
अपनी खिचड़ी अलग पकाना
( Apni khichdi alag pakana )
एक कलम होता कलमकार हथियार,
जिसको होता माते शारदे का वरदान।
मन की बात लिख देता वह कलम से,
सोच-विचारकर यह शब्दों को जोड़ते।।
आज अलग थलग सभी रहना चाहतें,
सुख दुःख मे भागीदार न होना चाहतें।
आज न जाने सभी को यें क्या हो रहा,
अपनी खिचड़ी अलग पकाना चाहतें।।
बिना मौसम के आज बरसात हो रही,
परिवारों मे पहले जैसी बात नही रही।
कहते है आँगन टेडा जब नाच न आए,
आज भैंसो के आगे लोग बीन बजाए।।
नही है सुर एवं ताल नाच गाना गा रहें,
अपने आप को मो. रफीक समझ रहें।
त्यौहार पे भी अपनों को याद न करतें,
अपनी खिचड़ी अलग पकाना चाहतें।।
घर-परिवारो में झगड़ा होता ही रहता,
इसका मतलब नही उनसे मुँह मोड़ना।
आज प्यार बनाकर रखो सभी सबसे,
यह खिचड़ी पकाओ ना अलग घर से।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )
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