निज भाषा

( Nij Bhasha ) 

 

देना ही है यदि मान हिंदी को
बढ़ानी ही है पहचान हिंदी की
क्या होगा एक दिन के मनाने से
दो स्थान इसे जैसे माथे के बिंदी की

हर पल सोते जागते उठाते बैठते
कहते रहो राम राम जय मां भारती
निज भाषा ही है मूल तत्व ज्ञान का
निज भाषा ही है पुरखों को थाती

काम चलाऊ ही रहें गैर की भाषा
हिंदी से ही पूरी होगी हर आशा
जलाया दीप ज्ञान का इसी हिंदी ने
आज बदल दी तुमने परिभाषा

हिंदी से ही है पहचान हिंद की
अपने हिंदू और हिंदुस्तान की
गैरत है यदि कुछ शेष हृदय मे
समझ लो भाषा यही सम्मान की

शिक्षक हो तुम या अभिभावक हो
रक्षक हो या कोई गृह पालक हो
वैकल्पिक नही यह आवश्यक है
निज भाषा के तुम्ही प्रति पालक हो

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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