां खिली फूल बनी फागुन फूहार
तितलियां करती तकरार होली खेलते हैं

बुलबुल बहके कोयल कूकी संग ‘कागा’
रंग भेद नहीं होली खेलते हैं

विश्व स्वास्थय दिवस

विश्व स्वास्थय दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं
विश्व स्वास्थय दिवस की हार्दिक नेक कामनाएं

स्वास्थय तन स्वच्छ मन जीवन का आधार
जेसा अन्न वेसा मन जीवन का आधार

मन चंगा कठोती में गंगा कहते रविदास
परीधन का नहीं कोई दीन कहते रविदास

मन का मेल दूर करो चित्त स़ाफ़
पर नारी की प्रीत नहीं पाप माफ़

काम क्रोद्ध लोभ लालच मोह माया जाल
शुद्ध रखो काया मिट जाये काल जंजाल

घट भीतर मंदिर में घुस बजाओ घंटा
बाहर जाकर बजाओ घुस गुरुकुल का घंटा

विधा अर्जित करो ज्ञान विज्ञान का भरपूर
भविष्य उज्जवल होगा बढ़िया भाग्यं भारी भरपूर

विश्व वातावर्ण दूषित घ्रणा का घाल मेल
मानव का मोल नहीं अमीरों का खेल

‘कागा’ प्रदूषण फेल चुका पद पक्षपात का
बोल-बाला बरक़रार धर्म मज़हब जात का

 

दर्दमंद

दर्द नहीं बन दोस्त दवा बन
हौआ नहीं बन दोस्त हवा बन

बददुआ नहीं बन दोस्त दुआ बना
शबनम नहीं बन दोस्त शोला बन

धूंआ नहीं बन दोस्त ज्वाला बन
बूंदें नहीं बन दोस्त ओला बन

सांप नहीं बन दोस्त सपेरा बन
अंधेरा नहीं बन दोस्त सवेरा बना

कोयला नहीं बन दोस्त काजल बन
कीचड़ नहीं बन दोस्त गंगाजल बन

बगुला नहीं बन दोस्त हंस बन
ठग नहीं बन दोस्त परमहंस बन

अंध हीं बन दोस्त भक्त बन
पल नहीं बन दोस्त वक़्त बन

त़ौता नहीं बन दोस्त ‘कागा’ बन
गांठ नहीं बन दोस्त धागा बन

 

नारी शक्ति को नमन

नारी शक्ति भक्ति बिना नारी नर अधूरा
नारी युक्ति मुक्ति बिना नारी नर अधूरा

नारी माता बहिन पत्नि पुत्री भूआ भाभी
नारी पति व्रत बिना नारी नर अधूरा

नारी अर्धांगिनी भगनी संगनी मंगनी अग्नि जननी
नारी गति देती बिना नारी नर अधूरा

ब्रह्मा विष्णु महेश नारी संग रहते सदेव
राम सति सीता बिना नारी नर अधूरा

नारी छवि छाया परछाई पति संग पावन
गगन धरती युगल बिना नारी नर अधूरा

नारी चित्त चंचल नर मन निर्मल कोमल
मस्तक मति प्रवृति बिना नारी नर अधूरा

नारी नर की खान निपजे शूर वीर
दाता उत्पति होती बिना नारी नर अधूरा

राजा रानी दासी अमीर ग़रीब पीर फ़क़ीर
योगी यति जन्मे बिना नारी नर अधूरा

नारी कोख से पैदा हुआ कवि ‘कागा’
नारी शक्ति नमन बिना नारी नर अधूरा

संवत्सर

नव वर्ष मंगलमय हो स्वंय पर भरोसा रख
नया साल सुखमय हो ईश्वर पर भरोसा रख

जेसी करनी वैसी भरनी किसी पर दोष नहीं
जेसी नियत वेसा फल स्वयं पर भरोसा रख

जेसा बीज बोयेगा अपने खेत में वो उगेगा
जवार बदले गवार नहीं स्वंय पर भरोस रख

नेकी कर संसार में सुख मिलेगी अनंत अपार
बुराई से बुराई मिलती स्वयं पर भरोसा रख

हमारे कर्तूत़ों का फल मिल गया गत साल
बुरा भला है सामने स्वयं पर भरोसा रख

काले कारनामे नहीं करना भूल कर भी ‘कागा’
देर है अंधेर नहीं स्वयं पर भरोसा रख

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

जीवन परिचय :

नाम: डा.तरूण राय कागा
पिता का नाम: स्व,श्री रामचंद्र कागा
माता का नाम:स्व,श्रीमति सांझी देवी कागा
पत्नी का नाम: श्रीमति मिश्री देवी कागा
जन्म तिथि:01,01,1946 (एक जनवरी उन्नीस सौ छियालीस)
राष्ट्रीयता:भारतीय
वर्तमान पता: चौहटन 344702 जिला बाड़मेर राजस्थान
पद: पूर्व विधायक (2013 से 2018)राजस्थान विधान सभा
सदस्य याचिका समिति सदस्य पाक विस्थापित उच्च स्त्रीय समिति राजस्थान
प्रकाशित पुस्तक: स्वरचित मौलिक काव्य रचनायें महकें स्वर्णिम रचनायें 1,2 माटी की महक मानवता के मायने चमकता आईना जीवन एक संघर्ष
व्यवसाय: खेती सेवा निवृत कर्मचारी
अभिरुचि: जन सेवा राजनीति कवि साहित्यकार
शिक्षा हायर सेकंडरी राष्ट्र भाषा कोविद साहित्य रत्न वैध विशारद आयुर्वेद रत्न पत्रकारिता एंव जन संचार विशारद
भाषा ज्ञान : हिंदी सिंधी उर्दू राजस्थानी अंग्रेज़ी
सम्पर्क सूत्र: 9414383793
सम्मान: डा,अम्बेडकर फ़ेलोशिप आचार्य उपाधि बीसवीं शताब्दी रत्न पद्मश्री डा, लक्ष्मीना दुब्बे स्मृति सम्मान महात्मा ज्योतिबा फूले फ़ेलोशिप इंडो नेपाल कर्म रत्न स्वर्णिम पदक अवार्ड सदस्य अंतर्राष्ट्रीय समरसता मंच सलाहकार बोर्ड कबीर कोहिनूर पुरस्कार नोबल टेलेंट इंटरनेशनल अवार्ड जी 22समरसता अवार्ड ग्लोबल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी अमेरिका से डाक्ट्रेट मानद उपाधि
अन्य:अनेक प्रशस्त पत्र

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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