निर्मल कुमार दे की कविताएं | Nirmal Kumar Dey Poetry
मनुहार
कहाँ भूला पाया हूँं तुम्हें
हर गुलाब में तुम्हीं नज़र आती हो।
हवा भी महकती है
तेरी जुल्फ़ों की खुशबू से।
दहकते पलाश को देख
तेरे होठों का भरम हो जाता है
तुम्हें भूलने की कोशिश
नाकाम हो जाती है।
यादों में सिर्फ तुम ही तुम
बसती हो
ख्वाबों में जब आती हो
अप्सरा -सी लगती हो।
न रहो रूठकर
मुझसे
क्यों कोयल -सी
दूर से चहकती हो।

निर्मल कुमार दे
जमशेदपुर
nirmalkumardey07@gmail.co
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