Nivatiya ke Haiku

निवातिया के हाइकु

( Nivatiya ke haiku )

विद्या : माहिया

(१)

मैं कलि हूँ खिलने को
घूंघट तब खोलूं
जब आओ मिलने को !!

(२)
इतना क्यों तरसाया,
ये तो बतलाओ,
क्यों हमको तड़पाया !!

(३)
हर-पल मुझको छेड़े,
चलती जब पुरवा,
उजड़े मन के खेड़े !!

(४)
किस विध मैं समझाऊं,
इस मन की पीड़ा,
किस को मैं दिखलाऊँ !!

(५)
तू तोता, मैं मैना,
जब से बिछड़े हम,
रो – रो हारे नैना !!

—*—

वोट की चोट,
लोकतंत्र की शक्ति,
ज्यों अखरोट !!

*

मत का दान,
वतन की खातिर
है महादान !!

*

भाई-बहिन,
मतदान जरुरी
दादा कहिन !!

*

स्याही निशान,
मत की पहचान,
देश की जान !!

*

वोट का कर्म,
कर्तव्य, अधिकार,
दोनों है धर्म !!

*

दरख़्त झुके,
हिम अगवानी में,
पवन रुके !!

*

हिम चादर,
तानकर है लेटा,
पार्क में बेंच !!

*

सर्दी का भूत,
हिम राहों पे घूमें,
बनके दूत !!

*

लेन में खड़े,
बर्फ में नहाते है,
चीड़ के पेड़ !!

*

बर्फ मुस्तैद,
घर बने पिंजरे,
इंसान कैद !!

डी के निवातिया

डी के निवातिया

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माहिया | Mahiya

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