Raddi

रद्दी

( Raddi )

 

माना की जरूरत नहीं किसी की आपको
समर्थ है स्वयं में ही खुद के प्रति
तब भी आप
पूर्णता में ईश्वर तो नहीं है

किसी से हाथ मिलाकर के तो देखिए
साथ से चलकर तो देखिए
किसी के होकर तो देखिए
हो जाएगा आभास आपको भी
अपनी पूर्णता का

सहयोग ही तो सीखाता है
जीवन जीने की कला
अन्यथा मशीनी युग में स्वयं को भी
मशीनी सांचे में ढाल लेना ही
कहां तक की श्रेष्ठता है

हर तबके के लोग हैं समाज में
आप भी इसी समाज का एक हिस्सा है
अपने हिस्से की बेरुखी से आप
भला आनंदमय कैसे रह सकते हैं

दिखावे की जिंदगी
इंसानियत से दूर कर देती है
और आप सिर्फ झूठे बड़प्पन के अहम में ही जीते रह जाते हैं
जिसका कोई अर्थ नहीं होता
टोकरी में पड़े रद्दी की तरह

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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