Nayan Adheer

धन्य कब होंगे नयन अधीर !

( Dhanya kab honge nayan adheer ) 

 

न आये देव दीन के द्वार।
तृषित उर को दे सका न तोष,
तुम्हारा करुणा पारावार।
न आये देव दीन के द्वार।

निराशा का न हुआ अवसान,
हुई आशायें प्रतिपल क्षीण।
भग्न होते जाते स्वर तार,
करुण क्रन्दन करती हृदवीण।

प्रतीक्षा में बीते निशियाम,
किन्तु क्या स्वप्न हुये साकार।
न आये देव दीन के द्वार।

अनागत आशंका सी एक,
किये जाती आवृत दिन रात।
अस्त कब कर दें जीवनदीप,
विश्व के निष्ठुर झंझावात।

न जाने कब खो दे अस्तित्व,
शून्य सा संवेदन संसार।
न आये देव दीन के द्वार।

कभी क्या होगा निशि का अन्त,
मिलेगा स्वर्णिम् सुखद प्रकाश।
धन्य कब होंगे नयन अधीर,
कभी क्या होगा विरह विनाश।

समानान्तर रेखायें दो,
मिलेंगी कब अनन्त के पार।
न आये देव, दीन के द्वार।

 

sushil bajpai

सुशील चन्द्र बाजपेयी

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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