ओढ़े पीली ओढ़नी धरा हरसाई | Odhe Pili Odhni
ओढ़े पीली ओढ़नी धरा हरसाई
( Odhe pili odhni dhara harasaee )
धरती ओडी पीली ओढ़नी, सरसों भी लहराई है।
मस्त पवन की चली बहारें, धरा खूब हरसाई है।
धरा खूब हरसाई है
लहलहाते खेत झूमते, कलियां भी मुस्काती है।
हरी भरी केसर क्यारी, वादियां मंगल गाती है।
वृक्ष लताएं मौज मनाएं, घर में खुशियां आई है।
खलियानों के चेहरे खिले, पगडंडी यूं इतराई है।
धरा खूब हरसाई है
कृषक गा रहा गीत सुहाने, व्योम घटाएं छाई है।
उतर आया स्वर्ग धरा पर, मस्त चली पुरवाई है।
बनी दुल्हनिया अवनी, ले चुनरिया लहराई है।
पुष्प खिले सौरभ लेकर, मादकता बरसाई है।
धरा खूब हरसाई है
मन मयूरा झूमके नाचे, अब खेतों में रौनक आई।
अलगोजे बाजे बांसुरिया, उत्सव की घड़ियां छाई।
देवन धरा पर आए रमण को, गूंज उठी शहनाई है।
धरती अंबर मिलन हो रहा, लहर खुशी की छाई है।
धरा खूब हरसाई है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )