निर्मल कुमार दे की कविताएं | Nirmal Kumar Dey Poetry
तुम्हारा खत
एक खत तुम्हारा
आज भी सहेज रखा है मैंने
हर शब्द में झलकता है तुम्हारा प्यार
खुशबू मिलती है तेरी जुल्फों की
अनायास सामने आ जाता है तुम्हारा चेहरा
तुम्हारी बड़ी- बड़ी आँखें
तुम्हारी मासूमियत,तुम्हारी नादानी
तुम्हारी सादगी
सभी प्रतिबिंबित हो जाती हैं
इस गुलाबी खत में।
कुछ भ्रम -सा है
यह मेरी नादानी भी
बरसों बीत गए
पर याद है कि
जेहन में बिल्कुल ताजा है
भूल जाता हूँ कि
उम्र ठहरती नहीं
फिर भी एक
सुकून -सा देता है
तुम्हारा यह पत्र।
मनुहार
कहाँ भूला पाया हूँं तुम्हें
हर गुलाब में तुम्हीं नज़र आती हो।
हवा भी महकती है
तेरी जुल्फ़ों की खुशबू से।
दहकते पलाश को देख
तेरे होठों का भरम हो जाता है
तुम्हें भूलने की कोशिश
नाकाम हो जाती है।
यादों में सिर्फ तुम ही तुम
बसती हो
ख्वाबों में जब आती हो
अप्सरा -सी लगती हो।
न रहो रूठकर
मुझसे
क्यों कोयल -सी
दूर से चहकती हो।

निर्मल कुमार दे
जमशेदपुर
nirmalkumardey07@gmail.co
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