रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’ की रचनाएँ

दीवाली दीपों का मेला

शतक पाँच सौ रखा अकेला।
भक्तों ने यह दुख भी झेला।।
दलगत राजनीति का खेला।
न्यायालय में मचा झमेला।।
चमत्कार देखा अलबेला।
बना अवध में भवन नवेला।।
रामलला पर नेह उड़ेला।
दीवाली दीपों का मेला।।

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन नख पर लिया, गिरिधर ने जब धार।
हर्षित ब्रज के लोग सब, हुई इंद्र की हार।।

संकट काटो मम सकल, हे गिरिधर महराज।
वरद हस्त हो शीश पर, रखना मेरी लाज।।

दीपोत्सव

1
आएँ हम दीपावली, सुखद मनाएँ आज।
सबके सिर पर हो सदा, बस खुशियों का ताज।
बस खुशियों का ताज, गरीबों के घर जाकर।
बाँटें प्रेम अथाह, उन्हें हम गले लगाकर।।
दीपक लेकर साथ, मिठाई भी ले जाएँ।
रजनी को है गर्व, खुशी जब देकर आएँ।।

2
दिया जलाएँ हम सभी, निज फौजी के नाम।
हिन्द राष्ट्र- हित वे सदा, आते हैं नित काम।।
आते हैं नित काम, पर्व को सुखद बनाकर।
इनका त्याग महान, करें सब कुछ न्योछावर।।
हमको दे सुख- चैन, हटाते सभी बलाएँ।
रजनी को है ध्यान, सभी हम दिया जलाएँँ।।

3
दीवाली घर- घर मनी, अवध बना सुखधाम।
चौदह वर्षों बाद जब, आए थे प्रभु राम।।
आए थे प्रभु राम, लिए सँग सीता माता।
और सहित हनुमान, लखन सम अति प्रिय भ्राता।।
जन- जन में उत्साह, नगर में थी खुशहाली।
रजनी थी उजियार, मनी घर- घर दीवाली।।

छोटी दीपावली


पूज रहे सब संग में, लक्ष्मी और गणेश।
हो वर्षा सौभाग्य की, करें कुबेर प्रवेश।।


नरक चतुर्दश पर रहें, दुख कोसों ही दूर।
माँ लक्ष्मी की हो कृपा, हम सब पर भरपूर।।


हनुमत का है अवतरण, नरक चतुर्दश- वार।
बल विद्या अरु बुद्धि के, बजरंगी भण्डार।।


दुःख सहें कन्या बहुत, थीं षोडशः हजार।
नरकासुर को मार कर, दिया कृष्ण ने तार।।


शिव चतुर्दशी पर मनुज, शिव को करो प्रणाम।
पंचामृत अर्पण करो, गौरा का लो नाम।।

दिलासा तो न देते तुम

क़सम खाकर हमारी ही भुला हमको न देते तुम
वफ़ा की नेक मूरत को कहीं फ़िर खो न देते तुम

पड़ी हम पर बड़ी भारी तुम्हारी नफरतों की बू
कली दिल की हमारी तोड़ हमको जो न देते तुम

हमारी बा-बफ़ाई की ज़रा भी क़द्र होती तो
जफ़ाओं से भरे काँटे जिगर में बो न देते तुम

खली होगी हमारी भी कमी शायद तुम्हें दिलबर
गले मिलके हमारे फूट कर यूँ रो न देते तुम

तुम्हारे दिल पे है हमदम हमेशा राज़ रजनी का
हमारी ज़ीस्त में झूठी दिलासा तो न देते तुम

वोट की है दुकान मुश्किल में

वोट की है दुकान मुश्किल में
हर चुनावी निशान मुश्किल में

बेटियों के दहेज़ की ख़ातिर
बाप का है मकान मुश्किल में

फ़स्ल जयचंद की उगी हर सू
मुल्क़ का है जवान मुश्किल में

जी सकेगा किसान अब कैसे?
आज उसका लगान मुश्किल में

चार दिन की है ज़िंदगी तेरी
उस पे कड़वी ज़ुबान मुश्किल में

साथ कोई बशर नहीं देगा
अंत आया तो जान मुश्किल में

हुस्न रजनी का चाँद ने देखा
ख़ुद है उसका जहान मुश्किल में

आया करवा चौथ

एक साल पर फिर सजन, आया करवा चौथ।
रहूँ सुहागन चिर जतन, आया करवा चौथ।।

करवा का व्रत मैं रखूँ, कर सोलह श्रृंगार।
पिया निहारें थिर नयन, आया करवा चौथ।।

प्रणय निवेदन कर पिया, गहे हाथ में हाथ।
आलिंगन में घिर मिलन, आया करवा चौथ।।

प्रियतम का मुख देखकर, जुड़े हृदय के तार।
हुई प्रेम में गिर मगन, आया करवा चौथ।।

हर पल तू सजता रहे, बन सिंदूरी माथ।
पिय ‘रजनी’ के सिर-वदन, आया करवा चौथ।।

मुक्तक
आधार छंद- गीतिका

पाश में थे मोह के अर्जुन! छुड़ाया आपको।
कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता सुनाया आपको।

भव्य एवं दिव्य अपने रूप का दर्शन करा-
श्रेष्ठ होता कर्म ही फल से सिखाया आपको।

वस्ल के वक़्त

( Vasl ke Waqt )

वस्ल के वक़्त वो रुका ही नहीं
माह-ए-उल्फ़त में दिल मिला ही नहीं

मुस्कुराते हैं ख़ार में भी गुल
हार से उनका वास्ता ही नहीं

ज़ीस्त क़ुर्बान इस पे है मेरी
हिन्द जैसा वतन बना ही नहीं

क्यों किनारों से राब्ता रखता
ये समुंदर को ख़ुद पता ही नहीं

तेरी आग़ोश में रही रजनी
पर मिला इसका कुछ सिला ही नहीं

गौरी जिनका नाम


सुता हिमालय की उमा, गौरी जिनका नाम।
अष्टम् दुर्गा रूप में, करें सफल सब काम।।

आईं माँ नवरात्रि में, करके केहरिनाद।
रूप महागौरी शुभम्, हरें सकल अवसाद।।

सर्व सुमंगलदायिनी, श्वेताम्बरा प्रसिद्ध।
सती सदागति, शाम्भवी, करतीं सुखी-समृद्ध।।


आईं माँ नवरात्रि में, होकर सिंह सवार।
चूड़ी बिंदी से करूँ, माता का श्रृंगार।।

अष्टभुजा नवरूप में, करतीं हैं उद्धार।
शक्तिमयी संकट हरो, करो दुष्ट संहार।।

जगजननी जगदंबिका, सुखी रहे संतान।
रजनी पूनम चंद्रिका, माँग रही वरदान।।

चुनरी माँ की लाल है, लाल सजे श्रृंगार।
हलवा- पूड़ी भोग ले, भक्त खड़े दरबार।।

रम्य कमलदल से करूँ, माता का श्रृंगार।
सदा सुहागन मैं रहूँ, करना माँ उपकार।।

ऊँचे पर्वत पर बना, माँ तेरा दरबार।
हस्तबद्ध आते सभी, लेकर भक्त पुकार।।
१०
रण- चंडी का रूप धर, बन दुर्गा अवतार।
दुष्ट दलन कर मातु ने, भरी विजय हुंकार।।
११
सदा पुकारूँ मैं तुझे, हे दुर्गा हे अंब।
भीषण विपदा में रहीं, एक तुम्हीं अवलंब।।
१२
वरद- हस्त वरदायिनी, महिमा अपरम्पार।
जगराता फिर आ गया, भरने को भण्डार।।
१३
आतीं माँ नवरात्रि में, करके केहरिनाद।
रूप सुहाना भा गया, हुआ हृदय आह्लाद।।
१४
माँ दुर्गा ममतामयी,अद्भुत है श्रृंगार।
शीश मुकुट गल माल है, अष्टभुजी जयकार।।

रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’

लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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